शिवसेना सांसद ही शिवसेना संस्थापक पर फिल्म लिखेगा तो निष्पक्षता की उम्मीद क्यों रखें!

Nitin Thakur : शिवसेना का सांसद ही शिवसेना के संस्थापक पर फिल्म लिखेगा तो उससे आप कितना निष्पक्ष रहने की उम्मीद करेंगे? तो बस, संजय राउत ने बाल ठाकरे के नाम पर जो एक ‘पृथ्वीराज रासो’ रच दिया है उसी का नाम फिल्म ‘ठाकरे’ है, मगर फिल्म बनानेवालों से एक गफलत हो गई। पूरी फिल्म …

‘एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ फिल्म कैसी लगी वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल को, पढ़ें

आज सुबह एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर देखी। राजनीति की बात न करूँ तो भी कुछ मुद्दे इस फ़िल्म के बेहद गंभीर हैं।

यूनियन वालों ने बकाया पैसा ना देने पर कंगना राणावत की फिल्म की शूटिंग रुकवा दी

मजदूरों, टेक्नीशियनों और एक्यूपमेंट वालों का बकाया पैसा ना देने पर फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लाईज और मजदूर यूनियन के पदाधिकारियों व सदस्यों ने अभिनेत्री से निर्माता बनीं कंगना राणावत की फिल्म ‘मणिकर्णिका द क्वीन आफ झांसी’ की फिल्म सिटी में चल रही शूटिंग रोक दिया।

‘पिहू’ : यूट्यूब पर 35 लाख व्यूज, गूगल पर ट्रेंड, इंडियन एक्सप्रेस ने पैरेंट्स को चेताया, बिगबी भी बोल पड़े….

वरिष्ठ पत्रकार विनोद कापड़ी द्वारा दो साल की बच्ची पर बनाई गई फिल्म ‘पिहू’ अगले महीने की 16 तारीख को रिलीज हो रही है. लेकिन फिल्म के ट्रेलर ने हर ओर धूम बचा दिया है. इसे दस घंटे में वन मिलियन लोगों ने देखा. ताजी स्थिति ये है कि 4 मिलियन व्यूज की ओर ये …

एक पत्रकार द्वारा एक पत्रकार की दो साल की बिटिया पर बनाई गई फिल्म 16 नवंबर से रचेगी इतिहास, देखें ट्रेलर

Ajit Anjum : विनोद कापड़ी की फिल्म पीहू के ट्रेलर को दस घंटे में 18 लाख से ज्यादा लोग यूट्यूब पर देख चुके हैं. फेसबुक और ट्विटर मिलाकर पैंतीस लाख बार देखा जा चुका है . ट्रेलर देखने वाले लोग शाक्ड हैं. हैरान हैं. उत्सुक हैं. सबकी दिलचस्पी इस बात में है कि दो साल …

वरिष्ठ पत्रकार विनोद कापड़ी की फिल्म ‘पीहू’ 28 सितंबर को होगी रिलीज, पहला आफिसियल पोस्टर जारी

वरिष्ठ पत्रकार विनोद कापड़ी की फिल्म ‘पीहू’ 28 सितंबर को रिलीज हो रही है. इस फिल्म का पहला आफिसियल पोस्टर रिलीज कर दिया गया है. पत्रकार से फिल्मकार बने विनोद कापड़ी ने ये पोस्टर सोशल मीडिया पर जारी किया जिसे लोग काफी पसंद कर रहे हैं. पीहू फिल्म रिलीज से पहले ही काफी चर्चा बटोर …

छह अप्रैल को रिलीज हो रही ‘सूबेदार जोगिंदर सिंह’ एक बहादुर सिपाही की गाथा है

परमवीर चक्र विजेता सूबेदार जोगिंदर सिंह एक सच्‍चे और बहादुर सिपाही की गाथा है, जिन्‍होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी।सूबेदार जोगिंदर सिंह सन 62 की चीन के साथ लड़ाई में अपनी वीरता और शौर्य दुश्‍मनों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। उनकी इस बहादुरी का किस्‍सा आज देश के लोगों को प्रेरित करेगी। ऐसा कहना है फिल्‍म सूबेदार जोगिंदर सिंह के निर्देशक सिमरजीत सिंह का। वे कहते हैं कि सूबेदार जोगिंदर सिंह की बायोपिक अब 6 अप्रैल से देशभर के सिनेमाघरों में तीन भाषाओं; हिंदी, तमिल और तेलगु में रिलीज़ होगी।

भंसाली को स्वरा की चिट्ठी… आपकी फिल्म देखकर ख़ुद को मैंने महज एक योनि में सिमटता महसूस किया

प्रिय भंसाली साहब,

सबसे पहले आपको बधाई कि आप आखिरकार अपनी भव्य फिल्म ‘पद्मावत’- बिना ई की मात्रा और दीपिका पादुकोण की खूबसूरत कमर और संभवतः काटे गए 70 शॉटों के बगैर, रिलीज करने में कामयाब हो गए. आप इस बात के लिए भी बधाई के पात्र हैं कि आपकी फिल्म रिलीज भी हो गई और न किसी का सिर उसके धड़ से अलग हुआ, न किसी की नाक कटी. और आज के इस ‘सहिष्णु’ भारत में, जहां मीट को लेकर लोगों की हत्याएं हो जाती हैं और किसी आदिम मर्दाने गर्व की भावना का बदला लेने के लिए स्कूल जाते बच्चों को निशाना बनाया जाता है, उसके बीच आपकी फिल्म रिलीज हो सकी, यह अपने आप में बहुत बड़ी बात है. इसलिए आपको एक बार फिर से बधाई.

फिल्म ‘न्यूटन’ अपने दर्शकों के एक गाल को सहलाते हुए दूसरे पर चांटे जड़ती है!

Nirendra Nagar : अभी ‘न्यूटन’ देखी हॉल में। फ़िल्म में दिखाया गया है कि कैसे प्रशासन, पुलिस और सशस्त्र बलों की मिलीभगत से चुनाव के नाम पर इस देश में कई जगह केवल छलावा होता आया है चाहे वह कश्मीर हो या छत्तीसगढ़। पहलाज़ निहलानी के रहते तो यह मूवी सेन्सर बोर्ड से पास ही नहीं होती। वैसे न्यूटन जो एक ईमानदार युवा सरकारी कर्मचारी है और जो इस बात पर डटा हुआ है कि वह अपने अधिकार वाले बूथ में असली मतदान करवाकर रहेगा, उसकी ज़िद्दी कोशिशों पर जब दर्शक हँसते हैं तो स्पष्ट होता है कि ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की वाक़ई इस देश में क्या क़ीमत है। एक दर्शक तो वास्तव में बोल भी पड़ा – ‘पागल है क्या!’ ऐसा लगा जैसे उसने न्यूटन और उसके जैसे सभी लोगों को गाली दी हो।

मीडिया केंद्रित फिल्म ‘JD’ में कई पत्रकारों ने किया काम, गिना रहे हैं डायरेक्टर शैलेंद्र पांडेय सबके नाम (देखें वीडियो)

मीडिया पर जोरदार फ़िल्म ‘जेडी’ बनाने वाले शैलेन्द्र पांडेय ने निकाली अपनी भड़ास। उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया को कठघरे में खड़ा किया। कई असली पत्रकारों ने फिल्म में पत्रकार का किरदार निभाया है। तो, फ़िल्म में किन-किन असली पत्रकारों ने रोल किया, उन सबके नामों का किया खुलासा किया। शैलेंद्र पांडेय से बातचीत की भड़ास के संपादक यशवंत सिंह ने।

JD फिल्म में मजीठिया वेज बोर्ड का मुद्दा भी है, पढ़िए यशवंत का रिव्यू (देखें वीडियो)

Yashwant Singh : जबरदस्त है JD फ़िल्म। मीडिया का नंगापन देखना हो तो इसे ज़रूर देखें। Shailendra Pandey ने अपनी पहली ही फ़िल्म में कमाल कर दिया है। फिल्म की पब्लिसिटी न हो पाने से दर्शक कम आए पहले दिन लेकिन जो भी गया, पूरा देख कर ही निकला। फ़िल्म का डिजिटल पार्टनर भड़ास4मीडिया है। ऐसी पोलखोल वाली फिल्म से भड़ास का जुड़ना सबको अच्छा लगा। एनसीआर समेत कई शहरों में फ़िल्म को थियेटर में रिलीज करा ले जाना एक नए और कम बजट वाले फिल्मकार शैलेन्द्र के लिए उपलब्धि है। फिल्म में मजीठिया वेज बोर्ड का भी जिक्र है, जो एक साहस भरा काम है।

किस शहर में और किस टाइम पर देख सकते हैं फिल्म JD, उसका विववरण…

आज रिलीज हुई फिल्म ‘जेडी’ की कहानी तरुण तेजपाल की आपबीती है!

फोटो जर्नलिस्ट शैलेंद्र पांडेय की यह फिल्म मीडिया की एक कहानी पर आधारित है… अमर सिंह ने भी किया है अभिनय… भड़ास4मीडिया डॉट काम डिजिटल पार्टनर है….

Pankaj Shukla : बहुत ख़ास है ‘जेडी’… फोटो जर्नलिस्ट शैलेन्द्र पांडे की फिल्म ‘जेडी’ आज रिलीज़ हो रही है। शैलेन्द्र से मेरा नाता लगभग दो दशक पुराना है। दैनिक जागरण में कई वर्ष मेरे सहयोगी रहे। यह हमेशा से तय था कि शैलेन्द्र भीड़ का हिस्सा नहीं रहने वाले। कैमरे के पीछे से जो एंगल शैलेन्द्र को दिखता था वो साबित करता था कि उन्नाव के बीघापुर से निकला यह चेहरा किसी हादसे के तहत पत्रकारिता में नहीं आया है।

JD फिल्म का डिजिटल पार्टनर है भड़ास4मीडिया डॉट कॉम (देखें वीडियो)

22 सितंबर 2017 को रिलीज हो रही फिल्म JD का डिजिटल पार्टनर भड़ास4मीडिया डाट काम है. भड़ास के संस्थापक और संपादक यशवंत बता रहे हैं वो तीन वजह जिसके चलते हम सभी को ये फिल्म देखने के लिए थिएटर जाना चाहिए. देखें संबंधित वीडियो… https://www.youtube.com/watch?v=_izRF4GD-Hc

प्रसून जोशी की हरकत से एक नया फिल्म निर्माता-निर्देशक रो पड़ा!

प्रसून जोशी के सेंसर कार्यकाल में पहला विवाद, जेडी के निर्माता-निर्देशक ने लिखी खुली चिट्ठी… शुक्रवार को रिलीज होने जा रही फिल्म जेडी के निर्माता-निर्देशक शैलेन्द्र पाण्डेय ने सेंसर बोर्ड के नवनियुक्त अध्यक्ष प्रसून जोशी को खुला पत्र लिख कर कहा है कि सीबीएफसी की कार्यपद्धति में सुधार करें। उसे नए निर्देशक-निर्माताओं के लिए आसान बनाएं। प्रसून को लिखे एक मार्मिक पत्र में पाण्डेय ने कहा कि बीती छह सितंबर को उन्होंने फिल्म के प्रोमो-ट्रेलर के सेंसर के लिए आवेदन भेजा था, मगर अभी तक यह काम नहीं हुआ है।

प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी पर गुजराती में बन रही है फिल्म ‘हू नरेंद्र मोदी बनवा मांगू छू’

बॉलीवुड निर्देशक अनिल अनिल नरयानी का कहना है कि प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी पर आधारित उनकी आने वाली गुजराती फिल्म ”हूं नरेन्द्र मोदी बनवा मांग छू” बच्चों के लिये बेहद प्रेरणाश्रोत होगी। अनिल नरयाणी इन दिनों फिल्म ”हू नरेंद्र मोदी बनवा मांगू छू” बना रहे हैं। अनिल नरयानी ने फिल्म की चर्चा करते हुये कहा, “‘हू नरेंद्र मोदी बनवा मांगू छू’ हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बचपन की कहानी पर आधारित है।

‘जेडी’ का पॉपकॉर्न कलेक्शन अमिताभ की ‘सरकार-3’ की कमाई से ज्यादा होगा : अमर सिंह

अमर सिंह ने फिर लिया अमिताभ बच्चन को निशाने पर, निर्देशक शैलेंद्र पांडे की फिल्म में पढ़ाएंगे राजनीति के पाठ

मुंबई। राजनेता अमर सिंह ने एक बार फिर अपने पुराने दोस्त अमिताभ बच्चन पर निशाना साधा है। वह मुंबई में पत्रकार-निर्देशक शैलेंद्र पांडे की फिल्म जेडी के म्यूजिक लॉन्च के मौके पर बोल रहे थे। अमर सिंह ने कहा कि आज कंटेंट किंग है, इसलिए अमिताभ बच्चन जैसे सुपर स्टार की सरकार-3 की कमाई से ज्यादा कलेक्शन जेडी की पॉपकॉर्न बिक्री का रहेगा। जेडी कंटेंट सिनेमा है, जिसमें पत्रकारों के जीवन की हकीकत और मीडिया दफ्तरों की सच्चाई दिखाई जाएगी।

वाहियात फिल्म ‘अनारकली आरा वाली’

कल अनारकली ऑफ आरा देखकर मेरा जबर्दस्त ज्ञानवर्द्धन हुआ है। सरसरी तौर पर कुछ दृश्यों ने दिमाग का दही कर दिया है जिसे आपसे शेयर करके अपना बोझ हल्का करना चाहता हूँ…

JD Trailer out, Film is going to release on 22nd September

The trailer of the upcoming Bollywood film “JD” #MediaकीBreakingNews produced by Shailendra Pandey Films has been released. Speaking on the occasion Producer & Director Shailendra Pandey said; “”I am very excited for my film JD. I feel honoured to have directed the big Politician Amar Singh  and the Rtd. Justice PD Kode who are in the special appearance in the movie. He said, “JD is an honest attempt of film-making and showing the ground realities of Media. I am sure that the audiences will appreciate this movie.”

Lipstick Under My Burkha : दैहिक मुक्ति को असली मुक्ति मान बैठीं ये संभोगरत स्त्रियां! (दो समीक्षाएं)

Mukesh Kumar : अलंकृता श्रीवास्तव को ढेर सारी बधाईयाँ। शायद एक स्त्री ही किसी स्त्री के अंदर पलने वाली हसरतों और चलने वाली कशमकश को इतनी बारीकी से फिल्मा सकती है। इतनी बेचैनी, इतनी छटपटाहट कि कुछ भी करने को तैयार। हर तरह की चौहददियों को लाँघने के लिए बेक़रार। और मर्द हैं कि हर जगह रास्ते रोकते हुए खड़े हैं। उन्हें मंज़ूर नहीं है कोई औरत उनके नियंत्रण से बाहर निकलकर अपनी इच्छाएं पूरी करे। कहीं वह सेक्स को हथियार बनाता है, कहीं धर्म को तो कहीं उसे छलकर दबाने की कोशिश करता है।

‘जेडी’ का पोस्टर रिलीज, मीडिया के भीतर के स्याह-सफेद से पर्दा हटाएगी ये फिल्म

हर पल दुनिया का हाल बताने वाले मीडिया के अंदर की खबरें आम लोगों तक नहीं पहुंचती। ‘जेडी’ मीडिया की चारदीवारी के भीतर की ब्रेकिंग न्यूज है। आदर्शों और सच के लिए लड़ने वाले पत्रकार खुद अपने हक की लड़ाई लड़ने में कितने बेबस होते हैं, इसे खुद मीडिया वाले भी महसूस करते हैं। मीडिया की ताकत चंद मुट्ठी भर लोगों की कैद में है और उनके चेहरों पर नकली मुखौटे हैं। हर ताकतवर सत्ता पहले डराती है, फिर ललचाती है और अंत में बदनाम करने वाले षड्यंत्रों के कुचक्रों में कुचल देती है।

‘मॉम’ फिल्म में मर्डर करने के नए तरीके का प्रशिक्षण!

Yashwant Singh :’मॉम’ फिल्म देखते हुए मर्डर करने के नए तरीके के बारे में अपन को जो जबरदस्त ट्रेनिंग मिली है, वह इस प्रकार है- दस किलो सेब खरीदें. इन्हें बीच से काट लें. फिर इनके भीतर से सारे बीज निकाल लें. इन बीजों को बारीक पीस लें. फिर इसे आटा या दलिया या किसी भी खाने के सामान में मिला कर परोस दें. काम तमाम हो जाएगा.

‘हिंदी मीडियम’ देखते हुए आप पॉपकार्न चबाना तक भूल जाते हैं

Uday Prakash : अभी ‘हिंदी Medium’ देख के लौटा। जो भूमिका पहले प्रतिबद्ध साहित्य निभाता था, वह अब ऐसी फिल्म निभा रही है. बाहुबली जैसी मध्यकालीन चित्रकथा फिल्म देखने की जगह, हिंदी मीडियम जैसी फ़िल्में देखने की आदत डालनी चाहिए। इवान इलिच की मशहूर किताब ‘डिस्कूलिंग सोसायटी’ बार-बार याद आती रही. लेकिन यह फिल्म शिक्षा के धंधे में बदलने के विषय से बाहर भी जाती हुई, बहुत बड़ा और ज़रूरी सन्देश इस तरीके से देती है कि आप पॉपकार्न चबाना तक भूल जाते हैं. पूरा हाल भरा हुआ था और ऑडियंस लगातार फिल्म के साथ बोलता, हँसता, सोचता, तालियां बजाता, भावुक होता देखता जा रहा था। आज का दिन ही नहीं यह पूरा महीना हिंदी मीडियम के नाम. (वह महीना जिसमें बाहुबली और Guardians of Galaxie जैसी ब्लॉक बस्टर फ़िल्में भी शामिल है.  🙂

मुसहरों का दुख देखा न गया तो इस लड़की ने कैमरे को बनाया हथियार (देखें डाक्यूमेंट्री)

Abhishek Prakash : नागिन डांस करने वाली लड़की से मिले हैं आप! बोले तो ‘बाबा टाइप लड़की’! ऐसी एक लड़की मिली मुझे। बेपरवाह कान में ईयरफोन लगाए ,मन किया तो जोर-जोर से गाने वाली एक मस्तमौला फ़क़ीरी अंदाज़ वाली लड़की। सच कहूं तो खाप-पंचायत की खोज इन जैसों के भय से ही पूर्व में संस्कृति के ठेकेदारों ने की होगी! पर आप इससे बात करिए।

दैनिक जागरण, भास्कर, अमर उजाला आदि के रैकेटियर फिल्म पत्रकारों की समीक्षाओं से रहें सावधान

…मुंबई के एक बड़े बुजुर्ग फिल्म पत्रकार के नेतृत्व में इन अखबारों के फिल्म पत्रकारों ने गैंग बनाकर अनारकली आफ आरा के फर्स्ट डे कलेक्शन को दस लाख रुपये की जगह न सिर्फ दस करोड़ छापा बल्कि फिल्म की तारीफ में झूठी समीक्षाएं छापी और ज्यादा से ज्यादा स्टार भी दिए…

अविनाश दास की ‘अनारकली’ यशवंत को नहीं आई पसंद, इंटरवल से पहले ही बाहर निकल आए

Yashwant Singh : अनारकली आफ आरा कल देख आया. नोएडा सिटी सेंटर के पास वाले मॉल के सिनेमा हॉल में. इंटरवल से पहले ही फिल्म छोड़कर निकल गया. मेरे साथ एक संपादक मित्र थे. फिल्म बहुत सतही थी. जैसे मीडिया वाले टीआरपी के लिए कुछ भी दिखा देते हैं, पढ़ा देते हैं, वैसे ही सिनेमा वाले बाक्स आफिस के चक्कर में कुछ भी बना देते हैं. याद करिए वो दौर, जब सेमी पोर्न सिनेमा रिक्शे वालों के लिए बना करती थी और वो अच्छी कमाई भी करती थी. इन सिनेमा के बीच बीच में रियल पोर्न क्लिप भी चला दिया जाता था ताकि काम कुंठित दर्शक पूरा पैसा वसूल वाला फील लेकर जाए.

‘अनारकली ऑफ़ आरा’ की फर्स्ट डे कमाई थी दस लाख, इन अखबारों ने छाप दिया दस करोड़ रुपये!

Ashwini Kumar Srivastava : दैनिक भास्कर जैसे हिंदी अख़बार में बड़े पद पर पत्रकार रह चुके अविनाश दास की पहली फिल्म ‘अनारकली ऑफ़ आरा’ बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप है या सुपर हिट, कुछ पता ही नहीं चल पा रहा है… पत्रकार से फ़िल्मकार बने अविनाश की फिल्म के बॉक्स ऑफिस आंकड़े न जाने कौन से सूत्रों से मीडिया को मिल रहे हैं कि दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, अमर उजाला जैसे अखबारों ने जहाँ उसी दिन रिलीज़ हुई अनुष्का शर्मा की फिल्म ‘फिल्लौरी’ को ‘अनारकली ऑफ़ आरा’ के सामने फिसड्डी बता दिया, वहीँ बॉलीवुड में बॉक्स ऑफिस की विश्वसनीय रपट देने वाली वेबसाइट ‘अनारकली ऑफ़ आरा’ को बॉक्स ऑफिस पर सुपर फ्लॉप और ‘फिल्लौरी’ को औसत करार दे भी चुकी हैं।

अविनाश दास की ‘अनारकली ऑफ आरा’ : पहले दिन गिनती के दर्शक पहुंचे

ये है भोपाल से पत्रकार अमित पाठे का रिव्यू….

रिलीज़ के पहले दिन स्क्रीन ऑडिटोरियम में दर्शक कोई 15-20 ही थे

Amit Pathe : “ये रंडी की ‘ना’ है भिसी (वीसी) साब.” ये वो महत्वपूर्ण डायलॉग है जिसपे फिल्म अनारकली ऑफ आरा पूरी होती है। ये वो ‘ना’ है जो हमने ‘पिंक’ मूवी में मेट्रो सिटी की वर्किंग गर्ल्स का ‘ना’ देखा था। अस्मिता और इज्जत बचाने के लिए नारी का मर्द को कहा जाने ‘ना’। आरा की अनारकली का ‘ना’ भी वैसा ही है। लेकिन बस वो बिहार के आरा की है, ऑर्केस्ट्रा में नाचती-गाती है।

अविनाश दास की फिल्म ‘आरा वाली अनारकली’ का प्रोमो / ट्रेलर रिलीज

Harsh Vardhan Tripathi : हम और अविनाश दास विचार के दो छोरों पर ज्यादातर खड़े रहे। वेबसाइट, ब्लॉगिंग के शुरुआती दिनों में जब हम मुंबई में थे और अविनाश दिल्ली में, तब हमारी जान-पहचान-झूमाझटकी हुई थी। हम सीएनबीसी आवाज मुंबई में थे और अविनाश एनडीटीवी दिल्ली में। अब अविनाश मुंबई में हैं और हम दिल्ली में। मुंबई जाकर अविनाश फिल्म निर्देशक हो गए हैं। उनकी फिल्म आ रही है, ये आरा वाली अनारकली की कहानी है। प्रोमो भर देख लीजिए, फिल्म देखने खुद जाइएगा। पत्रकार से फिल्म निर्देशक बने अविनाश की सफलता की ये शुरुआत है। प्रोमो देखते मुझे इस फिल्म पर कुछ-कुछ गैग्स ऑफ वासेपुर की छाप दिखी।

पत्रकार अविनाश दास की फिल्म ‘अनारकली’ 24 मार्च को रिलीज होगी

Avinash Das : आज से पंद्रह साल पहले राजेंद्र यादव के आग्रह पर मैंने एक छोटा सा नाॅविल लिखा था। वह एक एेसे लड़के की कहानी थी, जो जीवन में बहुत कुछ बनना चाहता है – लेकिन एक कॉमन मैन में बदल जाता है। हम अपनी आकांक्षाओं के साथ लंबी यात्रा नहीं कर पाते। बहरहाल, मेरे मन की एक बात पूरी हो रही है। जब मेरी फिल्म अनारकली नहीं बनी थी, दोस्त पूछते थे – फिल्म कब बनाओगे? जब फिल्म बन गयी, तो पूछने लगे – रीलीज़ कब होगी?

धंधेबाज शाहरुख खान की मजबूरी समझिए….

Chandan Pandey : शाहरुख़ खान की शिकायत बेवजह हो रही है। मैं जिस गली में रहता हूँ उसमें अगर कोई गुंडा आ जाए और नए नियम बना दे तो शुरुआती विरोध के बाद मैं भी उसकी जी हुजूरी  में जाऊँगा ही जाऊँगा। गुंडों से डरना चाहिए। गुंडों के साथ सत्ता हमेशा रहती है। आप एक बार को गुंडे को हरा भी दें तो उसके साथ जो सत्ता है, जैसे भक्त पब्लिक, पुलिस, नेता-पनेता, वो आपको तड़पा देंगे, तड़पा तड़पा कर सजा देंगे। शाहरुख की गलती रत्ती भर भी नहीं है।

रजनीकांत की ‘कबाली’ और इरफान खान की ‘मदारी’ देखने लायक है या नहीं, दो पत्रकारों की ये राय पढ़िए

Om Thanvi : ‘कबाली’ देख कर आए हैं। मैं समीक्षा नहीं कर रहा। पर इतना कहूँगा कि निहायत बेतुकी, बेसिरपैर फ़िल्म है। हिंदी में यह चलेगी, मुझे शक़ है। रजनीकांत भले आदमी हैं। दक्षिण – ख़ासकर तमिलनाडु – के दर्शकों के लिए देवता हैं। लेकिन अभिनय की वजह से उतने नहीं, जितने अपनी स्टाइल-अदाओं के कारण। हिंदी में भी ऐसे बहुत-से सुपरस्टार स्टाइल-अदाओं से चले हैं। पर उन फ़िल्मों की सफलता में कथा-सम्वाद, गीत-संगीत, सहयोगी अभिनेता-अभिनेत्रियाँ साथ देते रहे।

दंगे पर बनी फिल्म ‘शोरगुल’ में कास्टिंग डायरेक्टर ने आजम खान से हूबहू मिलता आलम खान खोज निकाला है!

Abhishek Srivastava : मुख्‍यधारा की एक लोकप्रिय फिल्‍म में अतीत में हुए किसी दंगे को लेकर जो कुछ भी मौजूदा माहौल में दिखाया जा सकता है, Shorgul उस सीमा के भीतर एक ठीकठाक व संतुलित फिल्‍म है। फिल्‍म का अंत बेशक नाटकीय है क्‍योंकि वास्‍तविक जि़ंदगी में ऐसा होता दिखता नहीं, लेकिन एक प्रेम कथा से उठाकर जलते हुए शहर तक आख्‍यान को ले जाना और उसमें निरंतरता बनाए रखना, यह निर्देशक की काबिलियत है।

अनुराग कश्यप इस समाज को ज्‍यादा विद्रूप, जघन्‍य, असंवेदी, हिंसक, असहिष्‍णु और मनोविकारी बनाने के लिए याद किए जाएंगे

Abhishek Srivastava : Raman Raghav 2.0 को अगर उसके दार्शनिक आयाम में समझना हो, तो Slavoj Žižek को पढि़ए। इसे अगर आप कमर्शियल सिनेमा मानकर देखने जा रहे हों तो बीच के मद्धम दृश्‍यों में सोने के लिए तैयार रहिए। इस फिल्‍म में रमन का किरदार Badlapur (film) में लियाक़ के किरदार का एक्‍सटेंशन है। लोकप्रियता के लिहाज से भले ही इसे साइको-थ्रिलर का नाम दिया जा रहा हो, लेकिन यह बुनियादी तौर पर एक राजनीतिक फिल्‍म है जो एक आदतन अपराधी को हमारे समाज में मौजूद तमाम किस्‍म के अपराधियों के ऊपर प्रतिष्‍ठापित करती है। इस हद तक, कि फिल्‍म के अंत में रमन बोधिसत्‍व की भूमिका में आ जाता है- बोधिसत्‍व यानी निर्वाण का वह चरण जहां आपका कुकर्म कोई बुरी छाप नहीं छोड़ता, बल्कि आप दूसरे के कुकर्मों से उनको बरी करने की सलाहियत हासिल कर लेते हैं।

अनुराग कश्यप मानसिक रूप से विक्षिप्त लगता है!

Shikha : अनुराग कश्यप मुझे कई बार मानसिक रूप से विक्षिप्त लगता हैl माना हिंसा, अपराध और गंदगी आज के समाज का सच है, पर उसे फिल्माने का या कोई सामाजिक मुद्दा उठाने का एक यथार्थवादी सलीका होता हैl पर जिस प्रकार इन्हें वह अपनी फिल्मों में फिल्माता है, दृश्यों का फिल्मांकन, डायलाग, गाने आदि, उन्हें देखकर यही लगता है कि इस तरह की कल्पनाएँ किसी स्वस्थ दिमाग की उपज नहीं हो सकतीl

‘उड़ता पंजाब’ लीक कराने में दिल्ली निवासी वेबसाइट संचालक दीपक को मुंबई पुलिस ने किया गिरफ्तार

मुंबई । फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ लीक मामले में मुंबई पुलिस ने 25 साल के एक शख्स दीपक कुमार को गिरफ्तार किया है। दीपक कुमार वेबसाइट allzmovies.in का मालिक है। हालांकि बताया जा रहा है कि दीपक का सेंसर बोर्ड से कोई लिंक नहीं है। दिलीप चौबे निर्देशित ‘उड़ता पंजाब’ की पिछले हफ्ते सिनेमाघरों में रिलीज होने से 2 दिनों पहले अवैध तरीके से ऑनलाइन लीक कर दी गई थी। मुंबई पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि आरोपी दीपक कुमार को मुंबई पुलिस के साइबर सेल में तलब किया गया, जहां उसे गिरफ्तार कर लिया गया। जांच करने वाले अधिकारियों ने पाया है कि सेंसर बोर्ड की मूल कॉपी ‘चोरी’ हुई और इसके बाद वेबसाइट पर अपलोड कर दी गई।

‘उड़ता पंजाब’ में किरदारों और गल्‍प के नकलीपन ने गंदगी मचाई, ‘धनक’ एक अफ़सोस बन कर रह गई

Abhishek Srivastava : कोई ज़रूरी नहीं कि हर फिल्‍म यथार्थवादी हो, बल्कि मैं तो कहता हूं कि कोई भी फिक्‍शन यथार्थवादी क्‍यों हो। गल्‍प, गल्‍प है। बस, गल्‍प को बरतने की तमीज़ हो तो बेहतर है वरना गंदगी मच जाती है। कभी-कभार यह तमीज़ होते हुए भी जब रचनात्‍मक उड़ान पर बंदिश लगाई जाती है तो रचना अफ़सोस बनकर रह जाती है। Udta Punjab में किरदारों और गल्‍प के नकलीपन ने गंदगी मचाई है, तो नागेश कुकनूर खुलकर नहीं खेल पाए हैं इसलिए Dhanak एक अफ़सोस बन कर रह गई है।

पत्रकार से निर्देशक बने शैलेंद्र पांडेय की पत्रकारिता पर आधारित फिल्म JD पांच अगस्त को रिलीज होगी, देखें कुछ दृश्य

Bollywood film JD First looks out

Journalist turned Director and producer Shailendra pandey most awaited movie JD which is schedule to release on 5th August 2016. The first look of the film has been out which is making trend on social media. The treasure is showing fight of truth how a girl journalist who alleged sexual assault by JD. JD moves court for justice. The treasure also showing lots of drama, sex, fun and how journalist use there contact with politicians.

‘सरबजीत’: एक अच्छे विषय पर बुरी फिल्म

Sushil Upadhyay : ज्यादातर अखबारों ने फिल्म ‘सरबजीत’ को पांच में से तीन स्टार दिए हैं। कल मेरे पास खाली वक्त था, फिल्म देख आया। इस फिल्म के बारे में कुछ बातों को लेकर जजमेंटल होने का मन कर रहा है। आखिर इस फिल्म को क्यों देखा जाए? खराब पंजाबी के लिए! बुरी उर्दू जबान के लिए! जो लोग पंजाबी नहीं जानते, उन्हें भी पता है कि ‘न’ को ‘ण’ में तब्दील करने से पंजाबी नहीं बन जाती। पाकिस्ताण, हिन्दुस्ताण, हमणे….जैसे शब्दों को बोलते हुए ऐश्वर्या राय निहायत नकली लगती हैं। उनकी तुलना में रणदीप और ऋचा के संवाद ज्यादा सधे हुए और भाषा का टोन पंजाबियों वाला हैं। ऐश्वर्या के ज्यादातर संवाद उपदेश की तरह लगते हैं। वे सरबजीत की बहन दलबीर के तौर पर किसी भी रूप में प्रभावी नहीं हैं।

‘लाल रंग’ में हुड्डा का अभिनय अपनी मिट्टी और भाषा में खिलकर जवान हो गया है

Abhishek Shrivastava : पहली झलक Randeep Hooda की मुझे आज तक याद है. रीगल में ‘D’ लगी थी. अपनी-अपनी बिसलेरी लेकर मैं और Vyalok शाम 7 बजे के शो में घुसे. संजोग से मैंने उसी वक्‍त ‘सीनियर इंडिया’ पत्रिका ज्वाइन की थी. ‘D’ का विशेष आग्रह इसलिए भी था क्‍योंकि Alok जी ने पहला अंक धमाकेदार निकालने को कहा था। प्‍लान था कि छोटा राजन का इंटरव्‍यू किया जाए। ‘D’ की रिलीज़ का संदर्भ लेते हुए स्‍टोरी और इंटरव्‍यू जाना था। पहले अंक के आवरण पर छोटा राजन की आदमकद तस्‍वीर के साथ एक्‍सक्‍लूसिव इंटरव्‍यू छपा, लेकिन मेरे लिए खबर ये नहीं थी।

‘द जंगल बुक’ वाले रुडयार्ड किपलिंग तब दी पॉयोनियर इलाहाबाद में असिस्टेण्ट एडिटर थे

Sant Sameer : रुडयार्ड किपलिंग की मशहूर रचना ‘द जंगल बुक’ पर बनी बहुप्रतीक्षित फ़िल्म आज रिलीज हो रही है। बनी कैसी है, यह तो देखने के बाद पता चलेगा, पर इस रिलीज ने रुडयार्ड किपलिंग की याद ज़रूर दिला दी। किपलिंग सन् 1888 और 1889 के दो बरस इलाहाबाद में भी रहे थे। तब वे पॉयोनियर अख़बार में असिस्टेण्ट एडिटर थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सामने ही उनका बंगला था और पास में ही अख़बार का दफ़्तर।

युवा डायरेक्टर विनोद ने बनाई शॉर्ट फिल्म ‘काश! सब ठीक हो जाए’, यूट्यूब पर रिलीज

शॉर्ट फिल्म- य़स इट डज़ मैटर
निर्देशक- विनोद
कास्ट- अक्षय मिश्रा, ज्योति मिश्रा, शिव सिंह श्रीनेत, मयंक शाहनी
म्यूजिक- प्रमोद रिसालिया

युवा निर्देशक विनोद के निर्देशन में बनी शॉर्ट फिल्म य़स इट डज़ मैटर गुंगी फिलम् होते हुए भी बहुत बोल जाती है। इस फिल्म में नौकरी के लिए भटक रहे एक लड़के कहानी को कम समय काफी दिखाने का प्रयास किया गया है जोकि काफी सराहनीय है। ऐसी कहानी आम तौर पर भारत के हर शहर और मौहल्लों में सुनने और देखने को मिलती है खासकर लड़कियों के साथ। इस फिल्म में विजय नाम का लड़का काफी गरीब और आर्थिक तौर पर  कमजोर होने के कारण गांव को छोड़ कर शहर में नौकरी की तलाश में आता है। काफी इंटरव्यूज़ के बाद भी उसे नौकरी नहीं मिलती।

‘जय गंगाजल’ देखते हुए आपको हर वक्त यूपी के समाजवादी जंगलराज की याद आएगी

Yashwant Singh : जय गंगाजल… प्रकाश झा की फ़िल्में हमेशा मुझे पसंद रही हैं। पूरा सिस्टम इसमें दिख जाता है। जय गंगाजल पूरे तीन घंटे जमकर बांधे रखती है। धड़ाधड़ सीन एक्शन इमोशन बदलते बढ़ते रहते हैं जिससे बोर फील नहीं कर सकते।

फिल्म ‘अलीगढ़’ की कहानी जे एन यू की घटना से कितनी मिलती है : रवीश कुमार

Ravish Kumar : हम सब ‘बाई’ में है । बचपन में सुना था ये शब्द । मतलब अंधाधुँध रफ़्तार से भागे जा रहे हैं । तब ज़िंदगी रफ़्तार को अलग से देख लेती थी अब रफ़्तार ही ज़िंदगी है । ऐसे में कोई फ़िल्म हमारे ज़हन में ठहर जाए तो आदमी के पास भागने के लिए कोई दूसरा शहर नहीं बचता । अलीगढ़ ने ज़माने तक रफ़्तार का साथ दिया मगर अब वो ठहरने लगा है । शहर और विश्वविद्यालय दोनों । मुझे उम्मीद थी कि जहाँ जहाँ अलीगढ़ के पढ़े छात्रों का समूह है वहाँ ये फ़िल्म दिखायी जाएगी और देखी जाएगी । अलीगढ़ एक स्टेशन का नाम भर नहीं है कि वो खड़ा रह जाए और बदलते ज़माने की रफ़्तार वाली गाड़ियाँ वहाँ से गुज़र जाए।

मीडिया में दिलचस्पी रखने वाले हर शख्स, पत्रकार, स्टूडेंट को ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए

“द बोस्टन ग्लोब”। कई पुलित्जर पुरस्कारों से सम्मानित। पुलित्ज़र जो पत्रकारिता के क्षेत्र का शीर्ष पुरस्कार है। ”द बोस्टन ग्लोब” में 1970 में ”स्पॉटलाइट” नाम की एक इनवेस्टिगेटिव टीम की रचना की गई। ये नया प्रयोग था। इसमें चार-पांच लोगों की टीम एक विषय पर महीनों काम करती थी। कभी-कभी साल भर एक ही खबर में लगा देते। 45 साल में स्पॉटलाइट ने 102 खोजी रिपोर्ट कीं।

शाहरुख खान को देखकर पागल हो जाने वाली ये महिला पत्रकार क्या पत्रकारिता करने लायक हैं!

मीडिया में यंगस्टर आजकल बड़े लोगों संग सेल्फी लेने और सितारों के साथ अपना प्रेम जाहिर करने आते हैं… कल नोएडा में किडजेनिया के लांच समारोह में शाहरुख खान आए.. जाहिर है लाखों लड़कियों के दिलों की धड़कन शाहरुख आए तो पागल होना लाजमी था… जीआईपी मॉल के बाहर भीड़ लग चुकी थी… शाहरुख ने प्रेस कांफ्रेंस शुरू की… कुछ नई लड़कियों का ग्रुप जो जागरण, फैशन डॉट कॉम और कुछ अन्य संस्थाओं से आईं थी, उन्हें देख कर लग रहा था कि वो केवल खान को देखने आई हैं… उन्हें इस प्रेस कॉन्फ्रेंस से कोई लेना देना नहीं है … और हुआ भी वही…

रवीश कुमार को कैसी लगी फिल्म ‘वज़ीर’, पढ़िए…

क्रूर क्रूरतम होता जा रहा है । कमज़ोर को ही चुनौती है कि वो साहस दिखाये । क्रूरता को झेलते हुए मुस्कुराये । सत्ता और उसके नियम क्रूरता के प्रसार के लिए हैं । कमज़ोर सिर्फ उनकी चालों से शह की उम्मीद में मात खाता जा रहा है । हम जड़ होते जा रहे हैं । यथार्थ को समझते समझते हमने यथार्थ की वर्चुअल रियालिटी बना डाली है । दुनिया अगर ख़ुशगवार है तो वह सिर्फ विज्ञापनों में है । क्रूरता रोज बढ़ती जा रही है । उसका एक एकांत होता है । जहाँ कुछ लोग उसकी भेंट चढ़ते रहते हैं । हम इस दुनिया से क्रूरता कम नहीं कर सके।

टैगोर और उनकी एक खास प्रेयसी की कहानी सिल्वर स्क्रीन पर उतारने में मशगूल हैं सूरज कुमार

सूरज कुमार– एक नाम, एक कहानी– कहानी उन संघर्षों की, जो एक छोटे से गाँव से शुरू होकर किसी महानगर के फुटपाथों पर रगड़ खाकर धीरे-धीरे अपने परवान चढ़ती है। इस कहानी में दुःख भी है, खुशियाँ भी हैं, प्यार भी है और अलगाव भी है। नालंदा, बिहार के एक बेहद पिछड़े गाँव में पैदा होकर, वहीं की माटी में पले बढे सूरज के हौसले बुलंद थे और इरादे ठोस थे। देश की शीर्षस्थ संस्था जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में ज़िंदगी की लोरियाँ सुनकर भारतीय जन-संचार संस्थान में अपने इरादों को सूरज ने पंख लगाया और उड़ चले अपने सपनों के संसार में।