एक बुरी खबर इंडिया टुडे ग्रुप से है. इंडिया टुडे पत्रिका के दक्षिण भारत के तीन एडिशन्स बंद कर दिए गए हैं. अब इंडिया टुडे को तमिल, तेलगु और मलायलम भाषी लोग नहीं पढ़ सकेंगे. इन तीन एडिशन्स के बंद होने के बाद इंडिया टुडे सिर्फ अंग्रेजी और हिंदी में बची है. लोग कहने लगे हैं कि अगर अरुण पुरी को सच में पत्रकारिता से प्रेम होता या मीडिया के सरोकार से कोई लेना-देना होता तो वह दक्षिण भारत के तीन एडिशन्स बंद नहीं करता.
आखिर पूरे देश को एक स्तरीय पत्रिका को पढ़ने का हक है. अगर ये तीन दक्षिण भारतीय एडिशन्स घाटे में चल रहे थे तो इसे लाभ में लाने की कवायद की जानी चाहिए थी. पर तीन दक्षिण भारतीय भाषाओं में पत्रिका को बंद करके अरुण पुरी ने अपने धंधेबाज चेहरे का ही खुलासा किया है. जिस तरह दूसरे धंधेबाज मीडिया मालिक लाभ हानि के गणित से अपने मीडिया हाउस को चलाने बंद करने या विस्तारित करने पर ध्यान जोर देते हैं, वही काम अरुण पुरी भी कर रहे हैं.
वैसे, एक अच्छी बात ये है कि अरुण पुरी ने बंद किए जाने वाले तीनों एडिशन्स के कर्मियों को आश्वस्त किया है कि उन्हें समुचित मुआवजा मिलेगा. चेन्नई में अब इंडिया टुडे का आफिस बंद करके अब छोटा सा ब्यूरो रखा गया है. अरुण पुरी ने आंतरिक मेल जारी कर सभी को तीनों एडिशन्स बंद किए जाने की सूचना दी है. अपने पत्र में एक जगह अरुण पुरी लिखते हैं:
“The India Today weekly editions of Tamil, Telugu, and Malayalam have been incurring loss for over two decades. We have been absorbing the losses so far in the hope that they will turnaround. After great deal of deliberation we have come to the conclusion that we don’t see the viability of these editions in the foreseeable future. It is, therefore, with a heavy heart that we have decided to discontinue these editions.”
“The office in Chennai will now be a smaller Bureau. Some colleagues who are already contributing to the English edition will be retained in ITE and be a part of this Bureau.”
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एक्शन प्लान तैयार, कमांडो कार्रवाई का इंतज़ार
पत्रिका समूह ने मजीठिया संकट से पार पाने के लिए कुछ रणनीतियां बनाई है। इस बार वन टू वन का प्लान है। कंपनी के सारे तथाकथित विश्वस्त गुर्गे बड़ी ही ख़ामोशी के साथ कदम बढ़ा रहे है। एक तरफ वकीलो की फ़ौज़ तिकडम भिड़ा रही है कि कैसे GK को जेल जाने से बचाया जाए तो दूसरे छोर पर सारे थकेले,आउटडेटेड,कामचोर, पिस्सू अफसरान अलग अलग संस्करणों में फ़ोन करके पता करने का प्रयास कर रहे है कि आखिर आंदोलन की वजह क्या है, कौन कितनी ताकत से उसका नेतृत्व कर रहा है। किसके मुह पर नोट मारने से काम चल जायेगा,कौन नोट सूंघते ही बेहोश हो जायेगा। बचे हुए फौलादियो को पिघलने में कितना लौहा लगेगा। लोगों को समझाया जा रहा है कि उनका carrier दांव पर लग जायेगा, आज पैसा मिल जायेगा पर कल कंपनी बम पर लात मार देगी। बीवी बच्चों का क्या होगा?
यही नहीं देशभर से छांटें हुए भ्रष्ट, मक्कार सीए,मार्केटिंग और एडिटोरियल के भेड़िया छाप प्रोफेशनल्स की मुंहमांगे दामो पर सेवाएं ली जा रही है ताकि वे मौका देख हंटर चला सकें। दरअसल शुरुआती डेमेज कण्ट्रोल में ही दोनों निकम्मे राजपुत्रों का इस सच से साक्षात्कार हो गया कि बड़े पदों से चिपके चाटुकारों का कौई जनाधार नहीं है। वे कर्मचारी ही रीढ़ की हड्डी है जिन्होंने विरोध का किल्ला ठोका है उनका तम्बू उखाड़ने के लिए।
मैनेजमेंट की इस चिर्कुटी बिसात पर अदना सा कर्मचारी तक दुलत्ती मार कर सीना ठोके ताली दे रहा है….अरे ओ सेठ के गुलामो…मुझे 5 लाख नहीं चाहिए…मै तो एक बार…उस 56 इंच की कमरवाले को तिहाड़ जेल में ….”मै ही राधा,में ही कृष्ण” की धुन पर सपरिवार ता..था..थाई..या करते देखना चाहता हूँ। मजीठिया देने में तुम जितनी देर करोगे,तुम्हारी सजा उतनी ही बढ़ती जायेगी। 6 महिने पहले तुम मेरे पास आकर रो लेते तो मै मान जाता लेकिन अब तो मै रुलाउंगा भी, चपत भी लगाउँगा, पाई पाई ब्याज सहित वसूलूंगा………..।
इधर, मजीठिया परिवार के जिंदादिल साथियो को अल्लाह के रहमोकरम का इंतज़ार है। इस बार होली पर दीवाली और ईद सी खुशियां मनाएंगे क्योंकि 2015 में अप्रैल फूल बनाने का मौका सेठ के हाथ से निकल गया है।