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भारतीय साहित्य किसी बड़े आंदोलन की प्रतीक्षा कर रहा है : केदारनाथ सिंह

: समकालीन भारतीय कविता में भारतीयता के तत्वों को खोजने की जरूरत है : कोलकाता : हिंदी के वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह ने कहा है कि समकालीन भारतीय कविता में भारतीयता के तत्वों को खोजने एवं उन पर गंभीरता से बिचार करने की जरूरत हैं. यह काम नयी पीढ़ी ही कर सकती है. समकालीन कविता अब ऐसे क्षेत्रों से भी उभर कर आ रही है जिनके बारे में अब तक सोचा नहीं गया. सिंह ‘समकालीन भारतीय कविता’ विषयक सेमिनार में बोल रहे थे. प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित इस सेमिनार में सिंह ने कहा कि अब साहित्य में बड़ा आंदोलन नहीं हो रहा है. भारतीय साहित्य किसी बड़े आंदोलन की प्रतीक्षा कर रहा है.

<p>: <strong>समकालीन भारतीय कविता में भारतीयता के तत्वों को खोजने की जरूरत है</strong> : कोलकाता : हिंदी के वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह ने कहा है कि समकालीन भारतीय कविता में भारतीयता के तत्वों को खोजने एवं उन पर गंभीरता से बिचार करने की जरूरत हैं. यह काम नयी पीढ़ी ही कर सकती है. समकालीन कविता अब ऐसे क्षेत्रों से भी उभर कर आ रही है जिनके बारे में अब तक सोचा नहीं गया. सिंह 'समकालीन भारतीय कविता' विषयक सेमिनार में बोल रहे थे. प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित इस सेमिनार में सिंह ने कहा कि अब साहित्य में बड़ा आंदोलन नहीं हो रहा है. भारतीय साहित्य किसी बड़े आंदोलन की प्रतीक्षा कर रहा है.</p>

: समकालीन भारतीय कविता में भारतीयता के तत्वों को खोजने की जरूरत है : कोलकाता : हिंदी के वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह ने कहा है कि समकालीन भारतीय कविता में भारतीयता के तत्वों को खोजने एवं उन पर गंभीरता से बिचार करने की जरूरत हैं. यह काम नयी पीढ़ी ही कर सकती है. समकालीन कविता अब ऐसे क्षेत्रों से भी उभर कर आ रही है जिनके बारे में अब तक सोचा नहीं गया. सिंह ‘समकालीन भारतीय कविता’ विषयक सेमिनार में बोल रहे थे. प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित इस सेमिनार में सिंह ने कहा कि अब साहित्य में बड़ा आंदोलन नहीं हो रहा है. भारतीय साहित्य किसी बड़े आंदोलन की प्रतीक्षा कर रहा है.

प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय की उप कुलपति प्रोफेसर अनुराधा लोहिया ने सेमिनार का उद्घाटन किया. उन्होंने हिंदी विभाग के कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि वर्षों बाद फिर से साहित्य से जुड़ने का मौका मिल रहा है, जिसके लिए मैं हिंदी विभाग की आभारी हूँ. साहित्य को पढ़ना, सुनना एक सरस और सुखद अनुभूति है. बांग्ला भाषा के बड़े कवि निरेन्द्रनाथ चक्रबर्ती, प्रोफेसर अभीक मजूमदार, प्रोफेसर गोपादत्त भौमिक समेत अन्य कवियों ने बांग्ला की चुनिंदा कविताओं का पाठ किया एवं समकालीन बांग्ला कविता पर अपने विचार रखे. 

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मृत्युंजय कुमार सिंह ने हिंदी, बांग्ला और भोजपरी कवित्ता पाठ किया. हिंदी विभाग कि विभागाध्यक्ष प्रोफेसर तनूजा मजूमदार ने सेमिनार की रुपरेखा प्रस्तुत की. उद्घाटन सत्र का संचालन असिस्टेंट प्रोफेसर वेदरमन पाण्डेय ने किया. तीन सत्र में आयोजित इस सेमिनार के पहले सत्र में बांग्ला, असमिया और संथाली कविताओं का पाठ किया गया. इसमें असमिया कवि निलिन कुमार और संथाली कवि शारदा प्रसाद किंसुकु और जॉन जंतु सोरेन ने कविता पाठ एवं अपने विचार व्यक्त किये.

इस सत्र का संचालन हिंदी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर अनिंद्य गांगुली ने की. दूसरे सत्र का संचालन हिंदी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर ऋषि भूषण चौबे ने किया. दूसरे सत्र में संस्कृत, कोकबोरक और ओड़िया भाषा की कविताओ पर विचार प्रस्तुत किया गया जिसमें शीतनाथ आचार्य, चन्द्रकला पाण्डेय और रविंद्रनाथ मिश्रा ने भाग लिया. तीसरे सत्र का संचालन असिस्टेंट प्रोफेसर मैरी हांसदा ने किया जिसमें वरिष्ठ कवि अरुण कमल ने हिंदी और शनाज़ नवी ने उर्दू कविता पर और प्रोफेसर शिवनाथ पाण्डेय  ने भोजपुरी कविता से सम्बंधित अपने विचार व्यक्त किये.

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अरुण कमल ने कहा कि देशी भाषाओ कि कविताये विशेषकर हिंदी अंग्रेजी के प्रभाव से मुक्त हो चुकी हैं. इस सत्र की अध्क्षयता प्रोफेसर सुमन गुएन ने किया. सेमिनार में विद्यार्थियों के अलावा विभिन कालेजों के अध्यापकों ने भाग लिए.

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