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सीएम शिवराज ने किया ‘आंखों देखी फांसी’ का लोकार्पण

भोपाल : किताब ‘ऑंखों देखी फांसी’ एक रिपोर्टर के रोमांचक अनुभव का दस्तावेज है. किसी पत्रकार के लिये यह अनुभव बिरला है तो संभवत: हिन्दी पत्रकारिता में यह दुर्लभ रिपोर्टिंग. लगभग पैंतीस वर्ष बाद एक दुर्लभ रिपोर्टिंग जब किताब के रूप में पाठकों के हाथ में आती है तो पीढिय़ों का अंतर आ चुका होता है. बावजूद इसके रोमांच उतना ही बना हुआ होता है जितना कि पैंतीस साल पहले. एक रिपोर्टर के रोमांचक अनुभव का दस्तावेज के रूप में प्रकाशित ये किताब हिन्दी पत्रकारिता को समृद्ध बनाती है. देश के ख्यातनामा पत्रकार गिरिजाशंकर की इस किताब का विमोचन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने गत दिनो किया. इस अवसर पर कार्यक्रम में सम्पादक श्रवण गर्ग भी उपस्थित थे.

भोपाल : किताब ‘ऑंखों देखी फांसी’ एक रिपोर्टर के रोमांचक अनुभव का दस्तावेज है. किसी पत्रकार के लिये यह अनुभव बिरला है तो संभवत: हिन्दी पत्रकारिता में यह दुर्लभ रिपोर्टिंग. लगभग पैंतीस वर्ष बाद एक दुर्लभ रिपोर्टिंग जब किताब के रूप में पाठकों के हाथ में आती है तो पीढिय़ों का अंतर आ चुका होता है. बावजूद इसके रोमांच उतना ही बना हुआ होता है जितना कि पैंतीस साल पहले. एक रिपोर्टर के रोमांचक अनुभव का दस्तावेज के रूप में प्रकाशित ये किताब हिन्दी पत्रकारिता को समृद्ध बनाती है. देश के ख्यातनामा पत्रकार गिरिजाशंकर की इस किताब का विमोचन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने गत दिनो किया. इस अवसर पर कार्यक्रम में सम्पादक श्रवण गर्ग भी उपस्थित थे.

किताब लोकापर्ण समारोह में मुख्यमंत्री ने कहा कि उनके लिये यह चौंकाने वाली सूचना थी कि फांसी की आंखों देखा हाल कव्हरेज किया गया हो. गिरिजा भइया जितने सहज और सरल हैं और उतने ही संकोची भी बल्कि वे भारतीय संस्कृति के प्रतीक हैं। सम्पादक श्रवण गर्ग ने कहा कि यह किताब रिपोर्टिंग का अद्भुत उदाहरण है. एक 25 बरस के नौजवान पत्रकार की यह रिपोर्टिंग हिन्दी पत्रकारिता के लिये नजीर है. 

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गिरिजाशंकर ने अपने अनुभव साझा करते हुये कहा कि यह किताब कोई शोध नहीं है और न कोई बड़ी किताब, लाईव कव्हरेज एवं अनुभवों को पुस्तक के रूप में लिखा गया है. 25 बरस की उम्र में जब मुझे फांसी का लाइव कव्हरेज करने का अवसर मिला था, तब यह इल्म नहीं था कि कौन सा दुर्लभ काम करने जा रहे हैं. अखबार में फांसी का लाइव कव्हरेज प्रकाशित हो जाने के बाद जब देशभर में यह रिपोर्टिंग चर्चा का विषय बनी तब अहसास हुआ कि यह रिपोर्टिंग साधारण नहीं थी. उल्लेखनीय है कि वर्तमान छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर के सेंट्रल जेल में वर्ष 1978 में बैजू नामक अपराधी को चार हत्याओं के लिये फांसी की सजा दी गई थी. 

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0 Comments

  1. Devendra Surjan

    April 27, 2015 at 5:34 pm

    Shri Girijashankar kii Aankhon Dekhi Pfansii ke pustakakaar prakashan par unhen bahut bahut badhaiyaan aur shubhkaamnaayen. Girija aur Sunil Kumar ne jis tarah pahli baar Beju kii phaansi kaa aankhon dekha chitran Desh Bandhu mein kiya tha uski charcha desh ke kone kone mein hui thi . Tatkaaliin jail mantri Shri Pawan Diwan ne is live coverage kii permision dekar badi himmat kaa kaam kiya tha. Ab jabki yah reporting pustakakaar ho gai hai naye pathakon ko nai jaankari milegi aur romaanch bhi bharpoor milegaa .

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