ग्वालियर। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ के न्यायमूर्ति सुजयपाल एवं न्यायमूर्ति फहीम अनवर ने राजस्थान पत्रिका लिमिटेड (आर पी एल) बनाम मध्यप्रदेश शासन की पुर्नविचार याचिका निरस्त करते हुए निर्णित किया है कि वेतनमान प्राप्ति के लिए निर्धारित प्रारूप के अनुसार ही आवेदन दिया जाए, यह आवश्यक नहीं है। श्रम कानून सामाजिक लाभ के विधान हैं। इसमें तकनीकी त्रुटियों एवं बारिकियों को नहीं देखा जाना चाहिए। यह सिविल न्यायालय की तरह विधान नहीं है।
प्रकरण के तथ्यों के अनुसार कर्मचारी ने निर्धारित वेतनमान के अनुसार वेतन की गणना कर उप श्रमायुक्त के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया था एवं 961080 (रूपये नौ लाख इकसठ हजार अस्सी रुपये मात्र) वेतन के अंतर की मांग थी। उप श्रमायुक्त के समक्ष मैनेजमेंट ने तकनीकी आपत्तियां उठाई एवं वेतनमान के अंतर की राशि का स्पष्ट खंडन नहीं किया।
उप श्रमायुक्त भोपाल ने वेतनमान की सारणी के अनुसार गणना उचित मानकर 961080 की राशि वसूली के आदेश दिए। मैनेजमेंट ने उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत कर उप श्रमायुक्त के वसूली आदेश को चुनौती दी। इसे माननीय उच्च न्यायालय ने गुणदोष पर सही पाते हुए खारिज कर दी तथा उपश्रमायुक्त के आदेश को उचित माना। मैनेजमेंट द्वारा पुनः पुर्नविचार याचिका 18-07-19 के आदेश के खिलाफ प्रस्तुत किया गया। इसको माननीय उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने 18 दिसंबर 2020 को खारिज कर दिया एवं कई व्यवस्थाएं दीं।
माननीय उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय के पैरा 21 में यह भी उल्लेखित किया है कि कर्मचारी ने उप श्रमायुक्त के समक्ष जो वेतन पत्रक प्रस्तुत किया था, मैनेजमेंट ने उसे स्पष्टतया विवादित नहीं किया। इसलिए उप श्रमायुक्त का वसूली आदेश विधिवत है। इतना ही नहीं, वेतनमान की सिफारिशों के अनुसार निर्धारित वेतनमान से कम वेतन का कोई घोषणा पत्र कर्मचारी से लेना विधि सम्मत नहीं है। माननीय उच्च न्यायालय ने मैनेजमेंट की पुर्नविचार याचिका निरस्त कर दी।
देखें कोर्ट द्वारा दी गईं कुछ व्यवस्थाएं-
- पुर्नविचार याचिका केवल सात्विक त्रुटि के सुधार के लिए ही दी जा सकती है। पुनः गुणदोष पर सुनवाई नहीं की जा सकती।
- विधान में दिए गए नियम प्रारूप के अनुसार ही आवेदन प्रस्तुत किया जाए, यह जरूरी नहीं है। तकनीकी आधार पर आवेदन निरस्त नहीं किया जा सकता।
- श्रम कानून सामाजिक लाभ के विधान हैं। इसके प्रावधानों को उदार रूप में देखा जाना चाहिए।
- आवेदन के निराकरण में उच्च तकनीकी स्वरूप को ही आधार नहीं बनाया जाए।