Connect with us

Hi, what are you looking for?

उत्तर प्रदेश

अखिलेश के साहसिक निर्णय के बाद कुनबे में युद्ध शुरू

भतीजे के दांव से बाप-चचा सब चित, सपा पर भारी अखिलेश की सोच और जातिवाद पर भारी पड़ा विकासवाद

अजय कुमार, लखनऊ

अंत भला तो सब भला। समाजवादी पार्टी में अखिलेश समर्थक यही कह रहे हैं। पहले साल बाहुबली नेता डीपी यादव को और आखिरी समय में बाहुबली अंसारी बंधुओं को ‘नो इंट्री’ का कार्ड दिखाकर अखिलेश यादव ने यह साबित कर दिया है कि अगर वह अड़ जायें तो फिर उन्हें कोई बैकफुट पर नहीं ढकेल सकता है। तीन दिनों तक चले ड्रामें के बाद सपा संसदीय बोर्ड की बैठक में अखिलेश के तेवरों को देखते हुए जब पार्टी ने मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल (कौएद) से किराना करने की घोषणा की तो उन लोगों के चेहरों पर मायूसी दिखाई दी जिन्हें लगता था कि कौएद की मदद से सपा पूरबी उत्तर प्रदेश की कुछ सीटों पर अपनी ताकत में इजाफा कर सकती है।

<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({ google_ad_client: "ca-pub-7095147807319647", enable_page_level_ads: true }); </script><p><span style="font-size: 18pt;">भतीजे के दांव से बाप-चचा सब चित, सपा पर भारी अखिलेश की सोच और जातिवाद पर भारी पड़ा विकासवाद</span></p> <p><img class=" size-full wp-image-15622" src="http://www.bhadas4media.com/wp-content/uploads/2014/08/images_kushal_ajaykumarmaya1.jpg" alt="" width="122" height="107" /></p> <p><strong>अजय कुमार, लखनऊ</strong></p> <p>अंत भला तो सब भला। समाजवादी पार्टी में अखिलेश समर्थक यही कह रहे हैं। पहले साल बाहुबली नेता डीपी यादव को और आखिरी समय में बाहुबली अंसारी बंधुओं को ‘नो इंट्री’ का कार्ड दिखाकर अखिलेश यादव ने यह साबित कर दिया है कि अगर वह अड़ जायें तो फिर उन्हें कोई बैकफुट पर नहीं ढकेल सकता है। तीन दिनों तक चले ड्रामें के बाद सपा संसदीय बोर्ड की बैठक में अखिलेश के तेवरों को देखते हुए जब पार्टी ने मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल (कौएद) से किराना करने की घोषणा की तो उन लोगों के चेहरों पर मायूसी दिखाई दी जिन्हें लगता था कि कौएद की मदद से सपा पूरबी उत्तर प्रदेश की कुछ सीटों पर अपनी ताकत में इजाफा कर सकती है।</p>

भतीजे के दांव से बाप-चचा सब चित, सपा पर भारी अखिलेश की सोच और जातिवाद पर भारी पड़ा विकासवाद

Advertisement. Scroll to continue reading.

अजय कुमार, लखनऊ

अंत भला तो सब भला। समाजवादी पार्टी में अखिलेश समर्थक यही कह रहे हैं। पहले साल बाहुबली नेता डीपी यादव को और आखिरी समय में बाहुबली अंसारी बंधुओं को ‘नो इंट्री’ का कार्ड दिखाकर अखिलेश यादव ने यह साबित कर दिया है कि अगर वह अड़ जायें तो फिर उन्हें कोई बैकफुट पर नहीं ढकेल सकता है। तीन दिनों तक चले ड्रामें के बाद सपा संसदीय बोर्ड की बैठक में अखिलेश के तेवरों को देखते हुए जब पार्टी ने मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल (कौएद) से किराना करने की घोषणा की तो उन लोगों के चेहरों पर मायूसी दिखाई दी जिन्हें लगता था कि कौएद की मदद से सपा पूरबी उत्तर प्रदेश की कुछ सीटों पर अपनी ताकत में इजाफा कर सकती है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अखिलेश की जिद्द के आगे उनके पापा-चाचा सब बौने नजर आये। कौएद को सपा के करीब लाने मे अहम भूमिका तो चचा शिवपाल यादव गुट ने निभाई थी, लेकिन जब चचा को लगा की भतीजा अखिलेश हत्थे से उखड़ा जा रहा है तो शिवपाल ने यह कहते हुए गेंद मुलायम सिंह क पाले में गेंद डाल दी कि कौएद को साथ लाने के बारे में फैसला नेताजी मुलायम सिंह की मर्जी से लिया गया था। इसके बाद अखिलेश के तेवर तो ढीले पड़ गये, लेकिन इरादे चट्टान की तरह अडिग नजर आये। उन्हें लग रहा था कि दागी-दबंग अंसारी बंधुओं को साथ लाने से 54 प्रतिशत युवा वोटर नाराज हो सकते हैं,जो इस समय अखिलेश सरकार के विकास कार्यो से काफी प्रभावित नजर आ रहे हैं।

संसदीय समिति की बैठक से चंद घंटे पहले एक निजी न्यूज चैनल के कार्यक्रम में एक सवाल के जबाव में जब अखिलेश ने कहा कि ‘सपा में नहीं आयेंगे मुखतार जैसे लोग’ तो सीधे मैसेज सपा आलाकामन यानी संसदीय बोर्ड को गया। यही वजह थी संसदीय बोर्ड में अखिलेश के खिलाफ किसी ने मंुह खोलने की हिमाकत नहीं की। अखिलेश ने बैठक में साफ कहा आपराधिक गतिविधियों वाले नेताओं को पार्टी में लाने से विकास का मुद्दा पीछे छूट जायेगा। दो घंटे के भीतर संसदीय बौर्ड ने अखिलेश की विचारधारा को मोहर लगा दी और कुछ ही देर बाद समाजवादी पार्टी के महासचिव रामगोपाल यादव ने प्रेस कांफ्रेस करके घोषणा कर दी कि कौमी एकता दल के सपा में विलय से सीएम अखिलेश यादव नाराज थे, इस लिये इस विलय को रद्द किया कर दिया गया है। रामगोपाल के बगल में शिवपाल यादव भी बैठे थे,लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

भतीजे के सामने बाप-चचा छोटे नहीं नजर आयें, इस लिये कौएद से दूरी बनाये जाने के साथ यह घोषणा भी कर दी गई कि कौएद को सपा के करीब लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बलराम यादव जिनको अखिलेश ने कैबिनेट से बर्खास्त कर दिया था, का मंत्री पद फिर से बहाल होगा। कौएद से सपा के दूरी बनाते ही कौएद नेता बाहुबली मुख्तार अंसारी को लखनऊ जेल से फिर शिफ्ट कर दिया गया। मुख्तार को कौएद-सपा के विलय की घोषणा होते ही लखनऊ की जेल में शिफ्ट कर दिया गया था, जिसके चलते पुलिस के कुछ बड़े अधिकारियों पर भी गाज गिरी थी।

पूरे घटनाक्रम से एक बात जरूर साफ हो गई कि समाजवादी परिवार में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है और इसे मात्र मीडिया की उपज बताकर खारिज नहीं किया जा सकता है। खासकर चचा शिवपाल यादव और भतीजे अखिलेश यादव के बीच कुछ ज्यादा ही तल्खी नजर आ रही है। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव कई बार इस तल्खी को कम करने के लिये अपने हिसाब से कदम उठा चुके हैं, परंतु उनके सभी प्रयास बेकार साबित हो रहे हैं। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि सपा परिवार में विचारों से अधिक कुर्सी की लड़ाई चल रही है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इसका कारण भी है कि 2012 के विधान सभा चुनाव के समय जब यह बात उभर कर आ रही थी कि मुलायम सिंह सीएम बनकर यूपी की सियासत नहीं करेंगे, इसके बाद सीएम के तौर पर शिवपाल यादव के नाम की चर्चा होने लगी थी, मगर ऐन मौके पर अखिलेश की इंट्री हुई और वह बाजी मार ले गये। सियासी पिच के नये खिलाड़ी अखिलेश यादव को सीएम बनाये जाने की घोषणा जब पिता मुलायम सिंह ने की तो राजनीति की पिच के पुराने खिलाडी शिवपाल यादव और उनके समर्थकों को नेताजी का यह फैसला रास नहीं आया, लेकिन कोई कर क्या सकता था। यही वजह है कि आज भी शिवपाल यादव के कई फैसलों पर अखिलेश को तो अखिलेश के अनेक फैसलों से शिवपाल आहत होते रहते हैं।

यह पहला मौका नहीं था जब सीएम को बिना भरोसे में लिए पार्टी ने कोई फैसला ले लिया हो। हाल ही में मुलायम की छोटी बहू अर्पणा यादव को लखनऊ कैंट से विधान सभा प्रत्याशी बनाये जाने का फैसला मुलायम सिंह ने अखिलेश को विश्वास में लिये बिना अपने स्तर पर कर दिया था। इससे पहले पंचायत चुनाव के समय सीएम के करीबी सुनील यादव साजन और आनंद भदौरिया को पार्टी से बर्खास्त कर दिया गया। उस वक्त भी सीएम को भरोसे में नहीं लिया गया। तब भी शिवपाल यादव ने अखिलेश की नाराजगी की चिंता किये बिना उनके दोंनों करीबियों के निष्कासन का पत्र जारी कर दिया था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इस घटना से सीएम अखिलेश काफी नाराज हो गए और सैफई महोत्सव में भी नहीं पहुंचे। बाद में सीएम ने न सिर्फ दोनों की वापसी करवाई बल्कि एमएलसी भी बनवा दिया। इसके अलावा आरएलडी के विलय और अमर-बेनी की वापसी में भी शिवपाल यादव की सक्रिय भूमिका रही। इसने सीएम को असहज किया,यह सब तब हो रहा है जबकि आम धारणा यही है कि सपा के भीतर होने वाले फैसलों पर अंतिम मुहर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ही लगाते हैंं। इससे पहले अखिलेश की नाराजगी की चिंता किये बिना बिहार के सीएम नीतीश कुमार और लालू यादव के साथ हुए महागठबंधन पर भी मुलायम ने मुहर लगा दी थी। तब भी अखिलेश की सोच से इत्तर शिवपाल यादव इस महागठबंधन के पक्ष में खड़े थे। उस समय सपा महासचिव प्रो.रामगोपाल इस महागठबंधन के पक्ष में नहीं थे और उन्होंने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया भी व्यक्त की थी। बाद में यह फैसला  बदल भी दिया गया।

मगर अंसारी बंधुओं से हाथ मिलाने के पक्ष में नहीं होने के बाद भी प्रो0रामगोपाल यादव ने अखिलेश का साथ देने की बजाये चुप्पी ओढ़े रखी, जिसको लेकर भी सियासी मायने निकाले गये। अब तो हर तरफ एक ही चर्चा हो रही है कि समाजवादी परिवार में ऊपरी तौर पर सब कुछ सामान्य दिखाने की कोशिश की जा रही हो, लेकिन अब यह लड़ाई सार्वजनिक हो चुकी है। इसलिये इसे छिपाया नहीं जा सकता है। जब सपा के महासचिव प्रो.रामगोपाल प्रेस कांफ्रेस में कहे,‘ इस फैसले (अंसारी बंधुओं को सपा में शामिल करना) से सीएम अखिलेश यादव नाराज थे, मगर अब नहीं हैं. कौमी एकता दल का विलय उनकी इच्छा के विपरीत हुआ था” तो हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

हर परिवार में कुछ न कुछ चलता है, पर सब मिलकर उसे ठीक कर लेते हैं।’ यह जुमला ज्यादा दिनों तक चलने वाला नहीं है। सपा से किसी को निकालने, किसी को गले लगाने की परिपाटी के कारण पारिवारिक रिश्तों में तनाव आता देख,संसदीय बोर्ड ने अब नेताजी के पास यह अधिकार सीमित कर दिया है कि बिना उनकी सहमति से किसी नेता को निकाला या पार्टी में शामिल नहीं किया जा सकता है। इसी के साथ सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का भी गठन नेताजी की मर्जी से ही किया जायेगा। कौएद प्रकरण से उबरने के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव 2012 की समाजवादी ‘क्रांति रथ यात्रा’ की तर्ज पर पूरे प्रदेश में ‘समाजवादी विकास रथ यात्रा पर निकलने वाले हैैं ताकि प्रदेश की जनता को उनकी सरकार के विकास कार्यो की जानकारी दी जा सके।

खैर, पूर्वी उत्तर प्रदेश में कौमी एकता दल से हाथ मिलाने या दूरी बनाये रखने से पार्टी को क्या फायदा होगा, यह सब तो अतीत के गर्भ में छिपा है, लेकिन इस सच्चाई को ठुकराया नहीं जा सकता है कि पूर्वांचल के कई जिलों में अंसारी बंधुओं की मजबूत पकड़ है। कौएद 2012 के विधानसभा चुनाव में भारतीय समाज पार्टी के साथ मिलकर 22-22 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। मऊ और मोहम्मदाबाद विधानसभा से पार्टी के विधायक मुख्तार अंसारी और सिगबतुल्लाह अंसारी जीत गए थे। इसके अलावा जहूराबाद, घोसी, जमानिया, गाजीपुर सदर, सैदपुर, जखनिया, जंगीपुर, बलिया सदर, फेफना, बांसडीह, चंदौली, बनारस दक्षिणी विधान सभा सीट पर कौमी एकता दल के प्रत्याशियोे को 30 से 50 हजार तक वोट मिले थे। अंसारी बंधुओं का इन सीटों पर आज भी प्रभाव है। कौएद मुस्लिमों के बीच की ही पार्टी नहीं थी। मुस्लिमों के अलावा दूसरी कई बिरादरियां भी कौएद के साथ जुड़ी है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सपा इसी वोट बैंक को अपने पक्ष में करना चाहती थी। मगर अब विलय रद होने से पूरे इलाके में नाराजगी बढ़ सकती है। इसके विपरीत राजनैतिक पंडित इसे प्रदेशीय परिपेक्ष में देख रहे हैं। उन्हें लगता है कौएद के साथ हाल मिलाने से पूर्वांचल की कुछ सीटों पर भले ही सपा की दावेदारी मजबूत हो जाती, लेकिन प्रदेश के कई हिस्सों में इसकी निगेटिव प्रतिक्रिया भी होती। विरोधियों को सपा को घेरने का मौका हाथ लग जाता। अखिलेश की इसी सोच ने कौएद और सपा के रिश्तों की चंद घंटों में ही बलि ले ली। आज की तारीख में समाजवादी पार्टी में अखिलेश से बड़ा कोई चेहरा नहीं है। भले ही अखिलेश सरकार कानून व्यवस्था के मामले में घिरी हुई हो, परंतु अखिलेश की छवि बेदाग है। उनके ऊपर किसी तरह के भ्रष्टाचार का आरोप नहीं है और छवि एक विकास पुरूष जैसी है।

बहरहाल, सपा में अंसारी बंधुओं की इंट्री पर रोक से सपाईयों को एक बार फिर जश्न मनाने का मौका मिल गया है। 2012 के चुनाव से पहले प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर अखिलेश यादव ने बाहुबली डीपी यादव को पार्टी में लेने से इनकार कर दिया था। इसका मेसेज पूरे प्रदेश में गया था। अब उसी इमेज को फिर से भुनाने की तैयारी है। माफिया मुख्तार अंसारी की पार्टी को न लेकर सीएम अखिलेश यादव अपनी वही इमेज दोबारा पा सकते हैं। इससे पार्टी को फायदा हो सकता है। कौएद और सपा के विलय का पूरा प्रकरण नाटकीय अंदाजा में खत्म हो गया। रह गईं तो कुछ यादें और इसके सहारे वोट बटोरने की चाहत। अगर यह प्रकरण सामने ही नहीं आता तो शायद सपा के पक्ष में माहौल बनाना आसान नहीं होता।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अंसारी बंधुओं से दूरी बनाकर अखिलेश ने साहसिक फैसला लिया है,लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि उन्हें मुस्लिम वोटों की चिंता नहीं है। यही वजह थी अंसारी बंधुओं को लेकर सपा की तरफ से मुसलमानों के बीच गलत मैसेज नहीं जाये,इसलिये अखिलेश यादव ने तुरंत अपने आवास पर रोजा इफ्तार के बहाने मुसलमानों को लुभाना शुरू कर दिया। सरकार के मंत्री अहमद हसन ने मुलायम और अखिलेश यादव को मुलसमानों का सबसे बड़ा हितैषी बताया। यह बात वह मुस्लिम नेताओं और धर्मगुरूओं की मौजूदगी को भी बार-बार बताते रहे। इससे चंद घंटों पहले अखिलेश सरकार ने मुसलमानों के लिये एक साथ कई प्रस्तावों को मंजूरी देकर अपने इरादे साफ कर दिये थे।

अखिलेश कैबिनेट ने अल्पसंख्यकों के हितों के नाम पर बीपीएल अल्पसंख्यक अभिभावकों की बेटियों की शादी के लिए आर्थिक सहायता राशि दस हजार रुपये से बढ़ाकर बीस हजार रुपये कर दी। ज्यादा से ज्यादा अल्पसंख्यकों को यह सहायता मिले, इसके लिए उनकी आय सीमा को भी बढ़ा दिया गया । मदरसा शिक्षकों को समय से सैलरी और अल्पसंख्यक छात्रों की स्कॉलरशिप और उसके लिए आय सीमा बढ़ाने के प्रस्ताव को भी मंजूर कर लिया गया हैं। मदरसा शिक्षकों और कर्मचारियों को समय से वेतन देने के लिए उत्तर प्रदेश मदरसा (शिक्षकों-कर्मचारियों का वेतन भुगतान) विधेयक 2016 के प्रारूप को कैबिनेट मंजूरी देते हुए कहा गया है कि मदरसा शिक्षकों के वेतन की पूरी रकम का भुगतान राज्य सरकार करेगी। अब तक इन्हें वेतन शासनादेश से मिलता था पर इसमें अक्सर देरी हो जाती थी। अब हर संस्था को हर महीने की 20 तारीख को बिल जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी को देना होगा। बिल मंजूर होते ही वेतन खाते में आएगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इसी तरह से दो लाख की वार्षिक आय वाले अल्पसंख्यक परिवार के कक्षा नौ और दस के छात्र भी स्कॉलरशिप के लिए आवेदन कर सकेंगे। अब तक केवल एक लाख रुपये आय वाले परिवार के छात्र ही आवेदन कर पाते थे। छात्रों को अब स्कालरशिप में 150 रुपये प्रतिमाह (अधिकतम दस महीने के लिए 1500 रुपये वार्षिक) और भत्ते के रूप में 750 रुपये एकमुश्त दिए जाते जाएंगे। यानी एक छात्र को कुल 2250 रुपये दिए जाएंगे।

सीएम अखिलेश यादव अपनी छवि को लेकर गंभीर हैं तो  विपक्ष अंसारी बंधुओं को सपा में शामिल किये जाने पर अखिलेश की नाराजगी और उनको बाहर का रास्ता दिखाने के प्रकरण को ड्रामेबाजी करार दे रहा है। भाजपा के प्रवक्ता विजय पाठक कहते हैं पहले डीपी यादव और अब मुख्तार अंसारी को पार्टी में शामिल नहीं किये जाने का विरोध कर रहे सीएम को यह बात भी नहीं भूलना चाहिए कि 2012 के विधान सभा चुनाव में सबसे अधिक 111 दागी उन्हीं की पार्टी के टिकट से चुनाव जीतकर माननीन बने थे। इनमें से 56 के खिलाफ तो हत्या, अपहरण जैसे गंभीर अपराध में मुकदमा चल रहा था। उन्हीं के राज में समाजवादी परिवार के संरक्षण में रामवृक्ष यादव जैसे भस्मासुर भी पैदा हुए। अनिल यादव, यादव सिंह जैसे भ्रष्ट अधिकारियों, को भी उनकी सरकार ने पाला पोसा। गायत्री प्रसाद प्रजापति जैसे भ्रष्ट नेता उनकी कैबिनेट का हिस्सा बने हुए हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

लेखक अजय कुमार लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement