Yashwant Singh भड़ास पर किसी किसी दिन खबरें लगाते, संपादित करते, रीराइट करते, हेडिंग सोचते, कंटेंट में डूबते हुए अक्सर कुछ क्षण के लिए लगता है जैसे मेरा अस्तित्व खत्म हो गया है. खुद को खुद के होने का एहसास ही नहीं रहता. आज का दिन ऐसा ही रहा. दिल दुखी कर देने वाली खबरों …
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पत्रकारों पर हमले होते रहना लोकतंत्र के खतरे में पड़ने का संकेत!
पत्रकारों पर आये दिन हो रहे हमले इस देश को शायद गर्त की तरफ धकेलने का काम कर रहे हैं. इस बात को हम झुठला नहीं सकते कि अगर ऐसे ही पत्रकारों पर हमले होते रहे तो एक दिन लोकतंत्र खतरे में होगा. साथ ही अत्याचार और भ्रष्टाचार बहुत आसानी से फल फूल रहा होगा और ये देश उस वक्त मूक दर्शक बन के सब कुछ चुप चाप देख रहा होगा. आखिर ये लोग कौन हैं इनके हौसले इतने बुलंद कैसे हैं कि ये लोग हर आवाज उठाने वाले लोगों को मार देते हैं. सवाल यह भी उठता है कि बिना किसी सह के ये लोग ऐसा अंजाम कभी नही दे सकते. दरअसल पत्रकारों पर हमले वही लोग करते या करवाते हैं जो इन बुराइयों में डूबे हुये हैं. ऐसे लोग दोहरा चरित्र जीते है वजह साफ होती है कि ऐसे लोग मीडिया पर हमला क्यों करते हैं, वजह है अपना फायदा या अपनी भड़ास निकालने के लिए..
इन खबरों के कारण भड़ास संपादक यशवंत पर हमला किया भुप्पी और अनुराग त्रिपाठी ने!
साढ़े छह साल पुरानी ये वो खबरें है जिसको छापे जाने की पुरानी खुन्नस में शराब के नशे में डूबे आपराधिक मानसिकता वाले भूपेंद्र नारायण सिंह भुप्पी ने किया था भड़ास संपादक यशवंत सिंह पर प्रेस क्लब आफ इंडिया में हमला… इसमें सबसे आखिरी खबर में दूसरे हमलावर अनुराग त्रिपाठी द्वारा स्ट्रिंगरों को भेजे गए पत्र का स्क्रीनशाट है जिसके आखिर में उसका खुद का हस्ताक्षर है… ये दोनों महुआ में साथ-साथ थे और इनकी कारस्तानियों की खबरें भड़ास में छपा करती थीं… बाद में दोनों को निकाल दिया गया था…
हमलावरों भुप्पी और अनुराग के घर का एड्रेस चाहिए ताकि उन्हें ‘गेट वेल सून’ कहते हुए फूल सौंप सकें!
Yashwant Singh : मुझे यकीन है वे पश्चाताप करेंगे, अपराधबोध से ग्रस्त होंगे, सुधरेंगे, बदलेंगे, यही ठीक भी है. बहुत सारे साथी बदला लेने, ईंट का जवाब पत्थर से देने की बात कर रहे हैं. आठ साल पहले का दौर होता तो शायद मैं भी यही सोचता और ऐसा ही कुछ करता. लेकिन इस वक्त सोचता हूं कि अगले दस बीस तीस साल का जीवन देखिए, कौन कहां, मैं कहां, आप कहां. किसी एक घटना के प्रतिशोध में जीवन की उदात्तता और सहजता को न्योछावर कर दिया जाए, ये ठीक नहीं. हां, गांधीगिरी करेंगे हम सब. उन्हें कलम के जरिए जवाब दिया जाएगा. ध्यान रखें वे कलम की ताकत यानि खबरों के कारण गुस्साए थे और उसी प्रतिशोध में हमला किया. यानि तय है कि कलम ज्यादा ताकतवर है.
क्या ‘भड़ास टास्क फोर्स’ बनाने का वक्त आ गया है?
भड़ास संपादक यशवंत पर पत्रकार कहे जाने वाले दो हमलावरों भूपेंद्र नारायण भुप्पी और अनुराग त्रिपाठी ने प्रेस क्लब आफ इंडिया के गेट पर हमला किया था. उस हमले से उबरने के बाद यशवंत ने अपने भविष्य की योजनाओं को लेकर काफी कुछ खुलासा किया है. इसमें एक भड़ास टास्क फोर्स बनाने का प्रस्ताव भी शामिल है.
यशवंत हजारों पीड़ितों को स्वर दे रहे हैं, भगवान उन्हें दीर्घायु दें
भड़ास के संपादक यशवंत सिंह पर हमले की खबर पढ़कर मन बहुत व्यथित हुआ। साथ ही इससे बहुत खिन्नता भी उपजी, आज के पत्रकारिता जगत के स्वरूप को लेकर। यशवंत सिंह पर हमला करने वाले निश्चित रूप से मानसिक रूप से दिवालिया हैं। यह बात भी तय है कि वे तर्क और सोचविहीन हैं।
पत्रकार कहे जाने वालों का यशवंत जैसे एक निर्भीक पत्रकार पर हमला बेहद शोचनीय है : अविकल थपलियाल
Avikal Thapliyal : कोहरा घना है… बेबाक और निडर पत्रकारों पर हमले का अंदेशा जिंदगी भर बना रहता है। भाई यशवंत को भी एक दिन ऐसे घृणित हमले का शिकार होना ही था। बीते वर्षों में हुई मुलाकात के दौरान मैंने यशवंत का ध्यान इस ओर खींचा भी था। लेकिन मुझे ऐसा लगता था कि कई बार फकीराना अंदाज में सभी को गरियाने वाले यशवंत किसी अपराधी या फिर विशेष विचारधारा से ताल्लुक रखने वाले हिंसक लोगों के कोप का भाजन बनेंगे। लेकिन पत्रकार कहलाये जाने वाले ही अपने बिरादर भाई यशवंत की नाक पर दिल्ली प्रेस क्लब में हमला कर देंगे, यह नहीं सोचा था।
हमलावर लोग कायर होते हैं, इसलिए हारना अंततः उन्हें ही होता है…
Anoop Gupta : पत्रकार यशवंत सिंह पर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के बाहर हमला किया गया और पुलिस की चुप्पी तो समझ आती है, प्रेस क्लब की चुप्पी के मायने क्या हैं। अगर यशवंत का विरोध करना ही है तो लिख कर कीजिये, बोल कर कीजिए, हमला करके क्या साबित किया जा रहा है। मेरा दोस्त है यशवंत, कई बार मेरे मत एक नहीं होते, ये जरूरी भी नहीं है लेकिन हम आज भी दोस्त हैं। चुनी हुई चुप्पियों और चुने हुए विरोध से बाहर निकलने की जरूरत है।
हे ईश्वर, हमलावर भुप्पी और अनुराग को क्षमा करना, वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं..
Shrikant Asthana : प्रेस क्लब आफ इंडिया परिसर में यशवंत पर हमला हुए कई दिन बीत चुके हैं। अपराधियों की पहचान भी सबके सामने है। फिर भी न पुलिस कार्रवाई का कुछ पता है, न ही इनके संस्थानों की ओर से। क्या हम बड़ी दुर्घटनाओं पर ही चेतेंगे? कौन लोग इन अपराधियों को बचा रहे हैं? वैसे भी, कथित मेनस्ट्रीम मीडिया के बहुत सारे कर्ता-धर्ता तो चाहते ही हैं कि वे यशवंत की चटनी बना कर चाट जाएं। इस श्रेणी से ऊपर के मित्रों-शुभचिंतकों से जरूर आग्रह किया जा सकता है कि वे उचित कार्रवाई के लिए दबाव बनाएं। अपनी फक्कड़ी में यशवंत किसी को अनावश्यक भाव देता नहीं। लगभग ‘कबीर’ हो जाना उसे यह भी नहीं समझने देता कि यह 15वीं-16वीं शती का भारत नहीं है। First hand account of attack on Yashwant Singh : https://www.youtube.com/watch?v=MgGks6Tv2W4 I’m very thankful to friends who have shown deep concern about the incident and are likely to help create due pressure.
‘यशवंत बड़ा वाला लंकेश है, इसे जान से मारना चाहिए था!’
Naved Shikoh : दिल्ली प्रेस क्लब में यशवंत भाई पर होता हमला तो मैंने नहीं देखा लेकिन लखनऊ के प्रेस क्लब में कुछ भाई लोगों को इस घटना पर जश्न मनाते जरूर देखा। पुराने दक्षिण पंथी और नये भक्तों के साथ फ्री की दारु की बोतलें भी इकट्ठा हो गयीं थी। आरोह-अवरोह शुरू हुआ तो गौरी लंकेश की हत्या से बात शुरु हुई और यशवंत पर हमले से बात खत्म हुई। कॉकटेल जरूर हो गयी थी लेकिन वामपंथियों को गरियाने के रिदम का होश बरकरार था।
पत्रकारिता में ‘सुपारी किलर’ और ‘शार्प शूटर’ घुस आए हैं, इनकी रोकथाम न हुई तो सबके चश्मे टूटेंगे!
Rajiv Nayan Bahuguna : दिल्ली प्रेस क्लब ऑफ इंडिया परिसर में एक उद्दाम पत्रकार यशवंत सिंह को दो “पत्रकारों” द्वारा पीटा जाना कर्नाटक में पत्रकार मेध से कम चिंताजनक और भयावह नहीं है। दरअसल जब से पत्रकारिता में लिखने, पढ़ने और गुनने की अनिवार्यता समाप्त हुई है, तबसे तरह तरह के सुपारी किलर और शार्प शूटर इस पेशे में घुस आए हैं। वह न सिर्फ अपने कम्प्यूटर, मोबाइल और कैमरे से अपने शिकार को निशाना बनाते हैं, बल्कि हाथ, लात, चाकू और तमंचे का भी बेहिचक इस्तेमाल करते हैं।
‘4पीएम’ में छपी भड़ास संपादक यशवंत सिंह के हमलावरों की गिरफ्तारी न होने की खबर
धोखे से यशवंत पर किया गया हमला, हमलावर भी पेशे से पत्रकार, खुलेआम घूम रहे हैं हमलावर
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। भड़ास फॉर मीडिया के संपादक यशवंत सिंह पर दिल्ली में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के गेट पर हमला होने के एक सप्ताह बाद भी हमलावर पुलिस की गिरफ्त से दूर हैं। हमलावर खुलेआम घूम रहे हैं और पुलिस मूकदर्शक बनी हुई है। वहीं हमलावरों की गिरफ्तारी न होने से पत्रकारों में रोष है। पत्रकारों का कहना है कि जब प्रेस क्लब जैसी जगह पर पत्रकार सुरक्षित नहीं हैं तो और जगहों पर उनकी सुरक्षा भगवान भरोसे ही होगी। पत्रकारों ने हमलावरों की जल्द से जल्द गिरफ्तारी की मांग की है।
यशवंत की गुरिल्ला छापामार पत्रकारिता और प्रेस क्लब में दो दलाल/भक्तनुमा पत्रकारों का हमला करना…
Anil Jain : गौरी लंकेश की हत्या के विरोध में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में आयोजित सभा में कुछ वामपंथी नेताओं के आ जाने पर कुछ ‘राष्ट्रवादी’ पत्रकार मित्रों के पेट में काफी दर्द हुआ, जिसका इजहार करते हुए उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि प्रेस क्लब वामपंथियों और नक्सलियों का अड्डा बनता जा रहा है। लेकिन उसी सभा के दो दिन पहले प्रेस क्लब में न्यूज पोर्टल भडास4मीडिया के संपादक यशवंत सिंह पर हुए हमले को लेकर प्रेस क्लब के पदाधिकारियों सहित किसी ने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की। प्रेस क्लब के ‘नक्सलियों का अड्डा’ बन जाने की काल्पनिक चिंता में दुबले हुए पत्रकार मित्रों की संवेदना भी पता नहीं कहां चली गई दक्ष-आरम और ध्वज प्रणाम करने!
पढ़िए, यशवंत पर हमले को लेकर गीतकार नीलेश मिश्रा ने क्या कहा
इंटोलरेंस किसी एक विचारधारा में थोड़े है, आपकी और मेरी रगों में है : नीलेश
Neelesh Misra : प्रेस क्लब के गेट पर हुए वरिष्ठ पत्रकार Yashwant Singh पर हुआ हमला बेहद निंदनीय है। ऐसा कल आपके, हमारे, किसी के साथ हो सकता है। किसी की बात से इत्तेफ़ाक न रखना तो उसे शारीरिक चोट पहुँचाना, या चोट पहुँचे ऐसी इच्छा जताना, ये एक आम बात बन गयी है।
खबर छापे जाने की नाराजगी में फिर एक पत्रकार हुआ जानलेवा हमले का शिकार
हमले के शिकार लखनऊ के पत्रकार राजेंद्र.
लखनऊ से जानकारी मिली है कि खबर छापने की कीमत एक वरिष्ठ पत्रकार को चुकाना पड़ा है. आरटीओ आफिस में करप्शन की खबर छापे जाने से नाराज़ आरटीओ कर्मियों ने वरिष्ठ पत्रकार पर लाठी, डंडों और ईंट से जानलेवा हमला कर दिया. पीड़ित पत्रकार हैं राजेन्द्र राज्य मुख्यालय से मान्यता प्राप्त पत्रकार हैं. उन पर आरटीओ कार्यालय परिसर में हुआ हमला. पत्रकार राजेंद्र गंभीर रूप से घायल हैं. थाना सरोजनीनगर इलाके में है आरटीओ कार्यालय.
शैतानी ताकतों के हमले में चश्मा टूटा… ये लो नया बनवा लिया… तुम तोड़ोगे, हम जोड़ेंगे.. : यशवंत सिंह
Yashwant Singh : चश्मा नया बनवा लिया। दो लम्पट और आपराधिक मानसिकता वाले कथित पत्रकारों भुप्पी और अनुराग त्रिपाठी द्वारा धोखे से किए गए हमले में चश्मा शहीद हो गया था, पर मैं ज़िंदा बच गया। सो, नया चश्मा लेना लाजिमी था। वो फिर तोड़ेंगे, हम फिर जोड़ेंगे। वे शैतानी ताकतों के कारकून हैं, हम दुवाओं के दूत। ये ज़ंग भड़ास के जरिए साढ़े नौ साल से चल रही है। वे रूप बदल बदल कर आए, नए नए छल धोखे दिखलाए, पर हौसले तोड़ न पाए।
दो बददिमाग और विक्षिप्त कथित पत्रकारों द्वारा यशवंत पर हमले के बाद हमारी बिरादरी को सांप क्यों सूंघ गया?
Padampati Sharma : क्या किसी पत्रकार के समर्थन में मोमबत्ती दिखाने या विरोध ज्ञापित करने के लिए उसका वामपंथी या प्रगतिशील होना जरूरी है? यदि ऐसा नहीं है तो सिर्फ पत्रकार हित के लिए दिन रात एक करने वाले यशवंत सिंह पर दो बददिमाग मानसिक रूप से विक्षिप्त कथित पत्रकारों द्वारा किये गए हमले पर हमारी बिरादरी को क्यों सांप सूंघ गया? यशवंत के बहाने पत्रकारों की आवाज दबाने का कुत्सित प्रयास करने वाले की मैं घोर निंदा करता हूं.
यशवंत किसी विचारधारा-गिरोहबाजी के आधार पर किसी को रियायत नहीं देते, इसलिए गिरोहबाजों ने चुप्पी साध रखी है!
Vivek Satya Mitram : प्रेस क्लब में हाल ही में जमा हुए पत्रकारों! इस मामले पर कहां जुटान है? इसका भी खुलासा हो जाए। वैसे भी ये हमला तो प्रेस क्लब के बाहर ही हुआ। एक वरिष्ठ पत्रकार पर कुछ ‘गुंडा छाप’ पत्रकारों द्वारा। फिर भी ना तो प्रेस क्लब के पदाधिकारियों को फर्क पड़ा ना ही साथी पत्रकारों को। Yashwant Singh को करीब से जानने वाले जानते होंगे कि वो पिछले एक दशक से गौरी जैसी ही निर्भीक पत्रकारिता कर रहे हैं। महज़ इसलिए कि वो इस हमले में ज़िंदा बच गए, पत्रकारों को उनके लिए न्याय नहीं चाहिए?
हमलावर नंबर एक भुप्पी भी मिल गया फेसबुक पर, देखें-जानें इसकी हकीकत
Yashwant Singh : फेसबुक पर मिल गया हमलावर नम्बर एक भूपेंद्र नारायण सिंह भुप्पी। हमलावर नंबर दो अनुराग त्रिपाठी की तरह इसने भी मुझे फेसबुक और ट्विटर पर ब्लॉक कर रखा है ताकि खोजने पर ये न मिले। हमले के अगले ही दिन दोनों ने मुझे सोशल मीडिया पर ब्लाक कर दिया। क्यों? शायद उस डर से कि उन लोगों को खोजा न जा सके और उनकी करनी जगजाहिर न की जा सके। मुझे वाकई सोशल मीडिया पर खोजते हुए भूपेंद्र नारायण सिंह भुप्पी और अनुराग त्रिपाठी नहीं मिले। फिर मैंने दोस्तों को टास्क दिया। इसके बाद पहले अनुराग त्रिपाठी की कुंडली मिली। अब भुप्पी का भी पता चल गया है।
भड़ास वाले यशवंत पर हमला दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन चौंकाता नहीं : देवेंद्र सुरजन
Devendra Surjan : बेबाक निडर और साहसी पत्रकार Yashwant Singh पर हमला होना दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन चौंकाता बिलकुल नहीं. इस असंवेदनशील युग में जिसकी भी आप निडरता से आलोचना करोगे, वह आपका दुश्मन हो जाएगा. यशवंत भाई इसी इंस्टेंट दुश्मनी के शिकार हुए हैं लेकिन उन्हें अपनी भड़ास निकालना नहीं छोड़ना चाहिए. गौरी और उस जैसे दस और पत्रकारों ने इसी निडरता की कीमत अपने जीवन की आहुति देकर चुकाई है. अगला नम्बर किसी का भी हो सकता है. यशवंत सिंह जी जो करें, अपने जीवन को सुरक्षित रखते हुए करें क्योंकि उन जैसों की ही आज देश और समाज को जरूरत है.
देशबंधु अखबार समूह के निदेशक देवेंद्र सुरजन की एफबी वॉल से.