यूएनआई बोर्ड की सात दिसम्बर को हुई बैठक में संपादक अशोक उपाध्याय समेत कांट्रेक्ट पर काम कर रहे यूएनआई दिल्ली के 18 कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है।
संपादक पद के लिए किसी बाहरी व्यक्ति की नियुक्ति की गयी है जो संभवत: सोमवार को कार्यभार संभालेंगे।
यूएनआई के मूल कर्मचारियों की 48 महीने की सैलरी बकाया है जबकि हेड आफिस में कांट्रैक्ट पर कार्य कर रहे कर्मचारियों को हर महीने वेतन दिया जा रहा है. यूनियन अध्यक्ष सुरेश तिवारी ने इस मामले में पीएमओ को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की. कांट्रैक्ट पर कार्य कर रहे कर्मचारियों को अभी पत्र नहीं दिया गया है। इन्हे सोमवार को नये संपादक के कार्यभार ग्रहण करने के बाद पत्र दिया जायेगा।
संपादक अशोक उपाध्याय के सारे अधिकार सीज कर दिये गये है। उन्हें नये संपादक को चार्ज देने के बाद बाहर कर दिया जायेगा। बताया जा रहा है कि नये संपादक नवभारत ग्रुप (भोपाल से प्रकाशित) में कार्यरत हैं। नवभारत के ही मालिक यूएनआई बोर्ड में निदेशक के पद पर हैं।
कांट्रैक्ट पर कार्य करने वालों में जय अवस्थी, राजकुमार मित्रा, समेत कई पत्रकार शामिल हैं। ये सभी यूएनआई के पूर्व कर्मचारी थे जिन्हें अशोक उपाध्याय ने फिर से कांट्रैक्ट पर रख लिया।
ज्ञात हो कि अशोक उपाध्याय 31 मई को रिटायर हो गए थे। बाद में कांट्रैक्ट पर उन्हें फिर से पूरी सैलरी पर रखा गया। आरोप है कि उनके चार साल के र्काकाल में यूएनआई गर्त में चली गयी। प्रसार भारती ने अपने हाथ खींच लिये।
कहा जा रहा है कि बोर्ड ने कड़ा रुख अपनाते हुए कांट्रैक्ट पर काम करने का पैमाना तय किया है जिसमें यूएनआई के पूर्व कर्मचारियों को नहीं रखा जायेगा। कांट्रैक्ट पर काम करने चाले कर्मचारियों को मुंह देखकर वेतन दिया जा रहा है।
सेन्टरों में काम करने वाले यूएनआई के पूर्व कर्मचारियों को कांट्रैक्ट पर दिल्ली की तरह हर महीने वेतन नहीं दिया जा रहा था। फिलहाल इस सब कुछ को लेकर यहां काम करने वाले कर्मचारियों में असंतोष व्याप्त है।
यूएनआई में कार्यरत एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.
उपरोक्त पत्र के प्रकाशन के बाद ये एक प्रतिक्रिया आई है-
प्रिय यशवंत जी,
स्नेहवंदन
मेरा यह पत्र आपकी वेबसाइट में आज प्रकाशित ‘यूएनआई में उथल-पुथल’ से संबंधित खबर के बारे में है। मुझे इसलिए स्पष्टीकरण देना पड़ रहा है, क्योंकि इसमें आपने मेरे नाम का जिक्र किया है। यूनियन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जो पत्र लिखा है, उसका यूएनआई की बोर्ड की बैठक से कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि यूएनआई बोर्ड की बैठक आपकी स्टोरी के अनुसार, सात दिसम्बर को हुई है, जबकि यूनियन ने जो पत्र लिखा था वह पिछले माह नौ नवम्बर को लिखा गया था, जिसका मुख्य उद्देश्य प्रसार भारती की सेवा कटने के कारण यूएनआई कर्मियों की और खराब माली हालत को लेकर थी। आपको ज्ञात है कि प्रसार भारती ने पीटीआई और यूएनआई की सेवा 15 अक्टूबर से समाप्त कर दी थी, जिसके कारण पहले से ही आर्थिक तंगी की शिकार यूएनआई की स्थिति और खराब होने की पूरी आशंका थी। और इसी चिंता के मद्देनजर यूनियन ने कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए प्रसार भारती के फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध प्रधानमंत्री से किया था। इसलिए एक माह पुरानी बात का बोर्ड की बैठक से कोई लेना-देना नहीं है।
इसके साथ ही आपको यह भी अवगत कराना है कि बोर्ड की ओर से कांट्रेक्ट के कर्मचारियों की सेवा समाप्त करने की कोई जानकारी यूनियन के पास नहीं है। संस्थान में किसी कर्मचारी को रखना और हटाना बोर्ड का और प्रबंधन का विशेषाधिकार है, जिससे यूनियन का न तो कोई लेना-देना होता है, न ही कोई हस्तक्षेप। यदि बोर्ड ने कोई भी फैसला लिया होगा वह संस्थान की बेहतरी के लिए होगा, इतना विश्वास यूनियन को है और यूनियन ऐसे मामलों में अपनी कोई राय नहीं देती।
यूनियन के बेहतर भविष्य के लिए बोर्ड और कर्मचारी अपने-अपने हिस्से का काम कर रहे हैं और उम्मीद व्यक्त करते हैं कि बोर्ड के निदेशकों के संरक्षण और नेतृत्व में संस्थान अपना पुराना गौरव हासिल करेगा।
सस्नेह
सुरेश कुमार तिवारी
अध्यक्ष
यूएनआई वर्कर्स यूनियन, दिल्ली
उपरोक्त खबर पर अगर किसी को अपना कोई पक्ष या विचार रखना है तो मेल करें : [email protected]