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सुख-दुख

मरने की छूट मिले!

जगदीश सिंह-

पृथ्वी पर बोझ बनकर कोई न जिये। माना जीवन अनमोल है, पर यह बोझ भी हो सकता है, बुढ़ापा, असाध्य बीमारी वग़ैरह की वजह से। जब हिसाब लगाकर लगे कि ये जीवन बोझ बनकर ही जीना है, तो छुटकारे का उपाय सोचना चाहिये।

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जैन समाज संथारा, जापान के लोग हाराकीरी को अपनाते हैं। स्विट्ज़रलैंड में ५०००/ डालर खर्च करने पर, एक छोटा सा इंजेक्शन देकर, बिना किसी एहसास के, जीवन लीला समाप्त कर दी जाती है।

किसी भी देश के नागरिक को, यह सुविधा उपलब्ध है। हालाँकि, इसके पहले एक ख़ास प्रकिया से गुजर कर, मेडिकल बोर्ड की मंज़ूरी ली जाती है। मेरे एक जानने वाले अमेरिकन ने पिछले महीने ही इस सुविधा का लाभ उठाया है। ७७ साल के थे, पर एल्जायमर्स के शिकार हो रहे थे। सोचने समझने की झमता विलुप्त होने से पहले ही, परिवार की सहमति से फ़ैसला ले लिये। छुटकारा मिल गया।

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आस्ट्रेलिया वग़ैरह कई देशों में आत्महत्या क़ानूनी है। मेक्सिको में इसके लिये इंजेक्शन बनता है। अंगीठी के कार्बन मोनो आक्साइड से तो अनजाने ही कितनी मौतें हो जाती हैं। मरने वाले को पता भी नहीं चलता। वह मीठी नींद के आग़ोश में सदा के लिये सो जाता है।

हाँ, यह सब चरम अवस्थाओं में ही जायज़ है। ज़िम्मेदारियों से भागने, क्षणिक अवसाद, आपसी कलह वग़ैरह के लिये नहीं।

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भारत सरकार को, इसे क़ानूनी जामा पहनाना चाहिये।

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