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सुख-दुख

‘गोदी मीडिया’ बनाम ‘दरबारी मीडिया’

अनिल जैन-

मुझे नहीं मालूम कि कारपोरेट नियंत्रित मीडिया को ‘गोदी मीडिया’ कहने की शुरुआत कहाँ से हुई, लेकिन मेरा मानना है कि ‘गोदी मीडिया’ कहने से मीडिया के अबोधपन या बचपने का बोध होता है, यानी गोद में खेलने वाला बच्चा. जबकि मीडिया राष्ट्रीय महत्व के हर मामले में पूरी तरह कमीनेपन का प्रदर्शन कर रहा है.

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इसलिए ‘गोदी मीडिया’ शब्द जिसने भी गढ़ा है वह या तो बहुत मासूम है या फिर शातिर. मैंने आज तक कभी भी मीडिया के लिए गोदी शब्द का इस्तेमाल नहीं किया. मैं या तो दरबारी मीडिया लिखता हूं या ढिंढोरची मीडिया.

शाहिद अख़्तर- इराक पर अमेरिकी हमले के समय Embedded Journalism का शब्द आया था. गोदी मीडिया उसी का एक चलताऊ अनुवाद है. गोदी मीडिया शब्द से मीडिया के मौजूदा हालात की सटीक तस्वीर नहीँ बनती. जहां Embedded Journalism जंगी हालत के coverage को ले कर चरित्र दर्शाता है, आम हालात के लिए गोदी मीडिया शब्द पर्याप्त नहीँ है.

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आशू अद्वैत- गोदी मीडिया शब्द रवीश कुमार ने दिया है और इसकी व्याख्या भी की है कि जो मीडिया सत्ता की गोद में बैठ जाए उसे यही कहा जाना चाहिए.

नीलेश जैन- रवीशजी ने गोदी मीडिया और लुटियन मीडिया कहना शुरू किया था ओर यह उन्होंने खुद अपने एक इंटरव्यू में बतलाया था उस समय शायद इतना ज्यादा खराब नही होगा जो आज है अब वही इसे एडिट भी कर सकते है आज के चाल चलन पर ,वैसे वह दरवारी मीडिया भी कहते है।

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हेमंत अत्री- डॉगी मीडिया कैसा रहेगा ? कॉपीराइट का मामला भी नहीं बनेगा, घर की बात है।

कामता प्रसाद तिवारी- जैन साहब आपने अपनी पूरी जिंदगी में कब ऐसे किस अखबार में काम किया है जो दरबारी या ढिंढोरची नहीं रहा हो। मेहनतकशों का अखबार रहा हो। कृपया भ्रम न फैलाएं, बड़ी पूँजी से चलने वाला अनिवार्य रूप से शासक वर्ग का ही मीडिया होता है। जनता को अपना मीडिया अपने पैसों से खड़ा करना है और यह काम लघु पैमाने पर हो भी रहा है, बस नजर दौड़ाने की जरूरत है।

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प्रवीण मल्होत्रा- दरबारी या भाट मीडिया ज्यादा प्रासंगिक है। गोदी मीडिया कहना रवीश कुमार जी ने शुरू किया था। उनके अनुसार इसका अर्थ है – सरकार और कारपोरेट की गोद में बैठा हुआ मीडिया।

देवेंद्र सुरजन- मोदी के साथ गोदी की तुकबंदी जमती है. वैसे भी यदि यह मीडिया मोदी की गोदी में नहीं बैठता तो अब तक न जाने कितने मीडिया हाउस बंद हो चुके होते और न जाने कितने पत्रकारों एंकरों की बलि चढ़ गई होती. महिला एंकर तो वाकई प्रेस्टिट्यूट की जगह इसके मूल शब्द का अनुसरण कर रही होती. इस सबके इतर शब्द वही सही है जो गाली हो और लगे भी नहीं और लोगों को समझ में आ जाए कि किसके लिए प्रयुक्त किया गया है.

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Fb से.

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