“Indian media is politically free but imprisoned by profit” पी. साईंनाथ भारतीय मीडिया को इस तरह परिभाषित करते हैं. बहुत वक्त नहीं लगा भारतीय मीडिया को जब वह जन सरोकारों को कुचलकर कारपोरेट की गोद जाकर बैठ गई. हाल की घटनाएं तो और भी चिंताजनक हैं.
चाहे बात मजीठिया के न्यूनतम वेज के खिलाफ मीडिया मालिकों का एकजुट होकर मीडिया श्रमिकों के मूलभूत अधिकारों का भी गला घोंटना हो, चाहे किसी भी तरीके से मुनाफ़ा कमाने की सुरसाई प्रवृत्ति से संचालित होकर चालीस वर्ष से अधिक के पत्रकारों को बाहर करने की साजिश हो या वेतन न मिलने से आत्महत्या कर रहे पत्रकारों की बात हो, ये सभी इस ओर संकेत करते हैं कि लोकतंत्र का ये चौथा खम्भा कारपोरेट के धक्के से इतना लिजलिजा हो चुका है कि टूट टूट कर अपने ही लोगों की “हत्या” कर रहा है. हां ये हत्या ही है.
विडम्बना ते ये है कि मीडिया मालिक मजीठिया के उन सिफारिशों को भी मानने को तैयार नहीं हैं जो अपने आप में अपर्याप्त है। दु:ख तो इस बात का है कि ये अन्याय न तो किसी अखबार की सम्पादकीय का ही अक्षर बन पाता है, न ही किसी कैमरे के सामने बहस का मुद्दा ही बन पाता है। अन्यथा क्रांतिकारी बनने वाले बड़े (अमीर) पत्रकारों की इस पर चुप्पी बता रही है कि वो मालिक के इशारे पर ही भौंकने वाले “कुकुरकार” हैं. बात सिर्फ मीडिया मालिकों और मीडिया श्रमिकों की नही है, ये लड़ाई है संगठित शोषकों और असंगठित शोषितों की, धनवानों और श्रमवानों की।
ये प्रवृत्ति खतरनाक होती जा रही है अगर आप आज नहीं चेते तो ये लपट एक दिन आपके घर में घुसेगी और उस समय आप जलेंगे और लोग तमाशबीन बन बैठे रहेंगे। इसलिए अगर मुद्दे से सहमति है तो इसे आगे बढ़ाएं..
सनी कुमार के एफबी वॉल से
sachin dev
April 12, 2015 at 9:25 am
sunny kumar – apne kadradanon mein mujhe bhi count karien.