Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

बहुभाषी विलक्षण कवि भी थे ‘संत-सिपाही’ गुरु गोविंद सिंह!

अमरीक सिंह-

5 जनवरी जन्मोत्सव पर विशेष : सिख धर्म संसार का सबसे आधुनिक धर्म है। इसकी नींव गुरु नानक देव ने रखी थी और विधिवत व्यवस्था में यह अपने मौजूदा रूप में दशम गुरु गोविंद सिंह की बदौलत आया। तमाम सिख गुरु विलक्षण विद्वान और दार्शनिक चित्तवृत्ति वाले महान व्याख्याकार माने जाते हैं। दसवें गुरु गोविंद सिंह जी को ‘संत-सिपाही’ का खिताब हासिल है। जिन्होंने मानवता के मूलाधारों की हिफाजत के लिए–अपने पूर्वजों के रास्तों पर चलते हुए बेशुमार युद्ध लड़े और साथ ही सिख दर्शन और धर्म की अवधारणाओं को व्याख्ति करने के लिए कवि के बतौर निरंतर कलम भी चलाई।

उनकी अहम हिदायतों के मुताबिक सिखों के सर्वोच्च धार्मिक ग्रंथ का विस्तार किया गया और नईं रचनाओं का समावेश किया गया लेकिन गुरु गोविंद सिंह ने उसमें अपने लेखन को शुमार नहीं किया बल्कि समूह सिख संगत को आदेश दिया कि उनके जिस्मानी अंत के बाद श्री गुरु ग्रंथ साहिब को ही गुरु माना जाए। ऐसा ही हुआ। बेशक उनकी मृत्यु के बाद कई सिख पैरोकार अपने अलग-अलग पंथ बनाकर गद्दीनशीन हो गए लेकिन दुनिया भर में फैले ज्यादातर सिखों ने दशम गुरु के आदेश को मानते हुए श्री गुरु ग्रंथ साहिब को ही ग्यारवां और अपना अंतिम गुरु स्वीकार किया। गुरु गोविंद सिंह के आदेशानुसार तमाम गुरुद्वारों में श्री गुरु ग्रंथ साहिब का ही प्रकाश होता है और श्रद्धालु उसी को ‘प्रकट गुरु’ मानकर नतमस्तक होते हैं।

श्री गुरु ग्रंथ साहिब में तमाम फिरकों अथवा समुदायों के सूफी संतों की वाणी को जगह दी गई है लेकिन गुरु गोविंद सिंह ने उसके अंतिम रूप में अपनी कोई भी रचना शुमार नहीं की। इतने बड़े ‘संत-सिपाही’ मर्मज्ञ विद्वान गुरु ने खुद को श्री गुरु ग्रंथ साहिब में सम्मिलित वाणी के लेखक पूर्ववर्ती गुरुओं और अन्य सूफी–संतो के समक्ष खुद को ‘निमाणा’ (लघु/छोटा) बताकर न केवल खुद की कलम से निकले रूहानी शब्दों को सर्वोच्च ग्रंथ से दूर रखा बल्कि सिखों को बाकायदा यह आदेश भी दिया कि उन्हें कतई किसी तरह का ‘ईश्वर’ न करार दिया जाए और शब्द गुरु, श्री गुरुग्रंथ साहिब को ही आखरी गुरु के तौर पर मान्यता दी जाए। तब से लेकर अब तक व्यापक सिख समुदाय दशम गुरु के इस आदेश का शिद्दत के साथ पालन करता है। गुरु गोविंद सिंह की काव्यात्मक रचनाएं अलग-अलग संकलनों में हैं। ‘दशम ग्रंथ’ उनकी मुख्य कृति है। इसे लेकर कई तरह के विवाद शुरू से ही जारी हैं। इसका कोई भी अंश श्री गुरु ग्रंथ साहिब में नहीं है। बतौर कवि-लेखक गुरु गोविंद सिंह की अन्य कृतियों में चंडी दी वार, जाप साहिब, खालसा महिमा, बिचित्र नाटक, जफरनामा और अकाल उस्तति प्रमुख हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

199 पदों वाली रचना जाप साहिब दस प्रकार के विभिन्न शब्दों में लिखी गई है। इसकी सबसे बड़ी खसूसियत यह है कि ‘जाप’ संस्कृत शब्दावली के साथ अरबी–फारसी को संयुक्त रूप से एकाकार करके लिखी गई है। इसे पढ़ते वक्त आसानी से पता नहीं चलता कि कब गुरुजी ने हिंदी–संस्कृत की शब्दावली में से होते हुए अरबी एवं फारसी में प्रवेश कर लिया। अकाल उस्तति मानवता के पक्ष में आवाज बुलंद करते हुए तमाम मनुष्यों को एक मनुष्यत्व में रखने की बात तार्किक ढंग से करती है। दशम गुरु की रचना बचित्र नाटक वस्तुतः उनका स्वजीवन वृतांत है जो चौदह अध्यायों में फैला हुआ है। मूल रूप से ब्रजभाषा में लिखी गई यह उनकी पहली प्रामाणिक आत्मकथा मानी जाती है, जिसमें गुरु गोविंद सिंह ने अपने जीवन के लगभग तीन दशक का विवरण दिया है।

कतिपय नामवर सिख इतिहासकारों-विद्वानों और विदेशी खोजकारों का मानना है कि इसकी शुरुआत हिंदुस्तानी रिवायत से थोड़ी हटकर है। भारतीय धार्मिक साहित्य की परंपरा है कि किसी भी ग्रंथ का प्रारंभ सरस्वती एवं गणेश– वंदना से होता रहा है। जबकि बिचित्र नाटक का प्रारंभ ‘खड्ग’ को अभिवादन एवं स्तुति से शुरू होता है। इस महत्वपूर्ण रचना में कूटनीति और युद्ध– कला के भी कुछ शाश्वत प्रासंगिक सबक हैं। इसमें हिमाचल के पांवटा शहर में निवास और उसके पास ही भंगानी नामक जगह पर पहाड़ी राजाओं एवं मुगलों की सिमम्लित सेना से युद्ध करने और जीतने का रोचक वर्णन प्रस्तुत किया गया है। गुरुजी की रचना ‘चंडी दी वार’ मार्कंण्डेय पुराण पर आधारित दुर्गा कथा का अनुवाद दो बार भोजपुरी और एक बार ठेठ पंजाबी में “वार श्री भगउती जी” शीर्षक के तहत किया गया है। प्रथम गुरु नानक देव ने स्त्रियों को पुरुषों के समान सम्मान देने की बात शुरू की थी, जिसे सब गुरु साहिबान ने आगे बढ़ाया और गुरु गोविंद सिंह ने चंडी चरित्रों के माध्यम से उसे और ज्यादा पुख्ता किया। चंडी दी वार, चंडी कथा को भारतीय जनमानस को प्रभावित करने वाली वीर कथा है। गुरु गोविंद सिंह द्वारा रचित इस रचना को सर्वोपरि माना जाता है। खालसा महिमा में दस पद हैं। इस कृति में योग– दर्शन पर विस्तृत दृष्टि तो है ही, गुरुजी की अमर पंक्तियां “मित्र प्यारे नू हाल मुरीदा दा कहणा” भी है। एक पद पंजाबी में है और अन्य सब की भाषा ब्रज है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

दुनिया की बेशुमार भाषाओं में अनुदित दशम गुरु की ‘जफरनामा’ उनकी कलम से निकली अंतिम कृति है। इसे उन्होंने ‘विजय पत्र’ के रूप में औरंगजेब को लिखा है। फारसी में लिखे इस लंबे खत में गुरु गोविंद सिंह ने मुगल बादशाह औरंगजेब को उसकी जुल्मत के लिए जमकर फटकारा है। जफरनामा से पता चलता है कि नामाकूल हालात में भी वह डगमगाए अथवा रत्ती भर भी खौफजदा नहीं हुए। बल्कि मानसिक तौर पर अतिरिक्त सजगता और उत्साह से लैस थे। यह खत लिख कर उन्होंने अपने विश्वासपात्र भाई दया सिंह को दक्षिण की ओर भेजा, क्योंकि उस समय औरंगजेब दक्षिण में था।

खैर। खालसा पंथ की बुनियाद रखने वाले गुरु गोविंद सिंह ने मनुष्यता के पक्षधर खालिस को खालसा कहा था। मानवीय सरोकारों के लिए अपनी जान तक कुर्बान करने का जज्बा रखने वाले को सच्चा खालसा कहा जाता है। उनके पिता गुरु तेग बहादुर साहिब ने भी मानवता के लिए अपना शीश कुर्बान किया था और इसमें सबसे बड़ी सहमति उनके बेटे गुरु गोविंद सिंह की थी। आधुनिक दर्शनशास्त्र के नजरिए से भी देखें तो यह इतिहास का एक ऐसा महान पन्ना है, जो नए तरीके से फिर कभी नहीं खुला। अपने पिता और गुरु की परंपरा को ही गुरु गोविंद सिंह अपने पूरे जीवन में शिद्दत के साथ विस्तृत करते गए। अपना पूरा परिवार उन्होंने कुर्बान कर दिया! जालिमों से मुकाबिल होते हुए उन्होंने “चिड़ियों से बाज लड़ाऊं…” का नारा दिया जो आगे जाकर (लगभग नास्तिक क्रांतिकारियों की ललकार भी बना। वीर रस से वाबस्ता गुरु गोविंद सिंह की कविता 21वीं सदी की जुझारू आधुनिक कविता तक जाती है। क्या यह विलक्षण और ऐतिहासिक उदाहरण नहीं है? प्रसंगवश, समकालीन पंजाब में नए सिरे से सक्रिय सिख कट्टरपंथियों को दशम गुरु द्वारा लिखित साहित्य का सूक्ष्म अध्ययन करना चाहिए और केंद्र की सत्ता पर काबिज लोगों को भी जो खुद को उनका प्रशंसक बताते फिरते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को तो जरूर ही, जिसके नागपुर मुख्यालय में गुरु गोविंद की आदमकद तस्वीर ‘शूरवीर अवतार’ के तौर पर लगाई गई है। दसवें गुरु अवतारवाद की अवधारणा तथा अंधविश्वास के सख्त खिलाफ थे। आज के माहौल में उनकी रचनाओं की प्रासंगिकता का आलोक इसलिए भी जरूरी है। इस ‘संत-सिपाही’ ने मुख्य तौर पर 14 युद्धों का नेतृत्व किया। जिनमें भंगानी, नादौन, गुलेर, आनंदपुर साहिब–प्रथम तथा द्वितीय, निर्मोहीगढ़, बसोली, चमकौर, सरसा और मुक्तसर के युद्ध प्रमुख हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मुगल बादशाह औरंगजेब की मौत के बाद उसके बेटे बहादुर शाह को उसका उत्तराधिकारी बनाया गया था, जिसके खिलाफ दुश्मनों ने काफी साजिशें रचीं। बहादुर शाह ने गुरु गोविंद सिंह से मदद की गुहार की तो वह खुलकर सामने आए और उन्हें बादशाह बनाने में पूरा सहयोग दिया। दोनों के बीच मधुर संबंध कायम हुए और सरहद के नवाब वजीद खान को यह दोस्ती नापसंद थी। कई पठानों को उसने गुरु गोविंद सिंह की हत्या के लिए उनके पीछे लगाया। ऐतिहासिक दस्तावेजों में दर्ज है कि 7 अक्टूबर 1708 में महाराष्ट्र के नांदेड़ साहिब में गुरु गोविंद सिंह जी ने अपनी आखरी सांस ली लेकिन इसे लेकर भी कई किवदंतियां है कि दशम गुरु का जिस्मानी अंत कैसे हुआ। गुरु गोविंद सिंह ने गुरुओं के उत्तराधिकारियों की परंपरा खत्म करके भी एक इतिहास रचा। वह अनमोल विद्वता के साथ-साथ प्रेम, एकता और भाईचारे के इरादों पर जीवनपर्यंत अटल रहे। उनकी मान्यता थी कि सच्चाई और प्यार ही असली धर्म हैं। सत्य कभी हारता नहीं और अहंकार को लोकभावना कुचल देती है। ऐसा उनका मानना था। बचपन में उनका नाम गोविंद राय था जो बाद में गोविंद सिंह हो गया। उनका जन्म 1666 में पटना में हुआ था। वह एक साथ आध्यात्मिक संत, जुझारू सिपाही और अनेक भाषाओं के ज्ञाता कवि थे। उनके रूहानी दरबार में विद्वान कवियों को खास मुकाम और महिमा हासिल थी।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group_one

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement