विश्व दीपक-
“तालिबान ने जो शरिया कानून लागू किया था उससे आपको दिक्कत क्या है?”
“उसे कनून कहा जा सकता है? तालिबान ने जो भी किया था वह इस्लाम की मूल भावना और न्याय की इस्लामिक अवधारणा दोनों के खिलाफ़ है. हम इस्लामिक फ्रेमवर्क के अंदर ही अफगानिस्तान में संविधान, लोकतंत्र और कानून का राज स्थापित करना चाहते हैं…आप पूछते हैं कि फर्क क्या है? फर्क शरिया के इंटरप्रेटेशन और एक्जिक्यूशन का है. तालिबान ने शरिया का इस्तेमाल डर और दशहत कायम करने के लिए किया था. शरिया कानून के तहत अगर कड़ी सजा का प्रावधान है तो फैसला सुनाने से पहले उसी स्तर के सबूत भी देखना चाहिए. तालिबान ने शरिया के नाम पर अफगानिस्तान की जनता पर अमानुषिक अत्याचार किए. इन्हें भुलाया नहीं जा सकता. करजई सरकार के आने के बाद मैंने जो नया संविधान ड्राफ्ट किया है उसमें इन सबका खयाल रखा गया है.”
तालिबान के पतन के बाद अफगानिस्तान सुप्रीम कोर्ट के पहले चीफ जस्टिस बने अब्दुल सलाम अज़ीमी का 14 साल पहले मैंने 2007 में इंटरव्यू किया था.
मिलते ही जस्टिस अज़ीमी ने हाथ मिलाया और कहा : अरे आप तो बहुत मासूम, बच्चों जैसे दिखते हैं. बातचीत से लगा था की आप सीनियर होंगे.
आज़मी साब की नरम, गुदेदार मगर मजबूत हथेली की पकड़ आज भी महसूस कर सकता हूं.
उम्र कम थी लेकिन दुस्साहस में कमी नहीं थी. मैंने आज़मी साब से काफी कड़े सवाल किए. इंटरव्यू के बाद अज़ीमी साहब ने पीठ ठोकी, कहा : यू आर अ फैंटास्क्टिक इंटरव्यूअर. फ्रैंकली स्पीकिंग आई डिड नॉट एक्सपेक्ट सच क्वेश्चंस फ्रॉम यू बट आई एम हैप्पी विथ द इंटरव्यू. आई इन्वाइट यू टू अफगानसितान. कम, यू विल बी माई गेस्ट.
जस्टिस अज़ीमी ने अपने घर का नंबर दिया. इंटरव्यू “समकाल” नाम की पाक्षिक में प्रकाशित हुआ था जिसके संपादक तब लेखक उदय प्रकाश थे. प्रोपराइटर शीतल पी सिंह. मैने “समकाल” की कॉपी अज़ीमी साब को कूरियर की थी.
इंटरव्यू से जस्टिस,प्रोफेसर अज़ीमी के बच्चे बहुत खुश हुए थे. एक दो बार उनकी बेटी से भी बातचीत हुई थी. शायद वो सब अमेरिका में रहते हैं. अज़ीमी साब भी अफगानिस्तान का चीफ जस्टिस बनने से पहले अमेरिका में प्रोफेसर थे.
उनके घर वाले नंबर पर कुछ सालों तक बात होती रही. मैं योजनाएं बनाता रहा कि इस साल नहीं तो उस साल अफगानिस्तान जाऊंगा लेकिन वो साल कभी नहीं आया. आजतक पहुंचने के बाद धीरे- धीरे प्रोफेसर अज़ीमी से बातचीत बंद हो गई.
अज़ीमी साब ने कहा था कि तुम इंटरव्यू अच्छा करते हो. किया करो. उसी दौरान मैंने विश्व हिंदू परिषद के फायर ब्रांड नेता गिरिराज किशोर (अब दिवंगत) का इंटरव्यू किया. गिरिराज ने कहा था गोली मार दूंगा तुमको. एक हादसा होते बचा. इसके बाद कई सालों तक किसी का इंटरव्यू नहीं कर सका.
अब करना भी नहीं चाहता. अब और दुश्मनियां नहीं झेलना चाहता. रिश्ते तोड़ने से अच्छा है कि इंटरव्यू ना किया जाए.अफसोस इस बात का है कि आज मेरे पास दोनों में से कोई भी इंटरव्यू नहीं है. चीज़ों को सहेज नहीं पाता, शायद इसलिए.
अज़ीमी साब का ख्याल आ रहा है. पता नहीं ज़िंदा हैं भी या नहीं. तालिबान के नए निज़ाम को देखकर अपने न्यायिक सुधारों के बारे में क्या सोच रहे होंगे ? काश उनसे बात कर पाता.