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छत्तीसगढ़

मजीठिया केस में पत्रिका प्रबंधन को देना होगा 35 लाख रुपये!

एक सप्‍ताह के भीतर भुगतान कर श्रम विभाग जगदलपुर को सूचित करने को भी कहा गया

मजीठिया के लिए लड़ार्इ लड़ रहे कर्मचारियों के लिए एक खुशी की खबर छत्तीसगढ़ के जगदलपुर (बस्‍तर) से आई है जहां पिछले 90 दिनों लगातार चल रहे प्रकरण में श्रम पदाधिकारी ने आवेदक की मांग को उचित मानकर पत्रिका प्रबंधन को मजीठीया के अनुसार बकाया राशि को एक सप्ताह के भीतर आवेदक को भुगतान कर इस कार्यालय को सूचित करने का आदेश जारी कर दिया। पूर्ण जीत न सही लेकिन मजीठीया क्रांतिकारियों ने इसे एक बड़ी जीत माना है।

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कोरोना काल में राजस्थान पत्रिका ने कर्मचारियों निकाल दिया, मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ भी नहीं दिया। पत्रिका प्रबंधन में कार्यरत पूनम चंद बनपेला ने अकारण सेवा से बर्खास्तगी और मजीठीया वेज बोर्ड के अनुसार वेतन न देने को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय में शिकायत की थी। इसके फलस्वरूप प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देश पर सुनवाई जगदलपुर श्रम पदाधिकारी कार्यालय में हुई। 3 माह में कुल 11 पेशियों के बाद फैसला आया है।

पत्रिका प्रबंधन को कहा गया है कि पूनम चंद बनपेला के आवेदन के अनुसार लगभग 35 लाख रुपए बकाया का भुगतान उन्हें किया जाए। साथ ही रकम को एक सप्ताह के भीतर भुगतान कर इस कार्यालय को सूचित किया जाए।

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अब तक की पेशियों में पत्रिका प्रबंधन की तरफ से कभी प्रबंधन ही अनुपस्थित रहता है तो कभी उपस्थित अधिकारी निर्णय लेने में सक्षम नहीं होता है। इन हरकतों से ये साफ ज़ाहिर होता है कि पत्रिका प्रबंधन न्यायालयीन प्रक्रिया को हल्के में ले रहा है। पत्रिका के इस रवैये को देखते हुए श्रम पदाधिकारी ने पत्रिका के डायरेक्टर को भी समन जारी किया था लेकिन हमेशा की तरह पत्रिका प्रबंधन के सक्षम अधिकारी उपस्थित ही नहीं हुए। अंतिम पेशी 28 जनवरी को हुई जिसमें पत्रिका प्रबंधन की तरफ से शब्द कुमार सोलंकी और फोर्ट फोलिएज की तरफ से विनोद प्रधान उपस्थित हुए।

वैसे तो शब्द कुमार ने स्वयं को जगदलपुर का शाखा प्रबन्धक और जगदलपुर का यूनिट हेड बताया और खुद के पद को लेकर भी वो असमंजस मे थे लेकिन साथ ही ये भी कहा कि वो किसी भी तरह के निर्णय लेने में सक्षम नहीं हैं। तो सवाल ये उठता है कि क्या पत्रिका प्रबंधन ने जो अधिकारी नियुक्त किए हैं उन्हें निर्णय लेने से संबन्धित कोई अधिकार ही नहीं दिया गया है या फिर कोई भी पत्रिका का कर्मचारी मुंह उठा कर पेशियों मे चला आता है और खुद को अधिकारी बताने लगता है। जब उसे किसी तरह का अधिकार ही प्राप्त नहीं है तो वो अधिकारी कैसे हुआ।

फोर्ट फोलिएज के कर्मचारी को अपना पदनाम भी नहीं पता

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28 जनवरी को नियत पेशी मे फोर्ट फोलिएज की तरफ से उपस्थित विनोद प्रधान को जब उसका पदनाम पूछा गया तो उसे अपना पदनाम ही नहीं पता था। उसने शब्द कुमार से पूछ कर अपना पदनाम अकाउंटेंट बताया। तो इससे ये साफ ज़ाहिर होता है की फोर्ट फोलिएज को भी पत्रिका प्रबंधन का ही आदेश मानना होता है जिस बात से पत्रिका प्रबंधन हमेशा इंकार करती है। पत्रिका प्रबंधन का कहना है कि फोर्ट फोलिएज पत्रिका के लिए मात्र एक प्लेसमेंट कंपनी है।

पत्रिका के निर्णयकर्ता नहीं आ सकते पेशी में

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28 जनवरी को नियत पेशी मे उपस्थित खुद को जगदलपुर का शाखा प्रबन्धक बताने वाले शब्द कुमार को जब कहा गया कि पेशी के लिए समन तो पत्रिका के डाइरेक्टर को भेजा गया है तो वो क्यों नहीं आए? इस पर शब्द कुमार का जवाब आया कि मालिक या डाइरेक्टर नहीं आ सकते।

पत्रिका के शब्द कुमार सोलंकी पर कंटेम्प्ट का केस भी बनता, लेकिन श्रम पदाधिकारी ने माफ कर दिया

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6 जनवरी 2020 को हुए पेशी मे आवेदक समय पर आकार अपनी उपस्थिती दर्ज करवाता है किन्तु पत्रिका प्रबंधन के शब्द कुमार सोलंकी नियत समय से 1 घंटा लेट आकर श्रम पदाधिकारी की अनुपस्थिति मे अपनी उपस्थिती दर्ज करवा लेता है जिसकी सूचना शब्द कुमार ने श्रम पदाधिकारी को मोबाइल के माध्यम से दी। साथ ही प्रकरण के दस्तावेज़ मे टिप्पणी/टीप लिख देता है जो की नियम विरुद्ध है इस पर भी श्रम पदाधिकारी ने शब्द कुमार के खिलाफ कार्रवाई नहीं की उल्टा पहली गलती है इसीलिए छोड़ रहा हूँ कह दिया। इतने उच्च पद पर आसीन दोनों ही अधिकारियों की आपसी जुगलबंदी भी श्रम पदाधिकारी के कर्तव्यों पर सवाल खड़ी करती है।

फर्जी कंपनी फोर्ट फोलिएज मजीठिया से बचने की तरकीब

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आपको बता दें की मजीठिया वेज बोर्ड की अनुसंशा के बाद जब पत्रकार और अन्य समाचार कर्मचारी को मजीठिया के अनुसार वेतन देने का आदेश जारी हुआ तो पत्रिका ने एक फोर्ट फोलिएज नाम की कंपनी का गठन कर अपने समस्त कर्मचारियों का स्थानांतरण नई कंपनी फोर्ट फोलिएज मे कर दिया और बाद मे होने वाले कर्मचारियों की भर्ती भी इसी कंपनी मे करने लगे ताकि उन पर पर मजीठिया वेज बोर्ड का वेतनमान लागू न हो सके। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद उच्च न्यायालय की उस टिप्पणी पर स्थायी मुहर लग गई जिसमे कहा गया है की पत्रिका ने मजीठिया वेज बोर्ड की अनुसंशाओं का लाभ कर्मचारियों को देने से बचने के लिए पेपर अरेंजमेंट करते हुए एक फर्जी कंपनी का गठन किया है।

आवेदक के आवेदन और पत्रिका प्रबंधन के बचाव के बहस को सुनने के बाद सभी मुद्दों को ध्यान मे रख कर श्रम पदाधिकारी जगदलपुर ने पत्रिका प्रबंधन को मजीठिया के अनुसार आवेदक पूनम चंद बनपेला को लगभग 35 लाख रुपए का भुगतान कर कार्यालय को सूचित करने का आदेश जारी किया। और जब पत्रिका प्रबंधन ने इस आदेश को मानने से इंकार कर दिया तो श्रम पदाधिकारी ने आगे की कार्यवाही के लिए श्रम न्यायालय की अनुसंशा कर प्रकरण को श्रमायुक्त छत्तीसगढ़ के समक्ष प्रेषित कर दिया।

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