श्रवण सिंह राठौर-
अजीज मित्र और संजीदा पत्रकार चंद्र प्रकाश दवे जी हमें छोड़कर चले गए। विश्वास ही नहीं हो रहा। अभी थोड़े दिन पहले ही तो फोन आया था। राजस्थान पत्रिका से नौकरी छूट जाने के बाद दुखी थे, लेकिन फिर सम्भाल लिया था।
पंडित जी ऐसे चले जायेंगे, ये सोचा नहीं था। बार बार बुलाने पर भी आपके घर खीर खाने नहीं आ पाया, मुझे जिंदगी भर मलाल रहेगा दोस्त।
लास्ट 9 मई को व्हाट्सएप पर थोड़ी सी बात हुई थी, पूछ रहे थे कि कोरोना की आपात में जयपुर में कौन मदद कर सकेगा? प्रताप सिंह जी खाचरियावास की निजी अस्पतालो की मनमानी के खिलाफ दिए गए बयान की उन्होंने प्रशंसा की।
आपकी हम कोई मदद नहीं कर पाए दोस्त, शर्मिंदा हैं हम।
दवे साहब ने एक बार मुझे बताया था कि उनके पुरखे जालोर में सांचोर के गलीपा – होती गांव से थे। मेरे से बड़ी अपनायत रखते थे। मुझे बहुत याद आओगे पंडित जी। अलविदा। विनम्र श्रद्धांजलि।
दवे जी के आख़िरी fb पोस्ट-