लखनऊ : जौनपुर में मधुकर तिवारी जैसे व्यक्ति ने सीधे मुझ पर ही हमला कर दिया। बेसिक शिक्षा विभाग में सहायक शिक्षक के तौर पर भर्ती इस शख्स ने अपनी नौकरी तो आज तक नहीं की, लेकिन पत्रकार बन कर प्रशासन को धौंस खूब दी। चूंकि हिन्दुस्तान अखबार ने मुधकर तिवारी को हटा कर मुझे ब्यू्रो प्रमुख बनाया था, इसलिए मधुकर का कोप मुझ पर भड़का। अरे मधुकर तिवारी वही, जो सरकारी नौकरी पर होने के बावजूद हिन्दुस्तान अखबार से सम्बद्ध था और अपनी धौंस-पट्टी कायम किये हुए था। लेकिन उसकी करतूतों का खुलासा होने पर उसे हिन्दुस्तान से हटा दिया और मुझे जोधपुर से बुलाया गया। तब मैं जोधपुर के दैनिक भास्कर एडीशन में ब्यूरो प्रमुख था। खैर।
मेरे आने के बाद मधुकर तिवारी ने अपने हरकतें मेरे खिलाफ कर दीं। मेरी खबरों पर उसने शहर के दर्जनों डॉक्टरों को भड़काया और एक दिन मेरे दफ्तर पर प्रदर्शन तक करा दिया। लेकिन एक बार तो हद ही हो गयी। हुआ यह कि कलेक्ट्रेट बार एसोसियेशन के तत्कालीन अध्यक्ष यतीन्द्र नाथ त्रिपाठी और जिला उद्याग और व्यापार मंडल के अध्यक्ष इन्द्रभान सिंह इन्दू ने मेरे खिलाफ जहर-बुझा पत्रकार बनारस से लेकर नई दिल्ली तक सम्पादक को भेजा। पत्र में लिखा था कि कुमार सौवीर भ्रष्ट, चरित्रहीन हैं और अपने दफ्तर में भी अश्लील हरकतें करते रहते हैं। यह भी कि फर्जी खबर लिखते हैं और खबरों के नाम पर भारी उगाही भी होती है।
इस पर मुझे जौनपुर से वाराणसी ट्रांसफर कर दिया गया। इतना ही नहीं, दिल्ली से एक जांच दल मेरे खिलाफ जांच करने के लिए जौनपुर भेजा गया। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा। हां, हल्की ठेस जरूर लगी कि जौनपुर ने मुझे बेइज्जत कर दिया और कोई भी मेरे पास समर्थक के तौर पर नहीं आया। यह बहुत बड़ा धक्का था। दरअसल, मैंने बेहिसाब मेहनत की थी जौनपुर में। एक दिन भी छुट्टी नहीं ली। मैंने ऐसी-ऐसी खबरें ब्रेक कीं, जिसके बारे में कोई सोच तक नहीं सकता था। चाहे वह परसू यादव जैसा दुर्दान्त अपराधी रहा हो, मुख्तार अंसारी या धनन्जय सिंह रहे हों, उमाकांत यादव रहे हों, ललई हो, या फिर पारसनाथ यादव या उनका बेटा लकी यादव। मैंने हर एक की हरकत-करतूत को दर्ज किया। छोड़ा किसी को भी नहीं, चाहे वह मेरे मित्र रहे हों जावेद अंसारी, विद्यासागर सोनकर, या फिर अन्य कोई। जिसकी भी खबर मिली, मैंने उनकी खबर ली।
लेकिन जब जांच करने के लिए बड़े पत्रकार दिल्ली से आये, तो इंदू सिंह और यतींद्रनाथ त्रिपाठी जी ने साफ-साफ शब्दों में कह दिया कि यह पत्र उन्होंने नहीं लिखा था। मेरी भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए इन दोनों ने यह भी साफ लिखा कि कुमार सौवीर जैसा बेकाक, साहसी और मूलत: पत्रकार न तो कभी जौनपुर में आया है, और न कभी आयेगा। इन दोनों ने उस जांचदल को यह भी बताया कि मधुकर तिवारी ने जिले के पत्रकारों के हितों को लेकर एक अर्जी लिखने के लिए उनसे लेटरपैड मांगा था।
इतना ही नहीं, इंद्रभान सिंह इंदू ने तो जांच दल को यह तक लिख दिया था कि, “मधुकर तिवारी मूलत: —— है और मुझे शर्म लग रही है कि मधुकर तिवारी जैसा शख्स मेरा परिचित रहा है।”
कहने की जरूरत नहीं कि इसके बाद के प्रति जौनपुर और वहां के लोगों के प्रति मैं नत-मस्तक हो गया। मुझे यह भी पता चला कि उस जांच-दल के सामने ही इंदू सिंह ने जब मधुकर को गरियाना शुरू किया तो मधुकर तिवारी पूरे दौरान रोते हुए इंदू सिंह के पांव चांपे रहा। उसका केवल यही मकसद था कि कैसे भी हो, इंदू सिंह जांच-दल को कोई उल्टा-पुल्टा न लिख दें। लेकिन इंदू सिंह नहीं माने। मधुकर के गिड़गिड़ाने में उन्होंने और कोई बातें तो नहीं दर्ज कीं, लेकिन जो पत्र उन्होंने जांच-दल को सौंपा दिया, उसमें दर्ज कर दिया कि यह पूरी साजिश मधुकर तिवारी ने ही की। वह तो बाद में मुझे उस पत्र की प्रति मुझे मिल गयी, जो आज भी मेरे पास सुरक्षित है। यही वजह है कि मैं दूसरी जगह जाना छोड़ दे सकता हूं, लेकिन कोई भी मुझे जौनपुर आमंत्रित करे, तो मैं सारा काम धाम छोड़ कर जौनपुर निकल जाता हूं।
लेखक कुमार सौवीर लखनऊ के वरिष्ठ और बेबाक पत्रकार हैं.