साहब लोग पैसा नहीं खाते, अकेले थानेदार ही सब हजम कर जाता है… आगे बढ़ो, मारो सैल्यूट, जै हिंद!

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यशवंत सिंह-

अगले जनम मोहे सिपाही बनइहो… मेरे एक संपादक थे. उदय सिन्हा जी. कोरोना के दौर में स्वर्गवासी हो गए. बहुत पढ़े लिखे थे. जेएनयू से निकले थे. द हिंदू, पायनियर, स्वतंत्र भारत समेत कई बड़े अखबारों में रिपोर्टर से लेकर समूह संपादक तक रहे. वे एक बार बातों ही बातों में कहने लगे, बिलकुल सीरियस होकर, कि अगले जनम में मैं पुलिस वाला बनना चाहूंगा, भले ही कांस्टेबल ही सही. इनकी वर्दी और डंडा के चलते बड़े-बड़ों को औकात में आने में तनिक देर नहीं होती, भले खुद ये वर्दी-डंडा धारी चाहे जो कांड करें, जो कारनामा करें, इनके सारे विभागीय खून माफ… इनकी हनक, इनकी धौंस समाज-जनता पर डायरेक्ट पड़ता है. रुपया पैसा इज्जत धौंस दबंगई ताकत पावर प्रोटेक्शन… सब कुछ तो होता है इनके पास…

मैं कई दिनों तक ये सोचता रहा कि वो मजाक कर रहे थे या गंभीर थे… अब लगता है वो सही में पूरी गंभीरता से बात कर रहे थे… उम्र के पचासवें पड़ाव पर मुझे लगता है कि पुलिस महकमे में जो लोग हैं (अपवाद हर जगह होते हैं) वे पुलिस विभाग जैसे महान भ्रष्टाचारी विभाग को ठीक करने के लिए कुछ नहीं करते, उल्टे भ्रष्टाचारियों को प्रोटेक्ट करते हैं, उनकी करतूत को दबाते हैं, उनके क्राइम को इगनोर करते हैं… और यही लोग गैर-पुलिस वालों के साथ कैसा सलूक करते हैं… अगर कोई पैरवी-पौव्वा न हो तो आम जनता को हर तरह से निचोड़ लेते हैं… बिना बात पीटकर वसूल कर जेल भेजकर धमका कर लूटकर… उगाही करते रहते हैं… क्या क्या नहीं करते ये पुलिस वाले…

उदय सिन्हा गलत नहीं कह रहे थे. पुलिस विभाग में एक लाइन से मेल-फीमेल सिंघम टाइप लोग भरे पड़े हैं. सब तेजतर्रार और ईमानदार… जैसे लगता है उनका होना हमारा अहोभाग्य है… वो हैं तो हम खुद को भाग्यशाली समझ सकते हैं, सच कहें तो लगता है कि उनका होना हमारे पर एहसान है… क्या कांस्टेबल, क्या दरोगा, क्या थानेदार, क्या सीओ, क्या एडिशनल, क्या कप्तान, क्या डीआईजी, क्या आईजी… लंबी लिस्ट है.. ढेर सारे पद रैंक हैं.. सब समूहबद्ध, सब संगठित… सब चमचम… जंता नतमस्तक इनके आगे… माई बाप हुजूर…

ऐसे में लगता है कि ये वसूली लिस्ट जो लोग वायरल कर रहे हैं, ये सब समाज द्रोही टाइप प्राणी हैं, ये सब एंटी नेशनल राष्ट्र द्रोही टाइप जीव हैं, ये विघ्नसंतोषी पुलिस विभाग का मनोबल गिराना चाहते हैं… ये जो वसूली का पैसा है, ये साहेब लोग थोड़े न लेते हैं… सिर्फ थानेदार हजम कर जाता है, बिलकुल अकेले अकेले… इसलिए थानेदार को छोड़कर, बाकी सभी की वर्दी को सलाम, सबके मेडल को सलाम… जांच कराओ रे… एकाध को सस्पेंड करो, कुछ लिस्ट वाले दागियों को अरेस्ट करो… आगे बढ़ो… मारो सैल्यूट! जय हिंद!

और हां, देखते रहो, कौन पुलिस के खिलाफ खबर छापता है, उस पर ठोंको मुकदमा… कोई रंडी बुलाओ.. कोई फंदे में फंसी मजबूर लौंडिया बुलाओ… उसे बोल बोल के लिखवाओ कि मेरा इज्जत इस कलम वाले ने लूटा है… और गिरफ्तार कर जेल भेजो… अकल ठिकाने आ जाएगी पत्रकार की… एक जाएगा जेल तो बाकी सब लाइन पर आ जाएंगे… शासन सत्ता भी सदा-से अपने साथ है… हम कमाते हैं तो उपर तक पहुंचाते भी तो हैं… सिर्फ वर्दीधारी ही नहीं, मंतरी-संतरी भी तो लेता है सब… खामखा बदनाम हम पुलिस वाले होते हैं… महीना पूरा हो रहा है… पहुंचो वसूलो… लिस्ट ले लो… आगे बढ़ो… मारौ सैल्यूट… जै हिंद…

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