Yashwant Singh-
दिल्ली वालों के लिए इस मौसम में स्वर्ग है हापुड़ में गढ़-मुक्तेश्वर से गुजरने वाली गंगा का उस पार वाला घाट!
हफ्ते दो हफ्ते में किसी नई जगह जाने के लिए बेचैन हो जाता हूं. नोएडा से निकल कर अबकी कहां जाऊं, इस पर हर वक्त विचार चलता रहता है. परसों एक मित्र का साथ मिला तो निकल लिए हम लोग गढ़ मुक्तेश्वर. दिल्ली से सत्तर पचहत्तर किमी के लगभग होगा गढ़-मुक्तेश्वर. यहां गढ़ गंगा नाम से मेला भी लगता है. धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण जगह है. पर हम लोग तो केवल प्राकृतिक आनंद के लिए यहां गए हुए थे सो तीन सौ रुपये में नाव किया और गढ़-मुक्तेश्वर वाली गंगा के उस पर चले गए. उस पर बालू है. साफ-सुथरे बालू में लोटने का आनंद अदभुत होता है.
उस पार किनारे से गंगा की गहराई काफी दूर तक बस कमर तक है. नीचे न कोई कीचड़ न कोई कंकड़ पत्थर. बिलकुल साफ बालू जो गंगा के प्रवाह से पैरों के नीचे से हटता उड़ता सा महसूस होता रहता है. मुझे तैरना आता है इसलिए अपन निर्भय होकर गंगा के भीतर घुसते चले जाते हैं. किनारे से देख रहे मल्लाह व कई अन्य स्थानीय बुजुर्ग ये सोचकर चिल्लाते हैं ‘आगे मत जाओ गहरा है डूब जाओगे’ कि जाने कहां से पागल आदमी मरने आ गया है यहां. मैं उन्हें हाथ हिलाकर आश्वस्त करता हूं कि मरने नहीं आया हूं, तैरना आता है.
गंगा का एकदम चिल्ड पानी. ठंढक फील होने लगे तो गरम बालू में आकर लोट जाओ. ये जो गरम बालू और ठंढे पानी का खेल है, बेजोड़ है. इसके सुख ने कल गोवा का आनंद फेल करा दिया. उस पार किनारे चाय की एक दो दुकानें हैं. एकाध दो पंडित हैं. कुछ एक कैमरामैन. दो चार नावें व दो चार मल्लाह. दो चार अलग अलग ग्रपु / परिवार नहाने वाला. बस. मतलब कोई भीड़भाड़ नहीं. एकदम शांत. मस्त जगह.
मित्र और छोटे भाई सौरभ और उनकी टीम के सदस्य पप्पू भाई की खातिरदारी के क्या कहने. बस किसी चीज के लिए इशार करिए और वो चीज हाजिर. ऐसे मेहमानबाजों के साथ यात्रा का आनंद डबल हो जाता है. मैं हजार रुपये लेकर गया था और हजार रुपये सकुशल पाकेट में पड़े पड़े लौट आए.
गढ़ गंगा पहुंचकर अपन सबने कैसे व कैसी मस्ती की, इसका पूरा वृत्तांत इस वीडियो में है, देखें-