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जनसता अखबार में अब ऐसी गल्तियां छपने लगीं!

अच्छी बात है कि अब ये अख़बार हमारे घरों में नहीं आता नहीं तो इसे पढ़कर हमारे घरों में बच्चों की हिंदी किस स्तर की होती, आप अंदाजा लगा सकते हैं। आज कई वर्षों के बाद पुराने दफ़्तर जाना हुआ। पुराने साथी से बातचीत के दौरान वहां रखी फ़ाइल को भी देखने लगा। उसमें पीछे कहीं जनसत्ता को देखकर बड़ा अजीब लगा। आवाज निकली, अरे ये अभी जिन्दा है।

बहुत पहले सुना था कि अख़बार में जरा भी दम नहीं बची। उत्सुकता हुई तो देख लिया। सच में, जनसत्ता क्या था और क्या हो गया। पहले वहां कितनी जटिल प्रकिया के बाद नौकरी मिलती थी। अब ऐसे लोग मिलेंगे जिन्हें हिंदी तक नहीं आती। कभी सोचा भी नहीं था यहां ऐसे लोग काम करेंगे।

एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.

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