Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

पुण्यतिथि पर स्मरण : पत्रकारिता में आर्थिक संकट पर पराड़कर जी ने क्या कहा था!

आलोक पराड़कर-

‘मैं नहीं चाहता कि जो अनुभव मुझे मिला, वह मेरे युवक मित्रों को भी मिले’

Advertisement. Scroll to continue reading.

बाबूराव विष्णु पराड़कर अपने सिद्धान्तों में दृढ़, अनुशासन में सख्त, शुद्धता के आग्रही और देशभक्ति के लिए घर-परिवार और सुख-सुविधाओं का त्याग करने वाले पत्रकार और क्रांतिकारी थे। अपने निर्णयों के कारण जीवन भर उन्हें आर्थिक संकट से गुजरना पड़ा, जीवन का बड़ा हिस्सा किराए के घरों में गुजरा, बार-बार घर बदलने के कष्ट उठाने पड़े। क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण जेलों में रहे, अंग्रेज शासन का विरोध करते हुए उसकी प्रताड़ना का शिकार हुए, समाचार पत्र तक बंद करा दिए गए लेकिन झुके नहीं, ‘रणभेरी’ जैसे माध्यमों से अपना प्रतिवाद दर्ज कराते रहे। पराड़कर जी का जीवन उनके विचारों की दृढ़ता में रचा-बसा है और इसके लिए बड़े से बड़ा कष्ट भी सहर्ष स्वीकारने की मिसाल है लेकिन किसी निर्णय के पीछे के असमंजस की प्रक्रिया से विरत नहीं है। एक आम इंसान की जरूरतों की कसौटी पर उन्हें भी तरह-तरह के अन्तरद्वंद्वों और अन्तरविरोधों से गुजरना पड़ता है। सिद्धांतों से समझौता न करने, अपने जमीर के कहे को सही समझते हुए वे भी और लोगों की तरह अपने कभी आत्मसंघर्ष के स्वरों को अनसुना करते रहे तो कभी स्वतः उनके जबाब ढूंढते रहे।

पराड़कर जी के एक उद्धरण की अक्सर चर्चा होती है जिसमें वे कहते हैं कि पत्रकारिता उनके गले पड़ी। भाव ये ही निकलता है कि वे परिस्थितियोंवश पत्रकारिता में आ गए होंगे लेकिन यहां यह भी याद रखा जाना चाहिए कि जब उन्होंने ‘हिन्दी बंगवासी’ में सहायक संपादक के विज्ञापन को देखकर आवेदन किया और 1906 में कोलकाता आकर इस पद को ग्रहण किया तो उसके ठीक पहले डाक-तार विभाग में नौकरी मिलने की सूचना उन्हें मिल चुकी थी। माता-पिता के निधन और बड़े परिवार की जिम्मेदारी के बीच पराड़कर जी चाहते तो इस सरकारी नौकरी को स्वीकार कर अधिक सुविधाजनक जीवन जी सकते थे लेकिन उन्होंने दृढ़ता पूर्वक पत्रकारिता और संपादक के रूप में देशसेवा को चुना। तो फिर पत्रकारिता के गले पड़ने का अर्थ, क्या ऐसा तो नहीं कि वे क्रांतिकारी होना चाहते थे और पत्रकारिता को चुनकर वे कोलकाता आ गए जिससे क्रांतिकारियों के करीब रह सकें। इसे उन्हें स्वीकारा भी है कि कोलकाता जाने का मुख्य उद्देश्य क्रान्तिकारी दल में शामिल होना था। उन्होंने वहां ‘हितवार्ता’ और ‘भारतमित्र’ में कार्य किया लेकिन गुप्त रूप से क्रांतिकारी दल गतिविधियों में शामिल होने के कारण उन्हें जेल और नजरबंद किया गया। बाद के वर्षों में उन्होंने कहा था, ‘कभी-कभी मैं सोचता हूं कि मैं वही पराड़कर हूं जो कलकत्ता की सड़कों पर दोनों जेबों में पिस्तौल डाले घूमा करता था।’

साढ़े तीन वर्ष के कारावास से जब वे मुक्त हुए और अपने गृहनगर वाराणसी आए तो उनके समक्ष एक नए समाचार पत्र ‘आज’ का प्रस्ताव था। उधर , कोलकाता के ‘भारतमित्र’ में भी उनकी प्रतीक्षा हो रही थी। लक्ष्मण नारायण गर्दे जो उसके संपादक हो गए थे, ने पराड़कर जी से वार्ता के बाद ‘भारतमित्र’ में इसकी घोषणा भी कर दी कि पराड़कर जी इसका संपादन करेंगे लेकिन पराड़कर जी वाराणसी रह गए और ‘आज’ से जुड़ गए। ‘आज’ से लंबे समय तक जुड़कर वे फिर ‘संसार’ में गए और लौटे भी। क्रांतिकारी होने के कारण गांधी के विचारों को लेकर भी उनके अग्रलेखों में असमंजस दिखता रहा। ईश्वर पर विश्वास को लेकर भी वे अन्तरविरोध से जूझते रहे, कभी इसे आत्मनिर्भरता में बाधक माना तो कभी झाड़-फूंक, परलोक विद्या में भी गहरी रुचि लेते दिखे। पराड़कर जी के अंतिम वर्ष काफी कष्ट में बीते। वे इस हद तक उपेक्षित थे कि उत्तर प्रदेश के मंत्रिपरिषद की बैठक में किसी मंत्री ने उनकी चर्चा पर पूछा था कि क्या पराड़कर जी अभी जिन्दा है? शायद ऐसे ही अनुभवों से गुजरकर पत्रकारिता को हमेशा सेवा का क्षेत्र मानने वाले पराड़कर जी ने यह भी कहा, ‘मेरे जीवन का कटु अनुभव यह है कि मनुष्य यदि विरक्त नहीं और उसे संसार में सुख से रहना हो तो उसे स्वार्थ की पूर्ण उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। हां उसे केवल स्वार्थ दृष्टि नहीं रखनी चाहिए, उसमें उभय दृष्टि होना चाहिए। मैं नहीं चाहता कि जो अनुभव मुझे मिला, वह मेरे युवक मित्रों को भी मिले।’

Advertisement. Scroll to continue reading.

(साभार- अमर उजाला)

https://youtu.be/9FcX4cTg91o
Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement