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दिल्ली

स्वैप लीवर ट्रांसप्लांट से एक दूसरे के पतियों को बचा ली जिदंगी!

एक सिख परिवार और दूसरा हिंदू परिवार, दोनों महिलाओं ने एक-दूसरे के पति को दान किया लीवर… कहते हैं धरती पर मरीजों के लिए डॉक्टर भगवान का रूप होते हैं, लेकिन लीवर कैंसर से जूझ रहे दो मरीजों के लिए उनकी पत्नियां ही भगवान बनकर सामने आईं और उनकी जान बचा ली। पतियों की जान बचाने में पत्नियों की सीधी भूमिका न होकर थोड़ी टेढ़ी थी। मरीजों की पत्नियां अपना लीवर डोनेट कर एक-दूसरे के पति की जान बचाने में कामयाब रहीं। इस वक्त मरीज और उनकी पत्नियां दोनों ठीक हैं। इस जटिल ऑपरेशन को सफल बनाने के लिए 40 डॉक्टरों की टीम को लगातार 12 घंटे तक ऑपरेशन करना पड़ा।

दो महिलाओं ने अपने-अपने पति की जान बचाने के लिए एक-दूसरे के पति को लीवर डोनेट कर नई जिंदगी दी है। लीवर स्वैप ट्रांसप्लांट के जरिए इस सर्जरी को अंजाम दिया गया। एक साथ चार ऑपरेशन थिअटर में चार सर्जरी शुरू हुईं। दो ऑपरेशन थियटर में डोनर के शरीर से लीवर निकालने के लिए सर्जरी शुरू हुई तो दो ऑपरेशन थियटर में मरीज में लीवर ट्रांसप्लांट की सर्जरी शुरू हुई। 12 घंटे की मैराथन सर्जरी के बाद यह ट्रांसप्लांट सफल हुआ।

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योगेश शर्मा और हरमिंदर सिंह दोनों लीवर फेल होने की वजह से जिंदगी की अंतिम सांसें गिन रहे थे। लीवर सिरोसिस की वजह से दोनों का लीवर फेल हो गया था। ट्रांसप्लांट ही एक मात्र इलाज बचा हुआ था। मैक्स साकेत में लीवर ट्रांसप्लांट सर्जन डॉक्टर सुभाष गुप्ता की अगुवाई में दोनों मरीजों का इलाज चल रहा था। डॉक्टर गुप्ता ने बताया कि लीवर ट्रांसप्लांट के लिए डोनर का ब्लड ग्रुप मरीज से मिलना चाहिए, लेकिन इन दोनों मामले में डोनर का ब्लड ग्रुप मैच नहीं हो रहा था। सबसे ज्यादा दिक्कत योगेश शर्मा को हो रही थी, क्योंकि उनकी पत्नी अन्नु शर्मा उन्हें अपना लीवर डोनेट करने को तैयार थीं लेकिन ब्लड ग्रुप मैच नहीं होने से ट्रांसप्लांट नहीं हो पा रहा था। पिछले छह महीने से वह इंतजार कर रहे थे।

डॉक्टर गुप्ता ने बताया कि उनकी स्थिति बिगड़ती जा रही थी। बेड पर ही थे। इसी तरह हरमिंदर सिंह की भी स्थिति ऐसी ही थी। उनकी पत्नी गुरदीप कौर उन्हें अपना लीवर देने को तैयार थीं, लेकिन उनका उनका भी ब्लड ग्रुप मैच नहीं था। पिछले तीन महीने से वो भी इंतजार कर रहे थे। दोनों न्यूक्लियर फैमिली में रहते हैं, इसलिए उनके रिश्तेदार भी इसके लिए सामने नहीं आ रहे थे। दोनों की बीमारी बढ़ती जा रही थी।
डॉक्टर ने कहा कि हरमिंदर सिंह का ब्लड ग्रुप बी था और पत्नी गुरदीप का ए था। जबकि योगेश शर्मा का ब्लड ग्रुप ए था और उनकी पत्नी अन्नु का बी था। यहां उनके पति से तो ब्लड ग्रुप मैच नहीं हो रहा था, लेकिन एक-दूसरे के पति से ब्लड ग्रुप मैच कर रहा था।

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एक सिख परिवार और दूसरा हिंदू परिवार। एक दिन अचानक अस्पताल में दोनों एक-दूसरे से मिले और खुद स्वैप पर बात करने लगे। डॉक्टर ने बताया कि दोनों परिवारों के खुद स्वैप के लिए तैयार होने के बाद हमने ट्रांसप्लांट का फैसला लिया और जरूरी नियमों को पूरा करने के बाद सर्जरी की। डॉक्टर ने कहा कि यह एक बहुत ही रेयर मामला है, जब दो परिवार एक-दूसरे की जान बचाने के लिए सामने आते हैं। खासकर दो पत्नियां, अपने-अपने पति की जान बचाने के लिए दूसरे के पति को लीवर डोनेट करती हैं।

डॉक्टर सुभाष ने कहा कि सरकार ने स्वैप के लिए जो नियम बनाए हैं, वे प्रैक्टिकल नहीं हैं। किसी का ब्लड ग्रुप ओ है तो वह किसी अन्य ब्लड ग्रुप को ऑर्गन नहीं दे सकता। यह नियम स्वैप पर सही नहीं है। सरकार का तर्क है कि ओ ग्रुप यूनिवर्सल डोनर है, इसलिए इसमें इसका यूज नहीं हो सकता। डॉक्टर का कहना है कि जब मरीज की जिंदगी खतरें में हो और ऐसे नियम की वजह से डोनर नहीं मिलते तो खासी परेशानी होती है। इसी प्रकार भारतीय मरीज किसी विदेशी के साथ स्वैप नहीं कर सकता। इसमें भला किसी का क्या नुकसान है। ऐसे कानून को बदलने की जरूरत है।

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