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सुख-दुख

मेरे पास कोई बड़ा और महान मकसद नहीं है इस पृथ्वी पर रहने का!

सिद्धार्थ तबिश-

उन्नत्तीस की उम्र में बुद्ध ने घर छोड़ा.. छः साल वो इधर उधर विभिन्न आश्रमों, ऋषियों और गुरुर्वों को आज़माते रहे.. सब के पास वो इस प्रश्न के साथ जाते थे कि “दुःख क्या है और इसका निवारण क्या है”.. सारे आश्रम, गुरु और ऋषि उनको वही रटी रटाई शिक्षा देते रहे.. कोई कहता भूखे रहो.. कोई कहता तप करो.. कोई कहता मंत्रोच्चारण करो.. कोई कहता वेद पढ़ो..

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छः साल बुद्ध इन सब लोगों से वही पुरानी बातें सुनते रहे.. उन्होंने वो सब कर के देखा जो जो इन ऋषि मुनियों ने कहा.. भूखे रहे.. शरीर जीर्ण कर लिया.. चलने और उठने बैठने की ताक़त तक न बची.. फिर अंत मे थक कर बोधि वृक्ष के नीचे बैठ गए.. और प्रण लिया कि जब तक ज्ञान नहीं मिलेगा, यहां से हिलूंगा नहीं.. मगर उनके पांच शिष्य जो इस समय तक उनके साथ थे, उन्हें छोड़कर भाग गये.. क्योंकि उन्हें लगा कि ये अगर ऋषि मुनियों की बात भी अब नहीं मानते हैं, तो ये अब किस काम के हैं.. ये भटक चुके हैं.

गौतम बुद्ध की यह प्रतिमा पहली सदी की है। करीब दो हजार साल पुरानी यह कुषाण कालीन प्रतिमा उज्बेकिस्तान में मिली थी। यह मूर्ति तरमेज शहर के पुरातत्व संग्रहालय में रखी हुई है।
स्रोत- इंडियन हिस्ट्री पिक्स

और उसी रात उन्हें बुद्धत्व मिला.. सृष्टि ने उन के सामने अपने सारे राज़ खोल दिये.. सारे पर्दे गिर गए.. जिस प्रश्न को लेकर वो छः साल भटके, उसका उत्तर उन्हें उस एक रात में मिल गया.. उन्होंने देखा कि दुःख क्या है, उसका कारण क्या है.. उस से मुक्ति कैसे संभव है और उस मुक्ति का मार्ग क्या है.. बुद्ध ने उस रात देखा कि कैसे ये सारी सृष्टि एक दूसरे से जुड़ी हुई है और कैसे एक दूसरे के बिना यहां कोई भी जीवन संभव नहीं है.. उन्होंने देखा कि कैसे ये वृक्ष और जीव, सब एक हैं.. एक ही प्राण ऊर्जा है जो सब मे बहती है

इस बोध के बाद बुद्ध ने जिस आनंद को पाया, वो अकल्पनीय था.. बुद्धत्व को प्राप्त करने के बाद बुद्ध बोधि वृक्ष के नीचे ध्यान की परमानंद मुद्रा में पूरे उन्ननचास (49) दिन तक बैठे रहे.. 49 दिन उनके लिए एक क्षण के समान था क्योंकि वो जिस परमानंद की अवस्था मे थे वहां न तो समय का बोध बचा था और न संसार का.. बिना किसी अन्न और जल के वो 49 दिन उसी पेड़ के नीचे बैठे रहे और स्वयं में डूबे रहे

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एक लड़की.. जो जंगल मे अपने जानवर चराने आयी थी, जब उसने बुद्ध जो देखा तो वो उनके पास गई.. मगर बुद्ध वैसे ही ध्यान मग्न रहे.. फिर वो दौड़कर अपने घर गयी और वहां से एक कटोरी खीर लायी और बुद्ध के पैर छू कर उसने उनके आगे वो खीर रख दी.. फिर उस खीर की सुगंध से बुद्ध ने आँखें खोली.. और फिर उन्होंने वो खीर खाई

वो खीर थी.. उसकी सुगंध थी.. उसका मज़ा था जिस ने बुद्ध को वापस इस धरती से जोड़ दिया.. वरना शायद बुद्ध वैसे ही समाधि में चले जाते और शायद ये शरीर त्याग देते

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क्या आप जानते हैं कि वो क्या क्या छोटी छोटी नगण्य चीजें हैं जो आपको इस संसार और इस धरती से जोड़ कर रखती हैं? क्या आपने कभी उन छोटे छोटे बंधनों को महसूस किया है जो आपको जीवित रहने को बाध्य करते हैं?

मेरे सूफ़ी गुरु मुझ से अक्सर कहा करते थे कि “ताबिश बेटा, क्या तुम जानते हो अगर मैं इस ज़मीन पर दुबारा आऊंगा तो बस अरहर की गरम दाल में घी डाल कर खाने के लिए आऊंगा.. मेरे पास कोई बड़ा और महान मकसद नहीं है इस पृथ्वी पर रहने का. और मेरे लिए यही सबसे बड़ा महान मकसद है”

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देखता हूँ.. कि आप मे से कितने हैं जो इस पोस्ट का मर्म और मक़सद समझ पाते हैं।

~सिद्धार्थ तबिश

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