Connect with us

Hi, what are you looking for?

साहित्य

बच्चा लाल ‘उन्मेष’ के कविता संग्रह : ‘कौन जात हो भाई’ और ‘छिछले प्रश्न गहरे उत्तर’!

प्रिय दर्शन-

“कौन जात हो भाई’- इस सवाल के साथ ‘बच्चा लाल उन्मेष’ ने कुछ अरसा पहले अपनी कविता से हिंदी संसार को जैसे झकझोर दिया था। अब ‘छिछले प्रश्न गहरे उत्तर’ नाम से उनका पूरा संग्रह आ गया है। बल्कि उनके दो संग्रह आ गए हैं। दूसरे संग्रह का नाम है ‘कौन जात हो भाई’। इस संग्रह की भूमिका अनीता भारती ने लिखी है। जबकि ‘छिछले प्रश्न गहरे उत्तर’ की भूमिका मैंने लिखी है। तो‌ दोनों संग्रहों के लिए उन्मेष जी को बधाई। और प्रस्तुत है मेरी भूमिका।

Advertisement. Scroll to continue reading.

आईना दिखाने वाली बड़ी कविता

बड़ी कविता का एक गुण यह‌ भी होता है कि वह सीधे हमारे दिल में उतर आती है। वह अपने अर्थों में इतनी स्पष्ट और प्रखर होती है कि उसे किसी व्याख्या की ज़रूरत नहीं पड़ती। निःसंदेह कई बार व्याख्या ऐसी कविता का मोल कुछ बढ़ा देती है, उसके आस्वाद को नए धरातल और आयाम देती है।

लेकिन सीधे दिल में उतरने वाली कविता हमेशा बहुत बड़ी नहीं होती। हम बहुत सारे रोमानी गीतों से भी गुजरते हैं जो हमें अच्छे लगते हैं। हमारे सामने ऐसी रोमांटिक पंक्तियां आती हैं जो हमारे भीतर उतर सी जाती हैं लेकिन वे टिकतीं नहीं। वे कोई चुभन, कोई खलिश पैदा नहीं करतीं। तो बड़ी कविता की एक जो पूरक शर्त होती है, वह यह भी कि वह बिल्कुल पहले पाठ में हमारे भीतर उतर ही न जाए, बल्कि देर तक टिकी रहे, हमारे दिल में चुभती भी रहे और उसके नए-नए अर्थ खुलते रहें। मिर्ज़ा ग़ालिब ने जब लिखा था कि ‘कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीरे-नीमकश को / वह खलिश कहां से होती जो जिगर के पार होता’, तो एक तरह से वही यही याद दिला रहे थे कि जो तीर सीने के पार हो जाए उससे ज़्यादा चुभन वह तीर पैदा करता है जो दिल में गड़ा रहे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

जब पहली बार मैंने बच्चा लाल ‘उन्मेष’ की कविता ‘छिछले प्रश्न गहरे उत्तर’ पढ़ी तो मुझे इसी खलिश का सा एहसास हुआ था- कविता जैसे भीतर कहीं चुभ‌ गई थी और निकलने को तैयार नहीं थी। यह दलित कविता जैसे सवर्ण अहंकार और विनम्रता दोनों से अपना हिसाब मांग रही थी और दोनों को कठघरे में खड़ा कर रही थी। इसमें सदियों की हूक, उपेक्षा का अनुभव, शोषण की स्मृति- सब बोल रहे थे। मैंने इस पर एक टिप्पणी लिखी और उस क्रम में सारी कविता उद्धृत कर डाली। मैंने पाया कि जो खलिश मैं अपने भीतर महसूस कर रहा था, वह यह कविता दूसरों के भीतर भी पैदा कर रही है। अगले कुछ दिनों में देखते देखते इस कविता के ढाई लाख से ज्यादा पाठक हो चुके थे। हिंदी कविता की दुनिया में यह किसी करिश्मे से कम नहीं था। यहां तीन सौ और पांच सौ प्रतियों के संग्रह बिकते बिकते चुक जाते हैं। लेकिन एक अनजान कवि की एक कविता ऐसी है जो लगातार अपने पाठक बना रही है।
बच्चा लाल ‘उन्मेष’ का अब पूरा संग्रह आ रहा है। इस संग्रह की कई कविताएं उनकी सुपरिचित कविता की तीक्ष्णता की याद दिलाती हैं। लेकिन जो तीक्ष्णता, जो संप्रेषणीयता बच्चा लाल उन्मेष संभव करते हैं, क्या वह किसी काव्य कौशल से अर्जित होती है? क्या वह एकांत में की गई किसी शब्द साधना का नतीजा है? या शब्दों की सयानी कीमियागरी है कई बार जिनका जादू भी हमें बांधता है? बच्चा लाल ‘उन्मेष’ के संदर्भ में स्थिति लगभग उल्टी है। वे लगभग एक अनगढ़ कवि दिखाई पड़ते हैं। उनमें भाषा का लालित्य नहीं दिखता, उनमें शब्दों के सुघड़ मायने नज़र नहीं आते। उनकी कविता जैसे धूल, मिट्टी, पसीने, भीड़, समाज और नाइंसाफ़ी के दंश से निकलती नज़र आती है। बेशक वे कविता करने की कोशिश करते दिखाई पड़ते हैं, उनके यहां तुक का आकर्षण दिखाई पड़ता है, ग़ज़ल कहने की चाहत नज़र आती है, लेकिन इन कसौटियों पर तो उनकी कविता खरी भी नहीं उतरती।‌ इसे सुधारने की इच्छा होती है।

फिर वह क्या चीज़ है जो बच्चा लाल ‘उन्मेष’ को एक विशिष्ट कवि बनाती है? यह उनका अनुभव है जिससे उनकी कविता निकली है। दरअसल उन्मेष साबित करते हैं- या शायद उनसे अनायास यह साबित हो जाता है- कि असली कविता अनुभव की टकसाल से ही निकलती है। यह अनुभव संसार ही बच्चा लाल ‘उन्मेष’ की असली पूंजी है। वे दलित पृष्ठभूमि से आए लेखक हैं। जातिगत भेदभाव और अस्पृश्यता की चुभन उन्होंने निजी स्तर पर झेली है। लेकिन अनुभव अपने आप में रचना नहीं होता। अनुभव को जस का तस कह देने से रचना बनती है लेकिन वह भी बड़ी रचना नहीं होती। बड़ी रचना तब बनती है जब लेखक किसी अनुभव को अपने भीतर गहराई से उतरने देता है, उसे अपने तर्क और विवेक की कसौटी पर कसता हुआ उसके आधार पर कुछ नतीजे निकालता है, कुछ नया महसूस करता है और फिर इस नए अनुभव को रचता है। यह मिट्टी को एक चाक पर चढ़ाना है, उसे सधे हुए हाथों से एक आकार में डालना है। फिर कहना होगा कि लेकिन यह कारीगरी तभी संभव है जब आपके पास मिट्टी हो, उसे ठीक से गूंथने की सामर्थ्य हो और उसे एक आकार देने का सब्र हो।

Advertisement. Scroll to continue reading.

‘छिछले प्रश्न गहरे उत्तर’ कविता में बच्चा लाल जी ने अपनी इस शक्ति का पूरा परिचय दिया है। वे रोते-झींकते या फुफकारते नज़र नहीं आते, बल्कि बहुत तीखेपन के साथ व्यंग्य करते हैं। वे अपने ऊपर थोपी गई जातिगत हीनता पर शर्मिंदा नहीं होते, उल्टे यह बताते हैं कि ख़ुद को श्रेष्ठतर मनुष्य बताने वाला यह जो वर्चस्ववादी तबका है, वह दरअसल मनुष्य के रूप में कितना हीन है।‌ वह चुनावी राजनीति के उस छल छद्म को भी पकड़ते हैं जिसमें दलित अब भी इस्तेमाल की वस्तु हैं। वे उस यथास्थिति को बिल्कुल सटीक शब्दों में रख देते हैं जिसे बहुत सारी कविताएं छुपाने की कोशिश करती हैं या ठीक से व्यक्त नहीं कर पातीं।
संग्रह की दूसरी कविताओं में भी बच्चा लाल जी के ये तेवर दिखाई पड़ते हैं। वह सीधे-सीधे बात कहते हैं, लेकिन कहते-कहते कुछ ऐसा कह जाते हैं जिसकी झनझनाहट देर तक हमारे भीतर बनी रहती है। उनकी कविता प्रचलित मुख्यधारा के झूठ को तार-तार कर देती है और अपना एक दलित सत्य रखती है जो अब दलित और उत्पीड़ित होने को तैयार नहीं है। इस क्रम में कई बार वे इतिहास और मिथक कथाओं से भी टकराते हैं। ‘गुरु’नाम की कविता में वे लिखते हैं-
‘गुरु हो तो बुद्ध जैसा
जो अंगुलीमाल को सुधार दे
ना कि गुरु द्रोण सा
जो उंगली ही उतार रे।‘

बच्चा लाल ‘उन्मेष’ लगभग सीधी-दो टूक भाषा में कविता लिखते हैं। कई बार वे सपाटपन की हद तक चले जाते हैं। कई बार वे तुक की तलाश में ऊपर नीचे होते हैं। कई बार लय उनसे छूटती-टूटती नज़र आती है। लेकिन लगभग हर बार उनकी कविता में कोई एक तत्व जलते हुए शीशे सा सामने आ जाता है। जैसे उनकी नज़र उस यथार्थ से हटती नहीं जिसने समाज के एक बड़े हिस्से को बस अन्याय, उत्पीड़न और विषमता भरा- बल्कि लगभग पशुवत- जीवन दिया है। वे लिखते हैं-
‘गो हत्या के नाम पर
पिटेगा आदमी आम कब तक
सीता-शंबूक से अन्याय कर
बचेगा तेरा राम कब तक
आने वाली पीढ़ी सहेगी
चुप रहने का अंजाम कब तक
अपनी नज़र तो सही रख
वस्त्रों पर इल्ज़ाम कब तक
गोडसे की बंदूक के नाम
गांधी का इनाम कब तक?’

Advertisement. Scroll to continue reading.

यह साफ़ नज़र आता है कि बच्चा लाल ‘उन्मेष’ में वर्तमान की विडंबनाओं, इतिहास के छल और मिथक-कथाओं के निहितार्थों की समझ पूरी पक्की है। वे एक ही सांस में गोकशी, गांधी-गोडसे और शंबूक-राम तक को ले आते हैं। वे जिस तीखेपन से पूछते हैं कि ‘बचेगा तेरा राम कब तक’ उससे लगता है कि वे बिल्कुल चीज़ों को तहस-नहस कर देने की तड़प से भरे कवि हैं।
दरअसल बच्चा लाल ‘उन्मेष’ के यहां जितनी कविता है, उससे ज़्यादा काव्य तत्व है। वे बिल्कुल किसी खदान से निकले पत्थर हैं जिसे तराशा जाना बाक़ी है। कई बार यह पत्थर बिल्कुल अनगढ़-बेडौल हो उठता है। लेकिन यह साफ़ दिखता है कि बच्चा लाल जी ने यह कविता किसी संग्रहालय में सजाए जाने लायक हीरा बनने के लिए नहीं लिखी है, उठाकर उछाले जाने लायक पत्थर बनने के लिए ही लिखी है। यह उनका इरादा हो न हो, फिलहाल उनकी नियति है। उनकी कविता एक उछाला गया पत्थर है- कभी वह आसमान में सूराख करती है, कभी माथे पर ज़ख़्म बनाती है, कभी हमारे दाएं-बाएं से सनसनाती हुई निकल आती है, कभी-कभी दिशाहीन कहीं जा गिरती है, और कभी कुछ नीचे से लौट आती है, लेकिन यह भ्रम नहीं रहने देती कि वह महज कविता है और कविता होने के लिए लिखी गई है। वैसे तो हम सबकी पाठशाला जीवन की पाठशाला होती है, लेकिन बच्चा लाल जी के संदर्भ में यह बात कुछ ज़्यादा सच लगती है। वे इसे लिख भी डालते हैं-
‘शिक्षक है मेरी मां के हाथों बेची गई वह लकड़ी
गिरवी रखी बाप की गर्दन वो पांव के नीचे पगड़ी
शिक्षक हैं वे ज़मीन के टुकड़े जो बिकते दर ब दर
तंग हाथ की कलम स्याही नरकट की वो लकड़ी
शिक्षक है खेतों की शुष्क भूमि की उड़ती हुई धूल
और किसान के ख़ून पसीने से उपजी हुई वह ककड़ी।‘

एक बात कहना ज़रूरी है। बच्चा लाल उन्मेष दलित कवि हैं, लेकिन दलित कविता के दायरे में बंधना उन्हें पसंद नहीं। वे अपनी इस पहचान पर बहुत ज़ोर नहीं देते। उन्हें लगता है कि उनकी कविता इस पहचान को अतिक्रमित करे। एक तरह से देखें तो यह दलित कहलाने का संकोच नहीं, बल्कि मुख्य धारा की उस ज़मीन की ओर बढ़ने और उस पर पांव जमाने का ख़याल है जो दलित-कविता का एक दायरा बना कर उसे हाशिए पर डाल देती है। निश्चय ही अस्मितावादी राजनीति और विचार के इस दौर में ऐसी पहचानों का मोल होता है। ख़ुद को दलित या आदिवासी या स्त्री के रूप में पहचानना यह घोषणा करना भी है कि हम अपनी इस पहचान को लेकर किसी हीनभावना से नहीं घिरे हैं और इसके प्रति होने वाले अन्यायों को लेकर सजग हैं, लेकिन इस पहचान को अपना सुरक्षित घेरा बना लेने के मुक़ाबले इसके बाहर आकर अपनी ज़मीन बड़ी करने की रणनीति भी दलित वैचारिकी का अहम हिस्सा होनी चाहिए। जाने-अनजाने हमारा कवि यह काम करता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

बच्चा लाल ‘उन्मेष’ की कविता में निरा वर्तमान भी है और अतीत के छूटे हुए प्रश्न भी। वे महामारी, जातिवाद, सांप्रदायिकता, राजनीतिक भ्रष्टाचार, कठमुल्लापन सब पर प्रहार करते हैं। वे एक ही सांस में याद करते हैं कि अंबेडकर, पेरियार, बुद्ध और कबीर की शिक्षा को कैसे धत्ता बताया जा रहा है।
इन कविताओं से गुज़रते हुए एक और सवाल ध्यान खींचता है। क्या दलित कविता का कोई अलग सौंदर्यशास्त्र नहीं होना चाहिए? क्या किसी कविता की सौंदर्यशास्त्रीय ज़रूरत उस अनुभव से अनिवार्यत: बंधी नहीं होती जिससे वह कविता निकलती है? इस ढंग से देखें तो फिर हर कविता अपने अलग और विशिष्ट सौंदर्य विधान की मांग करती है। लेकिन हमारे अनुभव का संसार हमारी सामाजिकता से ही निकलता है इसलिए सौंदर्यशास्त्र का भी एक सामाजिक व्याकरण होता है। जिसे हम मुख्यधारा की कविता के रूप में पहचानने के आदी हैं, उसकी बहुत सारी अभिव्यक्तियां कई बार आपस में बहुत मिलती-जुलती ही नहीं एक दूसरे को दोहराती भी मालूम होती हैं। यह इसलिए कि यह सब एक सामान्य सामाजिक अनुभवों से निकली कविताएं हैं आर इनका संवहन करने वाली भाषा भी एक ही है।
बच्चा लाल ‘उन्मेष’ की कविता एक अलग तरह की सामाजिकता से आती है तो उसका सौंदर्य-बोध भी अलग तरह का है। वे गीतों-ग़ज़लों की ओर ज़्यादा आकृष्ट हैं, कहीं-कहीं तत्समबहुल शब्दावली में कुछ प्रयाणगीतनुमा कविता लिखते भी पकड़े जाते हैं, लेकिन उनके प्रतीकों में, उनके चुने हुए रूपकों में बहुत वैध क़िस्म की टीस दिखाई पड़ती है- ऐसी टीस जो कवि के साथ-साथ पाठकों को भी छलनी करती है। छिछले प्रश्नों से भरी हमारी दुनिया में वह अपनी ओर से गहरे उत्तर प्रस्तावित करती है- बल्कि वे उत्तर वहां हैं जिनकी अनदेखी का हमने अभ्यास विकसित कर लिया है। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि ऐसे गहरे उत्तरों वाली कविता हमें आने वाले दिनों में भी बच्चा लाल ‘उन्मेष’ सुलभ कराते रहेंगे- और इसकी मार्फ़त अपने समय और समाज को पहचानने, उसे आईना दिखाने और बदलने का काम करते रहेंगे।

Advertisement. Scroll to continue reading.
1 Comment

1 Comment

  1. gunja

    July 3, 2022 at 1:30 pm

    नैतिकता, मानवता एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से युक्त युवा कवि को धन्यवाद अपनी रचना से समाज को सजग करते रहें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement