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सुख-दुख

बीमारी ने वरिष्ठ पत्रकार को अपने-पराए का एहसास करा दिया!

अवधेश कुमार-

कुछ लोग बहुत तकलीफ देते हैं। मैं सोशल मीडिया पर अभी बहुत बातें नहीं लिखना चाहता क्योंकि अर्थ लगाया जाएगा कि मैं लंबी अस्वस्थता के कारण निराशा में हूं, इस कारण मुझे गुस्सा ज्यादा आता होगा, इसलिए मेरे अंदर नकारात्मक भाव भी ज्यादा आता होगा…. ।

मैं इतने लंबे समय बीमार रहा…. अभी भी स्वस्थ होने का संघर्ष जारी है। मेरे निकट के जिन मित्रों लोगों ने मेरी खोज खबर तक नहीं ली उनके प्रति मेरे मन में पहले की तरह प्रेम या उद्गार कैसे हो सकता है? मैं किसी से नाराज नहीं हूं लेकिन मेरे अंदर यह भाव पैदा नहीं हो सकता कि अब ये लोग मुझे फोन करते हैं तो सब कुछ छोड़कर इनका फोन रिसीव करो, प्रेम से इनसे बात करो।

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सबको पूरी जानकारी चाहिए कि क्या हुआ…. इनको पूरी अपनी बीमारी, अपनी सारी समस्याओं के बारे में बताओ, और फिर एक लाइन में कुछ इस तरह जवाब दे दो जैसे कि अरे, आप बिल्कुल ठीक हैं, अरे आप ठीक हो जाएंगे, अरे हम तो आपके भाई से संपर्क में थे, अरे हमने तो फोन किया था आप के ड्राइवर ने उठाया आदि आदि। मैं जब अपने को सामान्य मान लूंगा तो ऐसे लोगों को कॉल करूंगा क्योंकि मैं किसी से संपर्क – संबंध तोड़ता नहीं।

हालांकि इन इन सबमें से एक दो लोग भी थोड़ा सक्रिय होकर मेरे साथ एक दो दिन भी गुजारे होते तो मुझे इस स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता। सभी मित्रों को मालूम है कि मेरी न पत्नी है न मेरे बच्चे हैं। गंभीर रूप से बीमार पड़ जाने, शरीर के अशक्त व दुर्बल हो जाने, दूसरों पर निर्भर हो जाने के बाद इसमें जो दशा होती है उसको मैं भुगता हूं। उससे निकलने की पूरी कोशिश कर रहा हूं, कुछ हद तक निकला हूँ, उम्मीद है निकल भी जाऊंगा.. इसी में थोड़ी बहुत सक्रियता भी बढ़ा रहा हूं लेकिन इस स्थिति में नहीं हूं कि इन सबका फोन रिसीव करके बात करुं या उनको कॉल बैक करो करूं।

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ऐसे कई लोग हैं जिनके बारे में मैं कहता था कि यह तो मेरे विस्तृत परिवार के अंग हैं.. मैंने अनेक परिवार बनाए हैं जिनमें ये भी है। इस बीमारी ने एहसास करा दिया कि ऐसा कोई परिवार मेरे साथ संकट की घड़ी में खड़ा होने वाला नहीं है। भले मैं किसी के लिए कितने कठिन से कठिन अवसर पर खड़ा रहा हूं, पहुंचा हूँ, काम किया हूँ।

मेरा जो दायित्व है आगे भी निभाऊंगा। दूसरे ने नहीं निभाया उसका वे जानें लेकिन यह मनोस्थिति नहीं है कि उनका फोन आया है तो दौड़कर रिसीव कर ही लो। वैसे भी मैंने देखा है कि इसकी स्थिति में भी मेरे पास ऐसे ज्यादातर लोगों का फोन किसी न किसी अपनी समस्या या अपने काम से ही आ रहा है।

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मैं अभी गांव से शहर मुजफ्फरपुर तक रह रहा हूं। वहां भी कभी कोई मिलने आता है तो लगता है शायद मेरे लिए मिलने आया। पता चलता है कि वो अपने ही उद्देश से आए हैं। इससे मुझे अंदर पीड़ा होती है और उसका असर मेरे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल पड़ता है। अभी पिछले हफ्ते मेरे एक रिश्तेदार किसी के साथ आए थे। काफी लंबे समय बातचीत हुई। हालांकि उन्होंने मेरी बीमारी के बारे में कुछ पूछा नहीं लेकिन शायद कोई बात चल गई उसमें मैं जब बताने लगा और बताता चला गया कि कैसे मेरी हालत खराब हुई, काफी हद तक मेरी आंखों की रोशनी चली गई, एक समय मेरे दोनों पैरों ने काम करना बंद कर दिया….. वहां से मैं इस स्थिति में आया हूं, इतना परिश्रम कर रहा हूं आदि लेकिन उनके मुंह से किसी प्रकार की सहानुभूति या अन्य कुछ नहीं निकला, बस एक लाइन उन्होंने कहा कि आप कसरत करते हैं तो अब आप ठीक हो जाएंगे।

अंदर की वेदना मैंने अंदर ही रख ली। केवल मैंने यह कहा कि मैं कसरत पहले भी करता था, कसरत करते हुए ही बीमार पड़ा। इस तरह के बिना मन के मेरी बात सुन कर कोई एक दो लाइन अपने अनुसार बोल देना मेरी रिकवरी में बाधा पहुंचाती है। भविष्य में चूंकि मुझे देश का कुछ काम करना है, जो मैंने सोचा हुआ है तो अभी ऐसे लोगों से मेरे लिए दूर रहना ही बेहतर है। इस 1 वर्ष की अवधि में जीवन के कई ढांचे बिखरे हुए हैं। मेरे छोटे भाई राम कुमार की पत्नी नीतू ही जितना संभव है मेरा देखभाल करती है।

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मुझे अपने घर में ही ठीक से देखभाल करने के लिए एक सहयोगी – नौकर जो भी कहिए चाहिए। ढूंढ रहा हूं। एक और ड्राइवर की भी तलाश है। धीरे-धीरे सब आने वाले कुछ महीनों में रास्ते पर आ जाएगा ऐसी उम्मीद है। फिर सामान्य जीवन में ऐसे सभी लोगों के साथ समागम होगा।

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1 Comment

1 Comment

  1. RAJ SHEKHAR SINGH

    June 8, 2021 at 11:15 pm

    आखिर आप किसी से उम्मीद ही क्यों करते हैं। उम्मीद ही गलत है। संकट में खून का रिश्ता ही काम आता है बाकी सब कहानी किस्से हैं। आपकी संतान पत्नी भाई रिश्तेदार ही काम आ सकते हैं । जिसे आप मित्र या दोस्त कहते हैं कहानी किस्से ही हैं।

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