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सुख-दुख

धरती का ऑल टाइम फेवरेट नियम- ज़िंदा रहना है तो दूसरों को मारो-काटो-खाओ : बाबा भड़ासी

यशवंत सिंह-

हुत ध्यान से बहुत बारीकी से जीवों पक्षियों जलचरों की दुनिया को देखिए। एक ज़िंदा रहने के लिए दूसरे को खा रहा है। एक ईगल एक जिंदा मछली पकड़ ले आया अपने घोसले में। बच्चों को खिलाने। वहाँ रखवाली कर रहे दूसरे ईगल ने तड़पती मछली को अपने कंट्रोल में लिया। चोंच से मछली का मुँह पकड़ कर अपने क़रीब सरकाया और पंजे से जकड़ लिया। दो छोटे छोटे बच्चे मुँह खोले खाने के लिए चिचियाने लगे। ईगल ने तड़पती मछली के मुँह को नोच नोच कर अपने बच्चों को खिलाना शुरू कर दिया। मछली का तड़पना जारी रहा। और बच्चों का खाना। बहुत देर तक ये देखता सोचता रहा। कई कई एंगल से सोचता रहा। मन दुख अवसाद से भर गया ये वीडियो देख कर!

ये वीडियो मैंने यहीं एफ़बी पर देखा। आप जो देखते हैं, वैसा ही कंटेंट वाला वीडियो दिखाता है। अलगोरिदम का दम है। एंगेज रखना है। बिना व्यस्तता के हम व्यस्त हैं। इंस्टा एफबी एक्स किए जा रहे हैं। वॉट्सअप तो लाइफ है, मिस कर ही नहीं सकते।

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मेरा फ़ोन दिल्ली पुलिस वालों ने जब ज़ब्त कर लिया था तो ज़िंदगी में थोड़ा चैन आ गया था। लैपटॉप जब खोलता तो ऑनलाइन दुनिया से हाथ मिला पाता। चौबीस घंटे में दो बार लैपटॉप खोलता। फिर ख़ाली हाथ घूमता। ऐसा लगता जैसे कुछ मिसिंग है जीवन से। भला मोबाइल बिना ज़िंदा रहा जा सकता है?

भड़ास जब शुरू किया था तो कई साल लगता रहा मैं कुछ नहीं कर रहा हूँ क्योंकि कहीं किसी ब्रांड की नौकरी नहीं कर रहा सुबह बारह से नौ वाली या नौ से छह वाली! ग़ुलाम को बेड़ियों से मुक्त कर दो तो वो बार बार जंजीर खोजेगा, मेंटल कंडीशनिंग ऐसी हो जाती है / कर दी जाती है।

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ज़रूरी नहीं हम जो कहें लिखें उसका सुर लय ताल सब सही हो। हम कह रहे हैं। आप कनेक्ट कर सकें तो ठीक वरना अपनी दुनिया में डूब जाइए! हम सब अपनी अपनी गतिविधि और गंतव्य को ख़ुद के साथ लाये हैं। प्री-प्रोग्राम्ड हैं हम।

ऐसा लगता है जैसे ब्रह्मांडों में यत्र तत्र जहां जहां अति उन्नत सभ्यताएँ हैं, उनके नर्क के रूप में निरूपित है ये पृथ्वी। यहाँ एक के ज़िंदा रहने और ताकतवर बनने की शर्त है दूसरे का मारा जाना फिर उसका खाया जाना। ईगल वाले उदाहरण में तो बेचारी मछली बिना पूरी तरह मारे ही खाई जाने लगी। (वीडियो लिंक कमेंट बॉक्स में डाल दिया हूँ)

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बुद्ध को ज्ञान व्यान कुछ नहीं मिला था। उन्होंने धरती के इस खूनी चक्र के नंगे खेल को नंगी आँखों से देख लिया था, फिर समझ लिया था। उन्होंने तब इतना कहा- अति न करो, मध्यम मार्ग अपनाओ, बेस्ट है!

समझने वाले समझ गये और जो नहीं समझे उसे कोर्स की किताब में शामिल करवा दिया ताकि बच्चे केवल रटें और पास होकर नौकरी पाएँ और खूनी खेल में शामिल हो जायें!

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हम कुछ ऊँचाई पर एकांत चिंतन करने पहुँचे तो वहाँ शीर्ष पर आराम फ़रमा रहे इस काले प्यारे ने अंगड़ाई लेने के बाद पोज देना शुरू कर दिया।

वैसे तो भरी जवानी में इस संसार को लेकर उत्सुकता रोमांच ख़त्म था पर ‘समय बिताने के लिए करना है कुछ काम’ की तर्ज़ पर हम कबीर माफ़िक़ जीने के वास्ते अपनी चदरिया बुनते रहे और जगाने के वास्ते भड़ास निकालते रहे।

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एक वक़्त ऐसा आता है जब जीने जगाने दोनों की निरर्थकता समझ आने लगती है। तब बुनाई मशीनें अंधेरे के गले लग सो जाती हैं, मुँह से मौन झरने लगता है।

घनघोर मौन में भी कभी कभी बहुत ज़ोर से बोलने का मन करता है तो लिखने लगता हूँ।

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समझिए ऐसे ही बस ये लिखा गया! जै जै…

भड़ास4मीडिया के फाउंडर एडिटर यशवंत की FB वॉल से….

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