जयपुर : छोटे अखबारों को जांच का खौफ क्यों ? खौफ वही खाता है जो या चोर होता है अथवा हेराफेरी करने वाला। राज्य सरकार को सभी छोटे और बड़े अखबारों की जांच समयबद्ध तरीके से करानी चाहिए ताकि अखबारों की आड़ में पनप रहे माफिया का सफाया हो सके।
राज्य सरकार ने पिछले दिनों सभी छोटे अखबारों की जांच का अभियान प्रारम्भ करने का एलान किया था। सरकार के इस आदेश के बाद कुछ अखबार वाले और समाचार पत्रों से जुड़े जेबी संगठन ऐसे उछल पड़े जैसे बहुत बड़ा बवंडर मच गया हो।
सवाल उठता है कि साँच को आंच क्यो ? बल्कि इस तरह की जांच से फर्जीवाड़ा करने वालो का कुरूप चेहरा सामने आ जायेगा और ईमानदार अखबार अलग ही पंगत में खड़े दिखाई देंगे। असली पत्रकार और समाचार पत्र संगठनों को अखबार की आड़ में लूट-खसोट करने वालो को बेनकाब करने के लिए सरकार के इस फैसले का स्वागत करना चाहिए।
यह सही है कि बड़े समाचार पत्रों के कारण छोटे अखबारों के अस्तित्व पर संकट पैदा हो गया है। कई तथाकथित ऐसे भी बड़े समाचार पत्र है जिनकी जयपुर शहर में बमुश्किल 100 प्रति भी नही बिकती है। ऐसा एक दैनिक अखबार है जिसकी दस किलोमीटर के दायरे में एक कॉपी ढूंढने के लिए कई घंटे खपत करने पड़ेंगे।
इस तथाकथित अखबार की एक हजार करोड़ की संपत्ति तो सरकार ने खैरात में दी है। जयपुर के वैशाली में आलीशान मॉल। सभी जिलों में सरकार से हथियाए हुए दफ्तर। बड़े अखबार वालो को दफ्तर भी सरकारी चाहिए और बंगले भी सरकार के रहमो करम से। भास्कर के पास कई समाचार पत्रों की आलीशान बिल्डिंग देखी जा सकती है जो सरकार की आंखों में धूल झोंककर किराए का कारोबार कर रहे हैं।
यह वही अशोक गहलोत हैं जिन्होंने अपने पिछले कार्यकाल में एक फर्जी अखबार को फर्जी तरीके से राज्यस्तरीय अखबार का दर्जा दिया जिसका मालिक आज भी सजा की इंतजार में बैठा है। मार-पीट, ब्लैकमेलिंग, धोखाधड़ी, फर्जी सर्कुलेशन, अपहरण सहित अनेक गंभीर अपराध आज भी लंबित हैं। ऐसे ही लोग समाचार पत्र संगठनों के पदाधिकारी तथा सरकारी कमेटी के सदस्य सरकार की मेहरबानी से बन जाते हैं।
अखबारों की जांच के साथ साथ समाचार संगठनों की भी जांच वांछनीय है। प्रदेश में जितने पत्रकार नहीं, उससे ज्यादा समाचार पत्रों के संगठन हैं। राजस्थान का एक तथाकथित अखबारनवीस दिल्ली में लड़कियां सप्लाई कर राष्ट्रीय स्तर पर पदाधिकारी तक बन गया था। समाचार पत्र संगठन के नाम पर अखबारों से बड़ी लूटपाट मच रही है। सरकार की किसी कमेटी में समाचार पत्र संगठनों को कोई स्थान नहीं देना चाहिए। मूंगफली बेचना वाला भी सामने की दोनों जेबो में कई संगठन रखता है।