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उत्तर प्रदेश

यूपी के बरेली में नौनी राम और गोण्डा में अफजल की जेल में कैसे हुई मौत?

लखनऊ । रिहाई मंच ने बरेली जेल में नौनी राम व गोण्डा जेल में अफजल की हिरासत में मौत को मानवाधिकार उत्पीड़न का गंभीर मसला बताते हुए इन दोनों मामलों की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। रिहाई मंच प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य अनिल यादव ने कहा कि बरेली जेल में नौनी राम की हिरासत में मौत हुई जो कि 2006 से आजीवन कारावास की सजा काट रहे थे। इस प्रकरण में जिस तरीके से पुलिस ने कहा कि वह मानसिक तौर पर बीमार था और उसने अपने मफलर से फांसी लगाकर जान दी, वह प्रशासन को कई सवालों के घेरे में लाता है।

<p>लखनऊ । रिहाई मंच ने बरेली जेल में नौनी राम व गोण्डा जेल में अफजल की हिरासत में मौत को मानवाधिकार उत्पीड़न का गंभीर मसला बताते हुए इन दोनों मामलों की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। रिहाई मंच प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य अनिल यादव ने कहा कि बरेली जेल में नौनी राम की हिरासत में मौत हुई जो कि 2006 से आजीवन कारावास की सजा काट रहे थे। इस प्रकरण में जिस तरीके से पुलिस ने कहा कि वह मानसिक तौर पर बीमार था और उसने अपने मफलर से फांसी लगाकर जान दी, वह प्रशासन को कई सवालों के घेरे में लाता है।</p>

लखनऊ । रिहाई मंच ने बरेली जेल में नौनी राम व गोण्डा जेल में अफजल की हिरासत में मौत को मानवाधिकार उत्पीड़न का गंभीर मसला बताते हुए इन दोनों मामलों की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। रिहाई मंच प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य अनिल यादव ने कहा कि बरेली जेल में नौनी राम की हिरासत में मौत हुई जो कि 2006 से आजीवन कारावास की सजा काट रहे थे। इस प्रकरण में जिस तरीके से पुलिस ने कहा कि वह मानसिक तौर पर बीमार था और उसने अपने मफलर से फांसी लगाकर जान दी, वह प्रशासन को कई सवालों के घेरे में लाता है।

अगर नौनी राम बीमार था तो क्या उसका इलाज करावाया जा रहा था या फिर ऐसे मानसिक तौर पर विक्षिप्त कैदी को क्यों सामान्य कैदखानें में रखा गया था। ऐसे बहुतेरे सवाल बरेली कारावास प्रशासन की आपराधिक भूमिका को सामने लाते हैं। उन्होंने कहा कि ठीक इसी तरह गोण्डा जेल में सुखवापुरा थाना कर्नलगंज निवासी अफजल की हिरासत में हुई मौत पर पुलिस ने कहा है कि उसने पेड़ पर चढ़कर फांसी लगा ली।

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रिहाई मंच नेता राघवेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि जिस तरीके से फरवरी माह में जालौन में दलित समुदाय के अमर सिंह दोहरे की उच्च जाति के लोगों ने नाक काट ली और उनके दोषियों को पुलिस ने बचाने के लिए एफआईआर दर्ज न करने का हर संभव प्रयास किया। ठीक इसी तरह झूंसी इलाहाबाद में हिरासत के दौरान हुई मौत से न सिर्फ पुलिस ने पल्ला झाड़ा बल्कि दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने वाली जनता पर एफआईआर दर्ज किया तो वहीं बरेली और गोण्डा जेल में हुई मौतें साफ कर रही हैं कि पुलिस और अपराधियों की इन घटनाओं में संलिप्तता है। दलित उत्पीड़न की घटनाओं और हिरासत में हो रही मौतों पर यूपी सरकार की चुप्पी से आपराधिक पुलिस व सामंती ताकतों का मनोबल बढ़ा हुआ है। ऐसे में इन घटनाओं प्रदेश सरकार जिम्मेदारी पूर्वक किसी उच्च जांच एजेंसी से जांच करवाए।

द्वारा जारी
शाहनवाज आलम
प्रवक्ता, रिहाई मंच
09415254919

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