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सुख-दुख

एक नेता को काफिर लिखने वाले पत्रकार अमन पठान के साथ क्या हुआ, सुनिए आपबीती

अमन पठान

अदालतों में इंसाफ अभी बाकी है और जजों का ज़मीर जिंदा है… मुझे पुलिस पर भरोसा है लेकिन पुलिसवालों पर कतई भरोसा नहीं है क्योंकि पुलिसवाले कभी नेताओं के दवाब में तो कभी अपनी गंदी मानसिकता के चलते कानूनी कार्रवाई की अमलीजामा पहनाते है। किसान आंदोलन से संबंधित टूलकिट केस में गिरफ्तार जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि की जमानत पर चल रही सुनवाई के दौरान दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में पुलिस से एक बहुत अहम सवाल पूछा गया। एडिशनल सेशन जज धर्मेंद्र राणा ने दिल्ली पुलिस से पूछा कि ‘अगर मैं मंदिर का चंदा मांगने डकैत के पास जाऊं तो क्या मैं डकैती में शामिल माना जाऊंगा?’ इसका जवाब दिल्ली पुलिस के पास नहीं था।

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ऐसा ही कुछ जुलाई 2018 में मेरे साथ हुआ था। मैंने उदाहरण के तौर पर एक नेता को काफिर लिख दिया था। जिससे भाजपा नेताओं की धार्मिक भावनाएं आहत हो गईं। मेरे खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने थाने पहुंच गए। थानेदार ने मुकदमा दर्ज करने में आनाकानी की क्योंकि मामला थाना स्तर पर ही रफा दफा करने वाला था। आखिरकार पुलिस को सत्ता के सामने नतमस्तक होना पड़ा। थानेदार ने सत्ता के दवाब में मुकदमा तो दर्ज कर लिया और भाजपा नेताओं को जांच के बाद कार्रवाई का आश्वासन दिया लेकिन भाजपा नेता मेरी गिरफ्तारी को लेकर जिद पर अड़ गए जबकि नियमानुसार पहले मामले की जांच होनी थी उसके बाद गिरफ्तारी। पुलिस को राजनीतिक दबाव के कारण पुलिस को मेरी गिरफ्तारी के लिए मजबूर होना पड़ा।

मुझे 23+1=24 दिन जेल में रहना पड़ा। मेरी जमानत की सुनवाई के दौरान विपक्ष के वकील ने अपनी दलील में जज से कहा, अमन पठान बहुत खतरनाक इंसान है, अमन पठान के साथ कोई रियायत नही बरतनी चाहिए। जिस पर जज साहब ने कहा, इसका मतलब अमन पठान को फांसी दे देनी चाहिए? जिस पर विपक्षी वकील खामोश हो गया क्योंकि धारा 66A, 67, 295A के तहत आरोपी को फांसी नहीं दी जा सकती है।

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विपक्षी वकील की खामोशी बरकरार रहने पर जज साहब ने कहा, अमन पठान के एक नेता को काफिर लिख देने के एटा में कोई उपद्रव या दंगा हुआ या फिर किसी की मौत हुई? पत्रकार अपनी कलम से किसी के खिलाफ कुछ लिखेगा या नही लिखेगा, या फिर मेरे कोर्ट के बाहर मूंगफली बेचेगा? कोई जवाब न मिलने पर जज साहब ने मेरी जमानत याचिका को मंजूर कर लिया और समाज को एक संदेश दे दिया अदालतों में इंसाफ अभी बाकी है और जजों का ज़मीर जिंदा है। जहां सत्यमेव जयते लिखा होता है वहां कोई न कोई इंसाफ की मशाल लिए बैठा होता है।

अमन पठान
एटा का क्रांतिकारी पत्रकार

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