Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

एक महिला मुख्यमंत्री की बीमारी पर इतना बवाल… !

जयललिता बीमार हैं। वे अब 68 साल की हैं और यह नहीं पता कि आप जब यह पढ़ रहे होंगे, तब वे बीमारी से निजात पाकर अस्पताल से अपने घर आ चुकी होंगी या वहीं इलाज करा रही होंगी। लेकिन उनकी बीमारी को लेकर तमिलनाड़ु में ही नहीं, देश भर में जो कोहराम मचा हुआ है वह इससे पहले भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास में कभी किसी ने नहीं देखा। एक सीएम के बीमार होने को किसी राष्ट्रीय संकट के सात्विक स्वरूप में देश के सामने खड़ा कर दिए जाने की संभवतया यह पहली घटना है। बाहर क्या घट रहा है, इससे बिल्कुल नावाकिफ जयललिता अस्पताल में जिस अवस्था में हैं, उसके बारे में डाक्टर ही बेहतर बता सकते हैं। लेकिन एक लौहमहिला के शुभचिंतक और अशुभचिंतक दोनों ही इस बार कुछ ज्यादा ही चिंतित है।

<p>जयललिता बीमार हैं। वे अब 68 साल की हैं और यह नहीं पता कि आप जब यह पढ़ रहे होंगे, तब वे बीमारी से निजात पाकर अस्पताल से अपने घर आ चुकी होंगी या वहीं इलाज करा रही होंगी। लेकिन उनकी बीमारी को लेकर तमिलनाड़ु में ही नहीं, देश भर में जो कोहराम मचा हुआ है वह इससे पहले भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास में कभी किसी ने नहीं देखा। एक सीएम के बीमार होने को किसी राष्ट्रीय संकट के सात्विक स्वरूप में देश के सामने खड़ा कर दिए जाने की संभवतया यह पहली घटना है। बाहर क्या घट रहा है, इससे बिल्कुल नावाकिफ जयललिता अस्पताल में जिस अवस्था में हैं, उसके बारे में डाक्टर ही बेहतर बता सकते हैं। लेकिन एक लौहमहिला के शुभचिंतक और अशुभचिंतक दोनों ही इस बार कुछ ज्यादा ही चिंतित है।</p>

जयललिता बीमार हैं। वे अब 68 साल की हैं और यह नहीं पता कि आप जब यह पढ़ रहे होंगे, तब वे बीमारी से निजात पाकर अस्पताल से अपने घर आ चुकी होंगी या वहीं इलाज करा रही होंगी। लेकिन उनकी बीमारी को लेकर तमिलनाड़ु में ही नहीं, देश भर में जो कोहराम मचा हुआ है वह इससे पहले भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास में कभी किसी ने नहीं देखा। एक सीएम के बीमार होने को किसी राष्ट्रीय संकट के सात्विक स्वरूप में देश के सामने खड़ा कर दिए जाने की संभवतया यह पहली घटना है। बाहर क्या घट रहा है, इससे बिल्कुल नावाकिफ जयललिता अस्पताल में जिस अवस्था में हैं, उसके बारे में डाक्टर ही बेहतर बता सकते हैं। लेकिन एक लौहमहिला के शुभचिंतक और अशुभचिंतक दोनों ही इस बार कुछ ज्यादा ही चिंतित है।

तमिलनाड़ु की मुख्यमंत्री जयललिता को बीते 22 सितंबर को बुखार और डिहाइड्रेशन की शिकायत हुई, तो वे चेन्नई के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराई गईं। लेकिन उनकी इस बीमारी की खबर फैलते ही राजनीतिक चक्र पता नहीं कैसे इतनी तेजी से घूमा कि वे जैसे ही अस्पताल में गईं, उनकी सेहत को लेकर, समाज से लेकर सांसदों में और विपक्ष से लेकर विरासत संभालनेवालों तक में हर स्तर पर हर तरह के कयास लगाए जाने लगे। तमिलनाड़ु का विपक्ष उनकी पार्टी ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पर मुख्यमंत्री की सेहत की जानकारी छिपाने का आरोप लगाते हुए सरकार से इस पर बयान जारी करने की भी मांग कर रहा है। तो बीमारी को लेकर मद्रास हाईकोर्ट में पीआईएल भी लगाई गई। जयललिता के स्वस्थ होने तक अंतरिम मुख्यमंत्री नियुक्त करने की मांग तक की गई। वह भी उस प्रदेश में, जिसने करुणानिधि जैसे बेहद बीमार वृद्ध को बरसों तक सीएम के रूप में देखा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

माहौल ऐसा बनाया गया है जैसे आज तक किसी प्रदेश के सीएम बीमार ही नहीं हुए हों। देश में संभवतया यह पहली बार हुआ है कि किसी सीएम की बीमारी को इस कदर राजनीतिक रंग देने की कोशिश की गई हो और निहायत द्वेषपूर्ण तरीके से सोशल मीडिया पर जयललिता को दिन में कई कई बार मरा हुआ भी घोषित कर दिया गया हो। तमिलनाडु पुलिस ने अपनी मुख्यमंत्री की सेहत के बारे में गलत और जानकारी फैलाने के आरोप में कुल 44 मामले दर्ज किए हैं। और दो लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है। लेकिन लोग हैं कि अफवाहें फैलाने से बाज ही नहीं आ रहे। शुक्र है जयललिता जिंदा है और जिंदगी को जिस भी हाल में जी रही है, वहां से वे ठीक होकर लोटें, यह कामना करनेवालों की भी कमी नहीं है।

दरअसल, जयललिता ठीक हैं भी और ठीक नहीं भी हैं। ठीक वह इस मायने में हैं कि उम्र के जिस दौर में वे हैं, उसमें शरीर वैसे भी कोई बहुत ज्यादा समर्थ अवस्था में साथ नहीं देता। उम्र के लिहाज से वे सत्तर साल के करीब हैं और इस उम्र में असकर सारे लोग अस्पताल आते जाते रहे हैं। लेकिन अगर जयललिता को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पड़ी, तो ठीक है। पर, बार बार उनको लेकर किसी भी तरह की अफवाहें उड़ाने की किसी को छूट क्यों दी जानी चाहिए। 

Advertisement. Scroll to continue reading.

तमिलनाड़ु में 32 साल से चली आ रही हर बार सरकार बदलने की परंपरा का राजनीतिक इतिहास उलटते हुए जयललिता लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए इसी साल 23 मई 2016 को छठी बार मुख्यमंत्री के बनीं थीं। तब से लेकर आज तक करुणामिधि और उनकी पार्टी ने जयललिता के खुंदक निकालने का कोई मौका नहीं छोड़ा। ताजा विवाद के पीछे भी करुणनिधि की पार्टी डीएमके का कमाल ज्यादा माना जा रहा है। कर्नाटक के मंड्या जिले के पांडवपुरा तालुका के मेलुरकोट गांव में 24 फ़रवरी 1948 को एक ‘अय्यर’ परिवार में जन्मी जयललिता देश की राजनीति में ताकतवर महिला के रूप में अपने चमत्क़त कर देनेवाले अंदाज में आज भी हैं और कल भी थीं।

डीएमके पार्टी के करुणानिधि से उनकी व्यक्तिगत दुश्मनी की हदें दुनिया देख ही चुकी हैं। लेकिन उनकी ताकत को भी लोग मानते हैं। इसी कारण तमिलनाड़ु के लोग जयललिता को आदर के साथ अम्मा कहते हैं। वे खबरों को अपने तानेबाने में बुनती रही है। शायद, यही वजह है कि उनका अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती होना भी रोज खबरों पर खबरें बरसाए जा रहा है। रोज कोई न कोई बड़ा नेता जयललिता से मिलने अस्पताल पहुंच रहा हैं। कांग्रेस के राजकुमार राहुल गांधी भी चार दिन पहले उनसे अस्पताल जाकर मिल आए हैं। हालांकि कुछ साल पहले पता नहीं किस मंशा में सुश्री जे. जयललिता ने कांग्रेस को भंग करने की बात कही थी। और अपनी बात को साबित करने के लिए बहुत सारे साक्ष्य भी खोज लिए थे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

जयललिता का कहना था  कि देश की स्वतंत्रता के बाद महात्मा गांधी कांग्रेस पार्टी को भंग करना चाहते थे। अपनी बात साबित करने करने लिए अम्मा आक्रामक रूप से जो बहुत सारे दस्तावेज भी लाई थीं। उनमें से ‘दी कलेक्टेड वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी-वॉल्यूम 90’ के वे कुछ अंश भी उन्होंने विधानसभा में पढ़े, जिनमें महात्मा गांधी ने यह भावना व्यक्त की थी कि देश आजाद हो गया है, अब कांग्रेस की जरूरत नहीं है। जयललिता ने तब यह भी कहा था कि कांग्रेस को अब समाप्त कर देना चाहिए। उस समाप्त कर दी जानेवाली कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी का दिल्ली की रैली में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शहीदों के खून का दलाल बताने के दूसरे ही दिन जयललिता का हाल जानने चेन्नई पहुंचना बहुत लोगों को भले ही समझ में नहीं आया। लेकिन इस यात्रा की राजनीतिक सोच यही थी कि प्रधानमंत्री को शहीदों के खून का दलाली करनेवाला बताने से मचे हंगामे से मामला जयललिता के स्वास्थ्य की तरफ शिफ्ट हो जाएगा। मतलब, साफ है कि राहुल गांधी ने भी जयललिता की बीमारी को भी अपने लिए राजनीतिक ढाल के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश की।

कुल मिलाकर जयललिता बीमार है और ईश्वर करे, उन्हें कोई बहुत गंभीर बीमारी भले ही न हो, लेकिन लोग उसे कुछ ज्यादा ही गंभीरता से ले रहे हैं, यह बहुत ज्यादा गंभीर बात है।। उनकी बीमारी पर पर विवाद भी बहुत हो रहा है। लेकिन असल में देखें, तो विवादों को जन्म देना तो असल में जयललिता का शगल रहा है और उनसे घिरे रहना उनकी किस्मत का हिस्सा। विवाद शायद इसीलिए जयललिता का पीछा नहीं छोड़ते।

Advertisement. Scroll to continue reading.

वैसे जयललिता रणनीति की भी उस्ताद रही हैं। वे एक सोची समझी रणनीति के तहत अपनी हीरोइन मां का दामन थामकर किसी लाजवंती नायिका की तरह तमिल सिनेमा में आईं और एमजीआर के नाम से बहुत प्रसिद्ध तब के वहां के सुपर स्टार एमजी रामचंद्रन की परम सखी के रूप में छा जाने की रणनीति में कब सफल हो गईं, किसी को पता भी नहीं चल सका। बाद में रामचंद्रन राजनीति में घुसे। चूंकि वे सुपर स्टार थे, इसलिए उनके नाम से पार्टी चलने लगी। और राजनीतिक कारणों से तो नहीं पर श्रृंगारिक कारणों की वजह से अपनी रणनीतियों के तहत जयललिता स्वयं को एमजीआर का सच्चा उत्तराधिकारी मानती थीं, जिसमें वे सफल भी रहीं।

एमजीआर की बाकायदा धर्मपत्नी होने के बावजूद बेचारी जानकी तो कहीं किसी भी परिदृश्य में भी नहीं थी। हर जगह जयललिता ही एमजीआर के साथ दिखतीं। उन रणनीतिबाज जयललिता से कांग्रेस का कलह शुरू से ही रहा। लेकिन फिर भी वे कांग्रेसियों के फाइनेंस की हुई फिल्मों में भी जयललिता भरपूर नखरे किया करती थी। छठी बार सीएम बनना कोई हंसी खेल नहीं है। यह राजनीति का शिखर है। उसी शिखर पर बैठी अम्मा अकसर लोगों को मुंहतोड़ जवाब देती रही हैं। राजनैतिक जीवन के दौरान जयललिता पर सरकारी पूंजी के गबन, गैर कानूनी ढंग से भूमि अधिग्रहण और आय से अधिक संपत्ति के आरोप लगे। उन्हें आय से अधिक संपत्ति के एक मामले में सजा भी हुई और मुख्यमंत्री पद भी छोड़ना पड़ा पर वे कभी जिंदगी से नहीं हारी नहीं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

भीषण किस्म के भ्रष्टाचार के मामलों और कोर्ट से सजा होने के बावजूद वे अपनी पार्टी को संसद से लेकर विधानसभा में भारी बहुमत के साथ जिताने में सफल रहीं। इसीलिए जो लोग अम्मा को जानते हैं, वे यह भी मानते ही हैं कि अस्पताल की भवबाधाओं से मुक्ति पाने के बाद वहां से बाहर निकलकर जयललिता के शरीर ने साथ दिया तो, वे चुप नहीं रहेंगी, यह तय है। वैसे भी हर बात पर कोहराम मचाना और कुछ भी चुपचाप सहन कर जाना उनकी आदत का हिस्सा नहीं है।

लेखक निरंजन परिहार राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement