Yashwant Singh : जय गंगाजल… प्रकाश झा की फ़िल्में हमेशा मुझे पसंद रही हैं। पूरा सिस्टम इसमें दिख जाता है। जय गंगाजल पूरे तीन घंटे जमकर बांधे रखती है। धड़ाधड़ सीन एक्शन इमोशन बदलते बढ़ते रहते हैं जिससे बोर फील नहीं कर सकते।
एक परम भ्रष्ट सीओ और बाद में ह्रदय परिवर्तन से दुर्दांत ईमानदार पुलिस अफसर के रोल में खुद प्रकाश झा खूब जमें हैं।
फिल्म देखते हुए आपको हर वक़्त यूपी की समाजवादी सरकार का जंगल राज और इसके द्वारा संचालित भ्रष्ट पुलिस प्रशासनिक मशीनरी की याद आती रहेगी। फ़िल्म में ईमानदार कप्तान के रूप में प्रियंका चोपड़ा अपने भ्रष्ट और नपुंसक बन चुके वर्दीधारी अधीनस्थों को जगा जाती हैं लेकिन यूपी में तो हर जिले में कप्तान, सीओ, थानेदार, दरोगा आदि अपने राजनीतिक आका की कृपा से पोस्टिंग पाता है और उन्हीं के अनुकूल रहकर लूट व गुंडा तंत्र का हिस्सा बनकर ड्यूटी बजाता है।
यही कारण है कि यूपी में कोई कोतवाल अपने आका मंत्री के इशारे पर किसी खोजी पत्रकार को दिनदहाड़े पेट्रोल डालकर फूंक देता है तो किसी बिटिया की रेप के बाद लाश सीएम साहब के बंगले से मात्र कुछ दूरी पर हाई सिक्योरिटी जोन में पायी जाती है। ऐसे मामलों में दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती। पीड़ितों को मुआवजा का लोभ और मौत का भय दिखाकर रफादफा करने को मजबूर कर दिया जाता है। समाजवाद का जंगलराज बेख़ौफ़ जारी रहता है।
प्रकाश झा ने अपनी फिल्मों को बिहार केंद्रित हमेशा रखा लेकिन जय गंगाजल यूपी के हालात के ज्यादा करीब है। वजह है बिहार में नितीश राज के दौरान लॉ एंड आर्डर का ठीक होते जाना और इसके मुकाबले यूपी में अखिलेश राज के दौरान लूटतंत्र व गुंडाराज का अत्यधिक सुसंगठित कहर जनता पर ढाया जाना।
इस समाजवादी जंगलराज में मीडिया भी पूरी तरह भागीदार है क्योंकि उसे भी जमकर पैसे संगठित लूटतंत्र की तरफ से देकर अपने गिरोह का हिस्सा बना लिया गया है। इसीलिए जंगलराज की खौफनाक कहानियां बड़े मीडिया घरानों द्वारा प्रकाशित प्रसारित नहीं की जाती। यहाँ तक कि जो लोग सिस्टम के करप्सन को उजागर कर लड़ भिड़ रहे हैं, उनकी भी उपेक्षा मीडिया वाले करते हैं ताकि अँधेरा कायम रहे।
जय गंगाजल सोचने समझने वालों के लिए देखने लायक फ़िल्म है। यूपी वाले विशेष कर देखें, अपने नेताओं और अपने अफसरों को करीब से जानने समझने के लिए।
वैसे अभी अभी सूचना आई है कि यूपी में एक सपा विधायक के भाई ने गोलियों से एक आम नागरिक को भून डाला। जय गंगाजल में भी एक सत्ताधारी विधायक और उनके सगे भाई की ‘महानता’ की गाथा है जिससे पूरा जिला त्रस्त लस्त पस्त है। यह संयोग महज संयोग ही होगा क्योंकि फ़िल्म तो काल्पनिक घटनाओं पर आधारित है.
यशवंत सिंह के फेसबुक वॉल से.