भारत नीति प्रतिष्ठान ने 19 जुलाई, 2014 को दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब के डिप्टी स्पीकर हॉल में एक सेमिनार का आयोजन किया। इस अवसर पर दो मोनोग्राफ ‘Western Media and Indian Democracy’ और ‘सामाजिक क्रांति का दर्शन’ का विमोचन भी किया गया।
बहस की शुरुआत करते हुए उर्दू साप्ताहिक, नई दुनिया के मुख्य संपादक शाहिद सिद्दीकी ने कहा कि समस्या यह है कि पश्चिमी मीडिया भारत को भारत में रहने वाले कुलीन लोगों के नजरिए से देखता है जिनकी सोच पश्चिमी है। यही समस्या की जड़ है। हमें समझने की जरूरत है कि भारत के जीवन मूल्य पश्चिमी देशों के जीवन मूल्य से पूरी तरह अलग हैं। इसके अलावा एक और बात समझने की जरूरत है कि भारतीय लोग औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाए हैं। उन्होंने आगे कहा कि देश यह अब तक नहीं समझ पाया है कि पश्चिम के देश भारत की कमजोरियों को तो उजागर करते हैं लेकिन अच्छाईयों को छिपा जाते हैं। हमें अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से कोई परेशानी नहीं है। लेकिन हमें अपनी भाषा, संस्कृति साहित्य और अपनी पहचान बचाकर रखनी चाहिए।
इस अवसर पर बोलते हुए भारत नीति प्रतिष्ठान के मानद निदेशक प्रो. राकेश सिन्हा ने कहा कि आरएसएस और भाजपा के विरोधी पहले विरोध के लिए कठिन मेहनत करते थे लेकिन अब बौद्धिक आलस्य के कारण सिर्फ विरोधियों को गाली देना ही उनका काम रह गया है। हिन्दू और जनसत्ता जैसे अखबारों ने मोदी को वोट न देने की अपील भी अपने समाचारपत्रों में प्रकाशित किए। इसी तरह से न्यूयॉर्क टाइम्स की एक 19 सदस्यीय संपादकीय समूह ने मोदी के खिलाफ एक संपादकीय भी प्रकाशित किया।
वरिष्ठ पत्रकार और द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के एडिटोरियल डायरेक्टर श्री प्रभु चावला ने कहा कि ये सभी अपील मोदी के खिलाफ जैसा कि इस गहन शोध पुस्तिका में लिखा हुआ है वह यह बताता है कि भारतीयों की मानसिकता में बदलाव आया है और उन्होंने इन सभी बुद्धिजीवियों को नकार दिया है। इस बात की जरूरत है कि हम अपने आप को पश्चिम के बौद्धिक बोझ से मुक्त करें कि वे हमें समर्थन करते हैं या हमारा विरोध करते हैं। हमें अपना समाज, धर्म और सभ्यता बचाने की जरूरत है। उन्होंने एफडीआई की भी बात की और बैठे हुए लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि एफडीआई को बिना सोच विचार के लागू करना ठीक नहीं और वहां तो कदापि नहीं जहां यह हमारे उद्योगों को प्रभावित कर सकती हैं। उन्होंने कहा कि भारत अभी भी सोने का अंडा देने वाली मुर्गी है और भारत में रहने वाले लोग एक धनी देश के गरीब वासी हैं। जिस देश में 42 हजार करोड़ रुपए विदेशों में गए लोगों की शिक्षा पर खर्च हो जाता है। जबकि देश के कुल शिक्षा का बजट भी इतना नहीं है। अतः हमको अपने सामर्थ्य पर भरोसा करना होगा और आने वाली पीढ़ी को आधुनिकता के साथ-साथ अपनी संस्कृति से भी परिचित कराना होगा।
विख्यात चिंतक और अर्थशास्त्री डॉ. बजरंगलाल गुप्ता ने कहा कि देश अभी तक अलगाव के पैराडाइम पर चल रहा था लेकिन अब हमें ‘इंटीग्रल पैराडाइम’ पर चलने की जरूरत है। जहां पर सार्वभौमिक दृष्टिकोण चाहिए। हमने नेहरूवियन अर्थव्यवस्था, डबल्यू.टी.ओ. मॉडल और मनमोहन सिंह की अर्थव्यवस्था देखे हैं। लेकिन इसमें स्थायित्व नहीं है। उन्होंने कहा कि हमलोग पश्चिम के बौद्धिक आतंकवाद से डरे हुए हैं जिससे हमें बाहर निकलने की जरूरत है और हमें इन सभी बातों पर चर्चा करने की जरूरत है जो चर्चा करने योग्य है लेकिन बिना किसी पूर्वाग्रह के। बौद्धिक लोग पैसे या ताकत के गुलाम नहीं हो सकते। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पूर्व आई.सी.एच.आर. के चेयरमैन और पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ. लोकेश चंद्रा ने कहा कि यूरोप पिछले दो सौ सालों से विश्व का यूरोपीयकरण करना चाहता था और चुनावों के समय जो हुआ वह उसी का हिस्सा है। अब विश्व के अमेरिकीकरण की कोशिश जारी है जो भारत से ही शुरु होगी। लेकिन हमें यह समझने की जरूरत है कि चीन, जापान और कोरिया जैसे देश बिना पश्चिमीकरण के बहुत अच्छा कर रहे हैं। जबकि मोदी की सफलता के पीछे शताब्दियों का क्रंदन और भविष्य का वंदन है। मोदी ने भारतीय वेश-भूषा, भाषा, राजनीतिक शब्दावली, नर्मदा, सावरमती और सरस्वती को पुनर्जीवित किया है। हमें अपनी परंपराएं, संस्कृति और सभ्यता को गर्व के साथ पालन करें तभी देश मजबूत बन सकता है। कार्यक्रम का संचालन प्रो. अवनिजेश अवस्थी और धन्यवाद ज्ञापन श्री गोपाल अग्रवाल ने किया। (प्रेस रिलीज़)
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सिकंदर हयात
July 21, 2014 at 5:23 am
भारतीय उपमहादीप के 60 करोड़ मुस्लिमो के बीच कठमुल्लशाही और कटट्रपंथ और मुस्लिम नेताओ की बदमिजाजी और छोटे बड़े लगभग सभी मुस्लिम बुद्धिजीवियों का अपने फ़र्ज़ से भागना आदि सबसे बड़ा कारण हे आर एस एस का का पक्ष देश दुनिया में मज़बूत होने का बहुत अफ़सोस