Yashwant Singh
भड़ास पर किसी किसी दिन खबरें लगाते, संपादित करते, रीराइट करते, हेडिंग सोचते, कंटेंट में डूबते हुए अक्सर कुछ क्षण के लिए लगता है जैसे मेरा अस्तित्व खत्म हो गया है. खुद को खुद के होने का एहसास ही नहीं रहता. आज का दिन ऐसा ही रहा. दिल दुखी कर देने वाली खबरों में गोता लगाए रहा.
Nirendra Nagar जी कैसे एक खास किस्म के बैक्टीरिया के हमले से अपनी मां को न बचा सकें. वे लिखते हैं कि ईश्वर माताजी की आत्मा को शांति दें जैसे टिप्पणी लिखने वाले पहले उनके लिखे को पढ़ लें क्योंकि आपका ईश्वर बहुत कमजोर है.
अपने मित्र और छोटे भाई जैसे Ashwini Sharma दुखों में डूबे हैं. छह माह पहले पिताजी गए. अब उसी राह पर मां चली गईं.
अपना छोटा भाई Manish Dubey बताते हैं कि वे अपने दोस्त माफिक एक नशेबाज एंकर के बुलावे पर मिलने पहुंचे तो उसने नशे की अधिकता में खुद को पहलवान दिखाने के लिए उन्हें भरपूर पीट दिया…
मिर्जापुर के नौजवान ब्यूरो चीफ Tript Kumar Chaubey हार्ट अटैक से चल बसे. सीने में दर्द हुआ और दस मिनट में खेल खत्म.
भाई Sanjaya Kumar Singh जी की रिपोर्ट पढ़ रहा था. अखबार वाले वो नहीं छापते जो खबर होती है. जैसे, अरुण जेटली पर राहुल गांधी के गंभीर आरोप वाली खबर को सब पी गए!
उफ्फ!!!!
निरालाजी की वो लाइन याद आ रही…
दुख ही जीवन की कथा रही… क्या कहूं जो अब तक नहीं कही!
वैसे ही मेरी मनोदशा संन्यस्त वाली है. इन्हीं किन्हीं क्षणों में अगर सब छोड़ कहीं एकांत में पसर जाऊं तो मत कहिएगा… अब किसी किस्म की सक्रियता आनंदित नहीं करती… जीवन की नश्वरता और प्रकृति की विलक्षणता के प्रति संवेदनशीलता इस कदर है कि खुद को हर वक्त होने न होने के बीच पाता-तौलता रहता हूं.
लंबी सांस छोड़ते हुए ‘हो’ शब्द की देर तक की फुसफुसाहट के बाद अब फिलहाल कुछ क्षणों के लिए आफलाइन होता हूं, ‘मैं कहीं कवि न बन जाऊं तेरे प्यार में ओ कविता’ की तर्ज पर ‘मैं कहीं साधु न बन जाऊं तेरे प्यार में ओ धरती!’ कहते हुए….
भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह की एफबी वॉल से.
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