सरफ़राज़ नज़ीर-
बुलडोज़र की कार्रवाई की कानूनी मान्यता… दरअसल ये कार्रवाई अतिक्रमण कानून के मद्देनज़र की जाती है लेकिन जिस तरह से सरकार ये कर रही है वो कतई कानूनन नहीं है, शहरी / देहात हर जगह मकान बनाने के लिए एक नक्शा पास कराना होता है। जहाँ लोग तीस तीस चालीस पचास साल से रह रहे हैं वो मकान अपना स्वरूप बदलता रहता है, जो मकान पीडब्ल्यूडी या नगरपालिका के सड़क के किनारे होते हैं उसका एक मानक होता है कि 20-30-40 फीट सड़क छोड़कर निर्माण करना होता है। लेकिन आमतौर कोई इसका पालन नहीं करता।
आपने अतिक्रमण के खिलाफ कई बार अभियान चलाकर ठेला गुमटी अवैध निर्माण हटाते हुए देखा होगा, अभियान में ये कार्रवाई एक तरफ से सबके खिलाफ जाती है इसलिए कोई नोटिस नहीं करता।
अब बात बुलडोज़र कार्रवाई की तो मुसलमानों से ज़्यादा आबादी होने के नाते हिंदुओं के भी ज़्यादातर मकान इस अवैध निर्माण के तहत आएंगे, लेकिन नरोत्तम मिश्र जैसे बायस्ड लोग जब सत्ता के शीर्ष पर बैठे हो और मशीनरी उसके इशारे पर काम कर रही तो न्याय तो नहीं होगा, अच्छा इस अवैध निर्माण को तोड़ने की भी एक प्रक्रिया है, अवैध कब्ज़ाधारक को एसडीएम एक नोटिस देगा और तीस दिनों के भीतर अपना पक्ष रखने को कहेगा, मतलब सुनवाई का अवसर मिलेगा, यदि कोई अपना कब्ज़ा वैध साबित नहीं कर पाता तो एसडीएम खुद अपने खर्चे पर अवैध कब्जा हटाने को कहेगा और ऐसा न कर पाने की दशा में बुलडोज़र से सिर्फ उतना ही अवैध निर्माण ढहा दिया जाएगा,
नरोत्तम मिश्र ने इस कानून का विधिवत दुरूपयोग किया है, बाकी देश में अदालत भी है शायद, वो इसे देखेगी, जैसे सीएए के केस में अवैध वसूली करने पर सरकार को फटकार लगा कर पैसे वापस करने को कहा था लेकिन दो साल बाद। इसमे भी दो साल बाद कुछ कहेगी तब तक सत्ता और प्रसाशन का नेक्सस मुसलमानों पर अपना बुलडोज़र एकतरफा चलाते रहेगा।