जन आंदोलनों से अस्तित्व में आये उत्तराखंड राज्य में घोटालों व भ्रष्टाचार के अलावा पिछले डेढ दशकों में कोई बडी उपलब्धि नहीें हैं। राज्य में उच्च पदों पर बैठे लोगों की उपाधियों पर उठ रहे सवालों के बीच राज्य में प्रमुख मीडिया समूहों की कार्य प्रणाली भी सवालों के घेरे में घिरी हुई है। सारे साक्ष्य उपलब्ध कराने के बावजूद राज्य के कुछ प्रमुख अखबार जनहित से जुडे समाचारों को तवज्जो नहीं दे रहे हैं। राज्य सरकार से तो विज्ञापन मिलता है इसलिए मीडिया की यह एक मजबूरी हो सकती है लेकिन यदि किसी विश्वविद्यालय के कुलपति की शैक्षिक योग्यता पर अंगुली उठ रही है और प्रेस वार्ता में सारे साक्ष्य उपलब्ध कराये जाने के बाद समाचार गायव होना अंदर खाने की सेटिंग बयां करती है।
उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो महावीर अग्रवाल की अंकतालिकाएं सूचना अधिकार अधिनियम के तहत उपलब्ध नहीं हो रही हैं। दो आरटीआई कार्यकर्ताओं द्वारा गुरूकुल कांगडी विवि हरिद्वार व राजभवन, देहरादून के सूचना अधिकारी से प्रो महावीर अग्रवाल की हाईस्कूल, इंटर व स्नसतक की अंकतालिकाएं सूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत मांगी थी लेकिन दोनों ही सूचना अधिकारियों ने सूचनाएं उपलब्ध नहीं कराई। गुरूकुल कांगडी विवि के सूचना व अपीलीय अधिकारी ने यह कहकर सूचनाएं उपलब्ध नहीं कराई कि संबधित द्वारा अपने शैक्षणिक अभिलेख देने से स्पष्ट इंकार कर दिया था। दूसरे मामले में राजभवन सचिवालय के सूचना अधिकारी ने संस्कृत विवि हरिद्वार के सूचना अधिकारी को सभी सूचनाएं अपीलार्थी को उपलब्ध कराने का आदेश 7 मार्च 2015 को दिया था, लेकिन संस्कृत विवि सूचना अधिकारी व कुलसचिव ने अंकतालिकाओं के स्थान पर प्रो महावीर अग्रवाल का सात पृष्ठीय जीवन वृत अपीलकर्ता को उपलब्ध करा दिया है। कुलसचिव को अंकतालिकाओं व जीवन वृत में अन्तर ही स्पष्ट नहीें हो पा रहा है।
आरटीआई कार्यकर्ता श्याम लाल ने बताया कि सूचनाएं उपलब्ध न कराये जाने पर उनके द्वारा राजभवन के प्रथम अपलीय अधिकारी के समक्ष अपना पक्ष दिनांक 11 मई 2015 को रखा। उन्होंने मांगी गई सभी सूचनाओं को उपलब्ध कराने का आग्रह किया। लेकिन राजभवन सचिवालय भी सूचनाएं नहीं दे पाया। सुवनाई के बाद राजभवन सचिवालय ने उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलसचिव को अबिलंव सूचनाएं उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है।
प्रो महावीर अग्रवाल उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार के कुलपति होने के अलावा इस संस्था के अपीलीय अधिकारी भी हैं। ऐसे में उन्हें स्वयं पहल करते हुए अपने सभी दस्तावेज उपलब्ब्ध कराने चाहिए थे, लेकिन जिस प्रकार से सूचनाएं नहीं दी जा रही है उससे उनके शैक्षणिक अभिलेखों को लेकर संदेह पैदा हो रहा है। इसके अवला एक महत्वपूण पहलू यह भी है कि प्रो अग्रवाल की प्रमाणित जन्म तिथि भी उपलब्ध नहीं कराई जा रही है।
उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार प्रो अग्रवाल ने सन 1966 में आर्ष महाविद्यालय, झज्जर हरियाणा से मध्यमा यानि हाईस्कूल की परीक्षा पास की । इसके दो साल बाद ही इन्होंने 1968 में शास्त्री यानि बीए की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर दी। इतना ही नहीं इसके साल बाद 1969 में व्याकरणाचार्य की उपाधि भी हासिल कर ली। कुलमिलाकर प्रो महावीर अग्रवाल ने चार साल में हाईस्कूल से एम,ए, की उपाधि प्राप्त कर ली। दिलचस्प बात यह भी है कि इनकी हाईस्कूल की अंकतालिका में जन्म तिथि का कोई उल्लेख नहीं है। इसके अलावा जहां से इन्होंने उपाधियां प्राप्त की हैं उस महाविद्यालय को सन 1969 में गुरूकुल कांगडी विवि, हरिद्वार से मान्यता मिली थी।
इस संबध संस्कृत शिक्षा मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी को भी सामाजिक कार्यकर्ताओं की ओर से लिखित शिकायत सभी दस्तावेजों के साथ उपलब्ध करा दिया गया है लेकिन पिछले चार महीनों से अभी तक इस प्रकरण में कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है। इधर एक प्रतिनिधि मंडल ने 14 मई को राज्यपाल से मिलकर एक 40 पुष्ठों का दस्तावेज सौपकर उचित कार्रवाई की मांग की है। उत्तराखंड में उच्चपदस्थ लोगों व मीडिया की नैतिकता का एक अच्ठा मुददा जनता के सामने है। अब देखना होगा कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोग इस मामले का क्या समाधान करते हैं।
आरटीआई कार्यकर्ता श्याम लाल की रिपोर्ट. संपर्क: 09412961750