संजय कुमार सिंह-
खबरें जो लीक से हटकर हैं और नहीं छपीं या लीपापोती का शिकार हुईं
इंडियन एक्सप्रेस में आज दो खबरें हैं जिन्हें लीक से हटकर कहा जा सकता है। पहली खबर टॉप पर है – मुख्य शीर्षक है, “फेमा की जांच में ईडी ने टाइम्स समूह के सर्वोच्च प्रबंधन से पूछताछ की”। यह खबर टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर नहीं है जबकि इंडियन एक्सप्रेस में इस खबर का फ्लैग शीर्षक है, एजेंसी ने विदेशों से जानकारी मांगने के लिए आग्रह भेजा है।
टाइम्स समूह का मतलब यहां टाइम्स ऑफ इंडिया है। यह खबर मुझे मेरे पांच अखबारों में किसी और के पहले पन्ने पर भी नहीं दिखी। इंडियन एक्सप्रेस की लीक से हटकर दूसरी खबर है, “जर्मनी ने कहा, पत्रकार जो कहें उसके लिए उन्हें जेल न भेजें …. भारत एक लोकतंत्र है।” फ्लैग शीर्षक से बताया गया है कि यह ऑल्ट न्यूज का मामला है और उपशीर्षक है, “गैर जानकार सूचनाओं से बचिये : भारत”।
देश में लोकतंत्र से संबंधित यह खबर कल सोशल मीडिया पर भी थी और आज सभी अखबारों में पहले पन्ने पर होनी चाहिए थी लेकिन इंडियन एक्सप्रेस के अलावा सिर्फ द टेलीग्राफ में पहले पन्ने परहै। जहां ऐसी खबरें होती ही हैं इसलिए उस मामले में इसे लीक से हटकर नहीं कहा जा सकता है। ऐसे में यह खबर बाकी अखबारों में पहले पन्ने पर क्यों नहीं है यह आप समझिए। इंडियन एक्सप्रेस ने तो भारत सरकार का पक्ष भी दे ही दिया है आप या पाठक उसे मानें या न मानें। लेकिन खबर नहीं देने का क्या कारण हो सकता है यह भी आप समझते ही हैं।
दिलचस्प यह है कि टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर नहीं है और सरकारी पक्ष पहले पन्ने पर है। अखबार में कुछ ही शीर्षक लाल रंग में होते हैं और यह लाल रंग में है जिसमें कहा गया है, विदेश मंत्रालय ने जुबैर पर टिप्पणी के लिए जर्मनी की निन्दा की। जर्मनी की टिप्पणी पहले पन्ने पर नहीं है अंदर हो तो मैं नहीं कह सकता।
जाहिर है खबर छापने में सरकार का ख्याल रखने से कोई फायदा नहीं हुआ और ईडी सर्वोच्च प्रबंधन से पूछताछ कर ही रही है। द हिन्दू में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। द टेलीग्राफ में तो यह खबर लीड ही है, “जर्मनी ने जुबैर पर बोला”। फ्लैग शीर्षक है, बर्लिन ने कहा वह ईयू के संपर्क में है। दिल्ली ने कहा, आपको पता नहीं है। कहने की जरूरत नहीं है कि अखबारों की खबरों के अनुसार नुपुर शर्मा के मामले में दूसरे देशों को गलत खबर दी गई है।