
ऐसे प्रयोग कभी कभी देखने को मिलते हैं। दिव्य भास्कर के जिस भी सम्पादक ने ये साहस किया है, वह बधाई का पात्र है।
प्रयोग क्या हुआ है, इसकी कहानी दीपक तिवारी ने ट्वीट में कह दी है। पढ़िए और देखिए-

ये प्रयोग टेलीग्राफ टाइप का है। हिंदी अख़बारों के ऊर्जाहीन और डरपोक संपादकों से ऐसे innovations की उम्मीद नहीं की जा सकती है।
सोशल मीडिया पर दिव्य भास्कर का ये प्रयोग धूम मचा रहा है। भड़ास के पास अख़बार की कटिंग के साथ ये मैसेज आया है-
Brave & Bold Journalism
As Gujarat sees a surge in cases and cities register a shortage of Remdesivir injections, state BJP chief CR Patil had said the party had arranged for 5000 Remdesivir injections. At a press conference yesterday when asked how did CR Patil arrange for Remdesivir, Gujarat chief minister Vijay Rupani said it is a question only CR Patil can answer. when the chief minister was asked repeatedly why the injections were not being given to the common man the CM kept answering please ask Mr Patil. so today Bhaskar decided to publish the mobile number of Patil on the front page of the newspaper and told readers that if they needed injections they should call Patil!
इसी मामले में दीपक तिवारी की ये पोस्ट पढ़ें-
कल जब पत्रकारों ने गुजरात के मुख्यमंत्री से पूछा कि 5000 Remdesivir इंजेक्शन भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के पास कैसे पहुंच गए तो मुख्यमंत्री ने जवाब दिया “उन्हीं से पूछें’.
पत्रकारों ने प्रदेश के मुख्यमंत्री से फिर सवाल पूछा तो मुख्यमंत्री यही जवाब देते रहे कि “आप प्रदेश अध्यक्ष से पूछें”.
हर बार जब यही जवाब मुख्यमंत्री से मिला कि “प्रदेश अध्यक्ष से पूछें” तो दैनिक भास्कर के गुजरात संस्करण दिव्य-भास्कर ने बहुत ही क्रांतिकारी हेड लाइन बनाते हुए प्रदेश अध्यक्ष महोदय का फोन नंबर ही हेड-लाइन के रूप में छाप दिया. सचमुच में इस तरह की पत्रकारिता की आज बहुत आवश्यकता मध्यप्रदेश में भी है. स्थितियों के लिए जिम्मेदार मुख्यमंत्री और शासन इस तरह से नहीं भाग सकते जब तक सवाल करने वाला स्वंतत्र मीडिया है. Well done. Bhaskar!
Prashant k mishra-
जब जहां जितनी जगह मिले …. कुछ बेहतर करने का प्रयास करते रहना चाहिए… पत्रकारों ने गुजरात के मुख्यमंत्री से पूछा कि 5000 Remdesiver Inj. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के पास कैसे पहुंच गए? जबकि जनता परेशान है… तो मुख्यमंत्री ने जवाब दिया “उन्हीं से पूछें”। तो दिव्य-भास्कर यानी भास्कर के गुजराती एडिशन ने प्रदेश अध्यक्ष का नंबर ही छाप दिया…. Good job…
Abhishek singh rao-
दिव्यभास्कर की टीम को साधुवाद!
मुख्यमंत्री ने कहा कि ‘मुझे नहीं पता कि पाटिल साहब के पास कहाँ से आये 50 लाख की क़ीमत के इंजेक्शन और वे कैसे अपने कार्यालय से फ्री में ये बाँटने का एलान कर रहे हैं, आप सब उन्ही से पूछ लो!”
और दिव्यभास्कर ने अपने फ्रंट पेज पर पाटिल साहब का नंबर छाप दिया!
ये होती है पत्रकारिता!
Amit chaturvedi-
आज दैनिक भास्कर ने एक बेहद साहसी और सर्वथा अनूठा प्रयोग किया…हुआ यूं कि जब गुजरात के मुख्यमंत्री से पूछा गया कि गुजरात भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के पास रेमडेसीवीर के 5000 इंजेक्शन कैसे पहुंच गए…जबकि आम जनता इतना परेशान हो रही है…इस पर मुख्यमंत्री श्री रूपानी ने बार बार एक ही जवाब दिया कि उन्हीं से पूछो…प्रदेश अध्यक्ष श्री पाटिल ने किसी का फोन ही नहीं उठाया…अंततः भास्कर ने मुख्य शीर्षक में ही प्रदेश अध्यक्ष का फ़ोन नंबर छापकर पाठकों से अपील कर दी कि इन्हीं से सीधे पूछ लिया जाए…गुजरात भाजपा में आज सुबह से हड़कंप है…ऐसी होती है पत्रकारिता…..
Comments on “दिव्य भास्कर ने तो ग़ज़ब कर दिया! बधाई इस प्रयोग और साहस के लिए!!”
Gujrat Covid-19 patients whose. required this injection. Should inform divya Bhaskar also if none response recived from this mob no.
आज पत्रकारिता जिंदा है, इसका सबूत दिया है दिव्य भास्कर ने।
अजय गुप्ता
साहसिक कदम आखिर उठाना ही पड़ा भास्कर दैनिक को ।
बहुत बहुत बधाई …
भड़ास पर बहुत कम ऐसा देखने को मिलता है कि लोग किसी की काम की तारीफ करते हैं।बहुत लंबे समय बाद मैंने भड़ास पर ऐसा पोस्ट देखा इसके लिए भड़ास को बधाई…
जिस दिन सारे मीडिया घराने इस तरह से काम करने लगेंगे उस दिन से ऐसे पार्टी नेताओं और पार्टी की देशभक्ति पता चल जाएगी।
इस प्रयोग की जाने क्यों तारीफ की जा रही है। मेरा मानना है कि किसी भी गलत चीज को खोज कर लाना पत्रकारिता है न कि यह बताना है वहां गलती हुई है लो नंबर फोन करके पूछ लो। भास्कर को खुद भाजपा अध्यक्ष से बाततचीत कर उसका जवाब छापना चाहिए। बल्कि मुख्यमंत्री को यह जवाब देने के लिए मजबूर कर देना चाहिए कि आखिर जवाबदेही मुख्यमंत्री की है न कि भाजपा अध्यक्ष की। इसलिए मेरे लिहाज से इस तरह के प्रयोग पत्रकारिता को कमजोर करते हैं न कि साहसिक होते हैं।
kabhi aise prayog deshbandhu raipur me hua karte the. . yab bate 20 22 saal pahle ki hai