बाबुषा कोहली-
मनका मन का फेर दे, तुरत मिला दूँ तोय :
हमारा ब्रह्मांड लगभग १३.८ बिलियन वर्ष यानी ४६ बिलियन प्रकाशवर्ष यानी पता नहीं कितने अरबों वर्ष प्राचीन है। मगर वैज्ञानिकों की मानें तो अभी भी वह अपनी शैशवावस्था में है। इस ब्रह्मांड में जो कुछ भी उत्पन्न होता है, वह अपनी एक उम्र तय करने के बाद मिट जाता है। इस प्रक्रिया में ब्रह्मांड से उत्पन्न चर-अचर ही नहीं, स्वयं समूचा ब्रह्मांड सम्मिलित है। यानी हमारा ब्रह्मांड भी एक दिन मिट जाएगा। वह, जो ठोस- तरल व वायु में जन्मा, माना जाता है कि एक धमाके से पैदा होने के बाद अब धीरे-धीरे वह मिटने की ओर बढ़ रहा है। ब्रह्मांड की उत्पत्ति के साथ जन्मे आयामों में से एक आयाम समय, एक ऐसा तीर है जो कभी अपने तरकश पर वापस नहीं लौटता व प्रत्येक जड़ व चेतन पर अपने निशान छोड़ता जाता है।
हमारे आसपास के किसी गाँव-खेड़ा के देहाती मुर्गे की बाँग सुन कर जो सूर्य हमारी अटारी पर आ बैठता है, उसे दोबारा देखिए, प्रतिदिन देखिए। वह अक्षुण्ण नहीं है, वह सदैव नहीं रहेगा। ब्रह्मांड की ही भाँति अपना यह जगमगाता सितारा भी अभी अपने बचपन में है। यह हमारे ब्रह्मांड की स्टारएज है। आज हम पृथ्वी पर प्रकृति के जितने भी सुंदरतम अजूबे देखते हैं, वह दौलत आकाश में झिलमिलाते इन सितारों की बदौलत है। हमारी पृथ्वी के एक तिनके से लेकर मनुष्यों तक की गति का उत्तरदायित्त्व सूर्य पर है। हम जागते हैं, सोते हैं, साँस लेते हैं, काम करते हैं, नहीं काम करते हैं, चलते हैं, थमते हैं, भोजन करते हैं, जीते हैं, मरते हैं, जो कुछ भी हम इस धरती पर करते या नहीं करते हैं, उस सब के पीछे सूर्य की अपार ऊर्जा है। वह ऊर्जा, जो कुछ करने में खर्च होती है, और वह परम ऊर्जा भी, जो अ-कर्म में या कुछ नहीं करने में खर्च होती है, केवल सूर्य की उपस्थिति से संभव हो सकी है।
विज्ञान की मानें तो इस स्टार एज के बाद डार्क एज का आगमन होगा। हमारे ब्रह्मांड में जितने सितारे उत्पन्न हो सकते थे, उनमें से पंचानवे फ़ीसदी पैदा हो चुके हैं। अब ये सितारे धीरे-धीरे बूढ़े हो रहे हैं और अपने मिटने की ओर अग्रसर भी। अंतरिक्ष में मौजूद समय के इतिहास की सबसे रहस्यमय चीज़ यानी कि ब्लैक होल अपनी भूख मिटाने के लिए इन सितारों को निगलते चले जाएँगे और समूचा ब्रह्मांड एक अँधेरी काली चादर के तले मुँह ढँक कर एक अनंतकालीन निद्रा में डूब जाएगा।
हमारा प्यारा सितारा, हमारी ऊर्जा का स्रोत सूर्य कोई पाँच अरब वर्ष तक हमारे साथ रहने वाला है। फिर यह भी काल के गाल में समा जाएगा। यह कितनी विस्मयकारी बात है कि जो धूप महज़ आठ मिनट में सूर्य की रोशन दीवारें फाँद कर पृथ्वी की सतह पर बरसती है, अपने केन्द्र से सूर्य की सतह तक आने में कई बार उसे लाखों वर्ष लग जाते हैं! समय से बड़ा दीवाना भला कौन हो सकता है, जो ऐसा बहका-बहका बर्ताव करता हो। आज सूर्य के केन्द्र में हाइड्रोजन के जो फूल हीलियम के गुच्छों में बदल रहे होंगे, वे लाख वर्ष बाद हम पर बरसेंगे ! यह जो हमें महज़ आठ मिनट दूर लगता है, अपनी ही हृदय-स्थली से लाखों वर्ष दूर है ! क्या यही हर मनुष्य की भी स्थिति नहीं ? सबके निकट और स्वयं से दूर। यह हमारा निकटतम ईश्वर धूपरानी का मायका है, एक ऊर्जा पिंड है या हमारा दर्पण ?
आगे क्या होगा ? धीरे-धीरे हमारे प्यारे सितारे का ईंधन भी चुक जाएगा और वह पूरी तरह ठंडा पड़ जाएगा। अपनी प्रचंड ठंडक से यह चन्द्रमा को नष्ट करेगा, उसके बाद हमारी आकाशगंगा के सभी ग्रह एक-एक करके बुझते चले जाएँगे, अपनी आकाशगंगा के बाहर के सितारों की बत्ती भी गुल होती चली जाएगी और हमारे ब्रह्मांड का कोना-कोना घुप्प अँधेरे में डूब जाएगा।
डार्क एज यानी ब्लैक होल युग अनंत वर्षों तक क़ायम रह सकता है। ब्लैक होल की सरहद पर सघनतम गुरुत्व समय की गति को शिथिल कर देता है। मगर हमें भूलना नहीं चाहिए कि समय किसी अगोचर प्रत्यंचा से छूटा तीर है और ब्लैक होल के निकट वह केवल धीमा पड़ सकता है, अपना करतब दिखाना नहीं छोड़ सकता। स्टार एज के बाद प्रारंभ हुई डार्क एज में ब्लैक होल जब एक-एक करके अनगिनत सितारों को ग्रस रहे होंगे, उसके बाद क्या होगा ? उसके बाद इन काले दानवों की रसद समाप्त हो जाएगी, और हज़ारों-लाखों वर्षों तक भोजन न पाने के बाद ये धीरे-धीरे दुबलाने लगेंगे। ये ब्लैक होल इतने सिकुड़ जाएँगे कि इनका जीवित रहना कठिन हो जाएगा। इन काले असुरों की मृत्यु के बाद क्या होगा, इसका उत्तर अभी विज्ञान के पास नहीं है।
विज्ञान कहता है कि उसे बहुत कुछ ज्ञात है, ज्ञात होता जा रहा है और एक दिन सब ज्ञात हो जाएगा। मुझे अब्बू की बात याद आने लगती है। अब्बू कहते हैं, सब कुछ अँधेरे से पैदा होता है और फिर वहीं वापस लौट जाता है पुनः विकसित होकर पैदा होने के लिए। कुछ ज्ञात है, कुछ अज्ञात है। अज्ञात को जानने के उपाय विज्ञान करता है, मगर कुछ अज्ञेय भी है। वह जिसे जानने का कोई चारा ही नहीं है, वह अपने समस्त रहस्य के साथ सदैव उपस्थित है, जो अपने होने का संकेत दे सकता है मगर उद्घाटित नहीं होता। मृत्युंजय कहते हैं, इस एक वर्तमान क्षण में ज्ञात, अज्ञात, अज्ञेय सब कुछ व्याप्त है। अब्बू को देखती हूँ। यह मनुष्य पचहत्तर वर्ष का खिलंदड़ बालक है। मृत्युंजय को देखती हूँ। वे मुझसे इस जीवन में युवतर हैं मगर उठने-बैठने, चलने-फिरने, बोलने-बतियाने हर बात में ऐसे कि साठ बरस के बुजुर्ग लजा जाएँ। इस आदमी से बूढ़ा अपने जीवन में मैंने किसी को नहीं जाना। मेरे जाने इन दो बेहद अनूठे लोगों की छाती चीर कर उस पार निकला समय का तीर इन पर क्या निशान छोड़ेगा? समय का तीर ऐसे मनुष्यों के निशान अपनी नोक पर लेकर आगे बढ़ता है।
पिछले जन्मदिवस पर एक सहकर्मी मुझसे कहने लगीं कि तुम्हारा सोलहवाँ लगा है अभी। तो मैंने भी मौज लेने के लिए कह दिया कि बेइज़्ज़ती न कीजिए। अपने ज्ञात तीन सौ बयासी वर्षों का पूरा ब्यौरा दे सकती हूँ कहाँ जन्मी, कहाँ मरी, कैसे मरी, क्या कुछ किया, क्या कुछ नहीं किया। उन्हें लगा, मैं विटी हूँ। मैं भला क्या कहती ? सितारों की आतिशबाज़ी में जिन्हें दिलचस्पी हो, उन पर ऐसे-ऐसे अचरज उजागर होने लगते हैं कि इस जीवन में मज़ाकिया रह जाने के सिवाय और कोई विकल्प ही नहीं बचता।
पिछले हफ़्ते मैंने उन्हें कहा, “ आप ‘अवर यूनिवर्स’ देखिए। नेटफ़्लिक्स पर है।”
कल उनका संदेश मिला,
“बड़ी देर से एक हिरण के पीछे एक चीता भाग रहा है।
ये क्या दिखा रही हो ? ”
एक बात मुझे समझ आयी। इस दुनिया में कोई किसी को कुछ नहीं दिखा सकता, चाहे कितना ही सिर पटक लिया जाए। इसलिए सिर पटकने की क़वायद से बचना चाहिए। सिर तो नहीं पटकती मैं, मगर कभी-कभी नाक पर सूरज उग आता है और ऐसा मायावी उजाला फैलता है कि लोग अनुमान लगाने से बाज़ नहीं आते। चीते और हिरण वाले दृश्य की क्या बात की जाए ? उस दृश्य में मेरी मित्र यह तो देख पा रही हैं कि बड़ी देर से एक हिरण के पीछे एक चीता भाग रहा है, मगर यह देखने से चूक रही हैं कि जिसकी मौत आयी है वह मारने वाले से तेज़ दौड़ रहा है। जो यह सोचता है कि जन्म का कैलेंडर अलग ग्रह में बनता है और मृत्यु का अलग, वह यह नहीं देख सकता कि हिरण और चीता दोनों ही प्राणियों की रगों में सूर्य की ऊर्जा दौड़ रही है। और तीसरी बात जिसे वह देखने से चूकीं, दुनिया की किसी भी भाषा में अभिव्यक्त नहीं की जा सकती। उसे देखने और सुनने के लिए केवल आँख चाहिए। ऐसे समय में, जहाँ धर्म व जाति की ऐनक, स्त्री-पुरुष की ऐनक, जन्म-मरण की ऐनक, विकृत इतिहास और बदलती सीमाओं के भूगोल की ऐनक हर दूसरी दुकान में बिकती हो, वहाँ सूर्य को देखते हुए प्रतिदिन विस्मित रह जाना लगभग असंभव है।
इन दिनों मेरी नाक की नोक पर एक छुटंका-सा लाल दाना उग आया है। कोई सरल रूपक गढ़ते हुए यदि स्वयं को ज्ञात ब्रह्मांड मानूँ तो इस दाने के सौवें अंश के हज़ारवें हिस्से बराबर हमारी पृथ्वी है। यह चमत्कार नहीं तो और क्या है कि धूल के इस नन्हे कण में हम जन्में, चिड़ियाँ जन्मीं, चिम्पैंज़ी-तीतर-चीते-हिरण व गिलहरियाँ जन्मीं, नदियाँ-समन्दर, मक्खी-मच्छर, मछलियाँ और वनस्पतियाँ जन्मीं।
नाक के होने का जब पता चलता है, तब नाक पर प्राकृतिक आपदा आती है। नाक पर जब प्राकृतिक आपदा आती है, तब नाक नष्ट होने लगती है। तब कुछ-कुछ मालूम-सा चलता है कि भाईसाहब ! अपन अलग से कुछ नहीं हैं। कल जो फूल मुरझाया था, वह हम ही थे, आज जो शिशु जन्मा है, वह हम ही हैं, आज जो लोग मरेंगे, वह हम ही हैं। कल जो सितारा टूटा, वह हम ही थे। हम हर क्षण जन्म ले रहे हैं और हर क्षण मर रहे हैं।
एक बार मृत्युंजय से किसी ने पूछा, “सत्य क्या है ?”
तो वे बोले,
“कुछ नहीं है, बस नाक कट जाती है। जिसकी नाक कट जाती है, उसे लगता है मेरी भर क्यों, अब सब को लाइन में ले लिया जाए।”
बाबुषा
दिसम्बर, २०२२
Dr Ashok Kumar Sharma
December 15, 2022 at 6:22 pm
जिसकी भी बेटी हो, उसे सलाम। जिसकी भी बहन और साथिन हो उसे आशीष। लाखों सालों से पृथ्वी के वायुमंडल में भस्म होने की नियति लेकर घुसे, जितने उल्का पिंडों ने राख होने के बाद, जितने धूल के अणु बरसाए, कुल उतने ही आशीर्वाद तुम्हें।
काश यह बेटी भी मेरे घर जन्मी होती!
अनजानी विदुषी बिटिया की नाक सलामत रहे। उसका सत्य अजर रहे। दुआएं।
कभी मौका मिलेगा तो आगे की कहानी, ये अनजाना अनदेखा अज्ञानी हितैषी लिख देगा।
ब्लैक होल्स की कहानी अभी बाकी है नन्ही परी।