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छत्तीसगढ़

भूपेश सरकार ने छोटे और मध्यम अखबारों के प्रकाशकों पर कसा शिकंजा

रायपुर। कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार के जनसंपर्क विभाग ने छत्तीसगढ़ प्रदेश के समस्त समाचार पत्रों के प्रकाशकों को सर्कुलर जारी कर कागज खरीदी का पक्का बिल, जीएसटी पैड रिसीव, समाचार एजेंसी में दी जाने वाली कापियों की जानकारी मांग कर मानो बिजली गिरा दी है। सभी जानते हैं कि समाचार प्रकाशकों द्वारा दी जाने वाली जानकारी कभी सही नहीं होती और अधिसंख्य अखबार गलत दस्तावेज प्रस्तुत करते हैं। चाहे वह प्रदेश की राजधानी का जनसंपर्क हो या देश का डीएवीपी।

दरअसल भूपेश सरकार की मंशा स्पष्ट है क्योंकि सरकार किसानों को कर्ज माफी, बोनस देने के बाद आर्थिक तंगी से गुजर रही है। इसलिए अखबार प्रकाशकों को जटिल सुर्कलर जारी करके छोटे और मंझोले अखबार वालों को लिए परेशानी खड़ी कर दी है।

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सरकार के करीबी लोगों का कहना है कि मांगी गई विवरणी के आधार पर ही विज्ञापन की नीति निर्धारित होने वाली है। कांग्रेस सरकार चाहती है कि जो अखबार प्रकाशक ईमानदारी से कानून कायदे का पालन कर रहे हैं, जो श्रम नियमों को लागू करते हैं, जो कर्मचारियों व पत्रकारो को वेज बोर्ड की सुविधा दे रहे हैं, उन्हें हलाकान नहीं किया जाएगा। ऐसे अखबारों को संसाधनों के साथ सरकार से मिलने वाली सुविधा या आर्थिक मदद जो विज्ञापन के रूप में मिलती है, मिलती रहेगी।

सिर्फ झूठी जानकारी देकर सरकारी धन दुरूपयोग करने और जनता की आंखों में धूल झोंकने वाले अखबारों, साप्ताहिकों, मासिक समाचार पत्रिकाओं की सरकारी मदद यानी विज्ञापन बंद कर दिए जाएंगे। प्रदेश में इस समय 50 से अधिक दैनिक अखबार, 15 सौ साप्ताहिक, 500 मासिक-पाक्षिक समाचार पत्र राजधानी और जिला मुख्यालयों से प्रकाशित हो रहे है। रायपुर में 18 दैनिक अखबार प्रकाशित हो रहे हैं जिसमें से सिर्फ 10 अखबार ही जनता के बीच प्रचारित प्रसारित होते हैं। बाकी सरकारी दफ्तरों में दिखाई देते हैं।

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यही हालात बिलासपुर दुर्ग कोरबा राजनंदगांव में भी है। ऊर्जा राजधानी कहलाने वाले कोरबा नगर में राजधानी रायपुर के पश्चात सबसे अधिक अखबार प्रकाशित होते हैं और प्रसार संख्या हजारों में दिखाई जा रही है। कई अखबार सिर्फ फाइल काफी प्रकाशित करते हैं और सरकार से लाखों रुपए विज्ञापन के रूप में डकार जाते हैं।

अनेक अखबार आमतौर पर सरकारी विज्ञापन प्रकाशित करने के बाद ही छत्तीसगढ़ संवाद में बिल के साथ दिखाई देते हैं। आम जनता को कई अखबारों का नाम तक नहीं पता होता। ऐसे फर्जीवाड़े से जनता को बचाने के लिए सरकार ने अखबार मालिकों से विवरणी मांगी है।

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सरकार की इस कार्रवाई से से छोटे और मध्यम अखबार मालिक हलाकान हैं। जो काम उन्होंने आज तक नहीं किया, उसकी लिखा पढ़ी करनी है। कंप्यूटर इंट्री करने में प्रिंट की जाने वाली कापियों की संख्या, प्रिंटिंग मशीन में निजी या अनुबंध, कागज का पक्का बिल, जीएसटी बिल, समाचार एजेंसी का नाम फोन नंबर, नि:शुल्क वितरित कापियों की संख्या, समाचार पत्र में लगने वाले अन्य संसाधनों की खरीदी-बिक्री का पक्का बिल, पैड कापियों से वसूली, एजेंसी को दिया जाने वाला कमीशन, विज्ञापन और पैड कापियों की कमीशन दर की जानकारी विभाग को देनी है। जानकारी के अनुसार अगर अखबार प्रकाशक दस्तावेजों को जमा नहीं करेंगे तो छत्तीसगढ़ सरकार विज्ञापन बंद करने की भी सोच सकती है। कुल जमा छत्तीसगढ़ सरकार के इस फरमान से पत्रकारिता जगत में हड़बोंग मचा हुआ है।

रायपुर से वरिष्ठ पत्रकार सुरेशचंद रोहरा की रिपोर्ट.

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