यशवंत सिंह-
आज noida के एक थाने से बुलावा था। जल्दी पहुँच गया था। लगा वॉक करने। एक दिखे। एक पैर कटा था। प्लास्टिक में मुँह मार कर भूख मिटा रहे थे। आगे बढ़ कर पारले के दो पैकेट ले आया। भाई साहब ग़ायब। देर तक खोजबीन के बाद पानी में ठंढाते दिखे।
पुचकारा।
वो मुस्कुराए।
पुचकारते हुए बिस्किट बिखेर दिया। थोड़ा छुप के थोड़ा सामने से वीडियो बनाता रहा।
वो खाने के लिए कम, प्यार के ज़्यादा भूखे प्रतीत हुए।
हम दोनों की नज़रें टकराईं। पास पास हुए। फिर उन्हें जाने क्या कुछ सुनाई पड़ा कि चले गए।
मैं देर तक वहीं खड़ा सोचता रहा।
जाने कौन लोग हैं ये जिन्हें हम कम, वो हमें ज़्यादा जानते हैं।
अपने मनुष्य होने पर थोड़ा शर्मिंदा हुआ। उनके कुत्ता होने पर थोड़ा गर्व से भरा।
अगले जनम मोहे कुत्ता ही कीजो!
शायद थोड़ा कमजोर बनकर थोड़ा मुश्किल झेलकर अपने से ज़्यादा समझदार लोगों की मूर्खताओं को सह सकूँ, बर्दाश्त कर सकूँ, खुश रह सकूँ।
मनुष्य होकर ऐसा कर पाना थोड़ा मुश्किल है न!
जै जै
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