पुस्तक-समीक्षा : पं.दीनदयाल उपाध्याय की याद दिलाती एक किताब

भारतीय जनता पार्टी के प्रति समाज में जो कुछ भी आदर का भाव है और अन्य राजनीतिक दलों से भाजपा जिस तरह अलग दिखती है, उसके पीछे महामानव पंडित दीनदयाल उपाध्याय की तपस्या है। दीनदयालजी के व्यक्तित्व, चिंतन, त्याग और तप का ही प्रतिफल है कि आज भारतीय जनता पार्टी देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर राजनीति के शीर्ष पर स्थापित हो सकी है। राज्यों की सरकारों से होते हुए केन्द्र की सत्ता में भी मजबूती के साथ भाजपा पहुंच गई है। राजनीतिक पंडित हमेशा संभावना व्यक्त करते हैं कि यदि दीनदयालजी की हत्या नहीं की गई होती तो आज भारतीय राजनीति का चरित्र कुछ और होता। दीनदयालजी श्रेष्ठ लेखक, पत्रकार, विचारक, प्रभावी वक्ता और प्रखर राष्ट्र भक्त थे। सादा जीवन और उच्च विचार के वे सच्चे प्रतीक थे। उन्होंने शुचिता की राजनीति के कई प्रतिमान स्थापित किए थे। उनकी प्रतिभा देखकर ही श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था कि यदि मेरे पास एक और दीनदयाल उपाध्याय होता तो मैं भारतीय राजनीति का चरित्र ही बदल देता।

सोशल मीडिया पर भारतीय दक्षिणपंथी का दिमाग

जिसके पास दिमाग और दिल नहीं है। राजेंद्र धोड़पकर वरिष्ठ पत्रकार हैं। उनका एक दिलचस्प छोटा-सा टुकड़ा पढ़िए- “भारतीय दक्षिणपंथी एक ऐसी प्रजाति है, जिसे प्रकृति का अनोखा उपहार कह सकते हैं, क्योंकि उनके पास न दिल है, न दिमाग है। उनके सीने में और खोपड़ी के अंदर क्या है, इस बारे में भूगर्भशास्त्रियों, कृषि वैज्ञानिकों, पशु चिकित्सकों और पुरातत्ववेत्ताओं की अलग-अलग राय है।

Letter To Indian Media : Sunita Shakya

To Indian media,

I would like to thank from the bottom of my heart for the help your country has provided at this time of crisis in my country, Nepal. All the Nepalese in and outside of the country are thankful to your country. However, me being a Nepali outside from my motherland, when saw your news and news reports, my heart cried and hurt more than those destruction caused by 7.9 Richter magnitude of earthquake. Like all the medical personnel are taught and trained for potential disasters in future, as a reporter, I hope there is some kind of training on how to report different events. Your media and media personnel are acting like they are shooting some kind of family serials. If your media person can reach to the places where the relief supplies have not reached, at this time of crisis can’t they take a first-aid kit or some food supplies with them as well?

भारतीय मीडिया ने नेपाल में उतारी रिपोर्टरों की फौज, वे भी वहां के गंभीर हालात से हो रहे दो-चार

भारतीय न्यूज चैनलों और अखबारों ने बड़ी संख्या में अपने रिपोर्टरों की फौज नेपाल के मोरचे पर तैनात कर दी है। उन्हें प्रतिकूल हालात में प्राकृतिक आपदा से जूझते हुए सूचनाएं लगातार अपडेट करनी पड़ रही हैं। बीती आधी रात बाद तक भारतीय पत्रकार नेपाल की पल पल की स्थितियों पर नजर रखे रहे। वायु सेवाएं असामान्य होने, होटल-बाजार बंद होने, संचार और बिजली सेवाएं ध्वस्त होने का खामियाजा नेपाल में खबरें बटोर रहे पत्रकारों को भी उठाना पड़ रहा है. इस प्राकृतिक आपात काल को इस नजरिए से भी सोशल मीडिया देख रहा है कि भारतीय किसानों पर प्रकृति की मार, गजेंद्र सिंह आत्महत्याकांड और आम आदमी पार्टी की करतूतों, भूमि अधिग्रहण अध्यादेश जैसे ज्वलंत मसलों पर मीडिया गतिविधियां आश्चर्यजनक ढंग से अचानक तटस्थ हो गई हैं।  

Take action against Indian TV news channels

New Delhi : Why people should support my petition? Media is the fourth pillar of Indian democracy. Ensuring neutrality, impartiality and objectivity in news reporting is part of the Code of Ethics and Broadcasting Standards laid down by the News Broadcasting Standards Authority (NBSA), New Delhi, for violation of which a complaint may be made. The way media has been reporting the recent unfortunate death of Mr Gajendra at AAP rally on 22 April 2015 in Jantar Mantar, New Delhi, is appalling, disgusting and horrendous.It is against two important codes of  Ethics and Broadcasting standards (ensuring neutrality; ensuring impartiality and objectivity in news reporting).

भारतीय मूल के पालानी को खोजी रिपोर्टिग पर मिला पुलित्जर पुरस्कार

खोजी रिपोर्टिग के लिए अंतर्राष्ट्रीय समाचारपत्र ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’ के पुलित्जर पुरस्कार से इस बार भारतीय मूल के सॉफ्टवेयर इंजीनियर पालानी कुमानन को ग्राफिक्स टीम के साथ सम्मानित किया गया है। 

क्रांतिकारी बनने वाले बड़े (अमीर) पत्रकारों की मजीठिया पर ये चुप्पी कर रही अप्रिय इशारे

“Indian media is politically free but imprisoned by profit” पी. साईंनाथ भारतीय मीडिया को इस तरह परिभाषित करते हैं. बहुत वक्त नहीं लगा भारतीय मीडिया को जब वह जन सरोकारों को कुचलकर कारपोरेट की गोद जाकर बैठ गई. हाल की घटनाएं तो और भी चिंताजनक हैं.