केंद्र सरकार की कथनी और करनी में कितना फर्क है- एक तरफ सरकार कहती है कि श्रमिकों के अधिकारों का किसी भी कीमत पर संरक्षण किया जाएगा तो दूसरी तरफ अखबारों के कर्मचारियों को मजीठिया वेतनमान दिलाने के लिए एक बयान तक जारी नहीं कर सकी है। शायद यही वजह है कि अखबार मालिक मानीय सुप्रीम कोर्ट की आंख में धूल झोंक रहे हैं।
दैनिक जागरण तो इस कदर झूठ बोलने की बेशर्मी पर उतर आया है कि उसने कर्मचारियों को मिठाई का डिब्बा देकर मिठाई प्राप्त होने की पुष्टि के लिए हस्ताोक्षर करा लिए और उसे सुप्रीम कोर्ट में पेश कर दिया कि सभी कर्मचारी अपने वेतन से संतुष्ट् हैं और उन्हें मजीठिया वेतनमान नहीं चाहिए। उन्होंने इसी सहमति पर हस्ताकक्षर किए हैं।
ठीक है बच्चू, करो गड़बड़झाला। उस दिन पता चलेगा, जब सुप्रीम कोर्ट में हजारों शपथ पत्र इस बात के पहुंच जाएंगे कि कर्मचारियों से धोखे से हस्तााक्षर कराए गए हैं और सभी शपथपूर्वक कहते हैं कि उन्हें मजीठिया वेतनमान और 2011 से एरियर अवश्य चाहिए। आखिर अपने लाखों रुपये कौन छोड़ देना चाहेगा। सरकार की श्रम संहिता के मसौदे में क्या है, खुद पढ़ लीजिए।
श्रम संहिता का मसौदा : सरकार ने कहा, श्रमिक अधिकारों का करेंगे संरक्षण
सरकार ने कहा है कि औद्योगिक संबंधों पर श्रम संहिता के मसौदे को अंतिम रूप देते समय सभी अंशधारकों के विचार लिए जाएंगे और श्रमिकों के अधिकारों का किसी भी कीमत पर संरक्षण किया जाएगा। श्रम मंत्रालय ने बुधवार को औद्योगिक संबंधों पर श्रम संहिता के मसौदे पर त्रिपक्षीय बैठक बुलाई थी। प्रस्तावित संहिता में कर्मचारियों की छंटनी करने का प्रस्ताव है। साथ ही इसमें श्रमिक यूनियनों के गठन को कठिन किया गया है। यह संहिता 44 श्रम कानूनों को पांच व्यापक संहिताओं में समाहित करने की सरकार की पहल है। यह औद्योगिक संबंध, वेतन, सामाजिक सुरक्षा, औद्योगिक सुरक्षा व कल्याण से संबंधित है।
औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक, 2015 के मसौदे में औद्योगिक विवाद कानून, 1947, ट्रेड यूनियन कानून, 1926 तथा औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) कानून, 1946 को शामिल किया गया है। बैठक की अध्यक्षता श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने की। बैठक में केंद्रीय ट्रेड यूनियनों, कर्मचारी संघों, राज्य सरकार के श्रम विभागों तथा केंद्रीय मंत्रालयों के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
श्रीकांत सिंह के एफबी वॉल से