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सियासत

एक भूतपूर्व सांसद व प्रसिद्व पत्रकार ने विजय माल्या के लिए दलाली करते हुए उनके साथ उत्तराखंड में नेताओं की बैठकें करवाई…

मालामाल माल्या की कंगाली कथा

-निरंजन परिहार-

अब आप इसे ख्याति कहें या कुख्याति, कि संसार में शराब के सबसे बड़े व्यापारियों में से एक भारत में कभी अमीरों की जमात के सरदार रहे विजय माल्या कंगाली की कगार पर देश छोड़ कर फुर्र हो गए हैं। यह जगविख्यात तत्य है कि है कि ज्ञान, चरित्र और एकता का दुनिया को पाठ पढ़ाने वाले संघ परिवार की दत्तक पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने ही संसार में शराब के सबसे बड़े व्यापारियों में से एक माल्या को कर्नाटक से राज्यसभा में फिर से पहुंचाया था। और माल्या कभी देश की जिस संसद में बैठकर भारत के भाग्य विधाता बने हुए थे, वह संसद भी सन्न है। क्योंकि लुकआउट नोटिस के बावजूद वे गायब हो गए। पर, इस बात का क्या किया जाए कि जिस लाल रंग से माल्या को बहुत प्यार है, सरकार उस लाल रंग की झंडी किंगफिशर के कंगाल को दिखाए, उससे पहले ही विजय माल्या बचा – खुचा माल बटोरकर सर्र से सरक गए।

<p><span style="text-decoration: underline; font-size: 24pt;">मालामाल माल्या की कंगाली कथा</span></p> <p><span style="font-size: 8pt;"><strong>-निरंजन परिहार-</strong></span></p> <p>अब आप इसे ख्याति कहें या कुख्याति, कि संसार में शराब के सबसे बड़े व्यापारियों में से एक भारत में कभी अमीरों की जमात के सरदार रहे विजय माल्या कंगाली की कगार पर देश छोड़ कर फुर्र हो गए हैं। यह जगविख्यात तत्य है कि है कि ज्ञान, चरित्र और एकता का दुनिया को पाठ पढ़ाने वाले संघ परिवार की दत्तक पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने ही संसार में शराब के सबसे बड़े व्यापारियों में से एक माल्या को कर्नाटक से राज्यसभा में फिर से पहुंचाया था। और माल्या कभी देश की जिस संसद में बैठकर भारत के भाग्य विधाता बने हुए थे, वह संसद भी सन्न है। क्योंकि लुकआउट नोटिस के बावजूद वे गायब हो गए। पर, इस बात का क्या किया जाए कि जिस लाल रंग से माल्या को बहुत प्यार है, सरकार उस लाल रंग की झंडी किंगफिशर के कंगाल को दिखाए, उससे पहले ही विजय माल्या बचा - खुचा माल बटोरकर सर्र से सरक गए।</p>

मालामाल माल्या की कंगाली कथा

-निरंजन परिहार-

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अब आप इसे ख्याति कहें या कुख्याति, कि संसार में शराब के सबसे बड़े व्यापारियों में से एक भारत में कभी अमीरों की जमात के सरदार रहे विजय माल्या कंगाली की कगार पर देश छोड़ कर फुर्र हो गए हैं। यह जगविख्यात तत्य है कि है कि ज्ञान, चरित्र और एकता का दुनिया को पाठ पढ़ाने वाले संघ परिवार की दत्तक पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने ही संसार में शराब के सबसे बड़े व्यापारियों में से एक माल्या को कर्नाटक से राज्यसभा में फिर से पहुंचाया था। और माल्या कभी देश की जिस संसद में बैठकर भारत के भाग्य विधाता बने हुए थे, वह संसद भी सन्न है। क्योंकि लुकआउट नोटिस के बावजूद वे गायब हो गए। पर, इस बात का क्या किया जाए कि जिस लाल रंग से माल्या को बहुत प्यार है, सरकार उस लाल रंग की झंडी किंगफिशर के कंगाल को दिखाए, उससे पहले ही विजय माल्या बचा – खुचा माल बटोरकर सर्र से सरक गए।

मालामाल होने के बावजूद माल्या कोई पांच साल से अपने कर्मचारियों को तनख्वाह नहीं दे पा रहे थे।  क्यूंकि कड़की कुछ ज्यादा ही बता रहे थे और यह भी बता रहे थे कि जेब पूरी तरह से खाली हो गई है। लेकिन पांच साल की की कंगाली के बावजूद माल्या के ठसक और ठाट भारत छोड़ने के दिन तक वही थे। वैसे कहावत है कि मरा हुआ हाथी भी सवा लाख को होता है, लेकिन उनकी किंगफिशर एयरलाइन अब पूरी तरह से फिस्स है। विजय माल्या संकट में कोई आज से नहीं थे। चार साल पहले ही यह तय हो गया था कि वे कंगाल हो गए है। दुनिया के सबसे सैक्सी कलेंडर छापने वाले विजय माल्या को सन 2012 में ही फोर्ब्स ने अपनी अमीरों वाली सूची से बाहर का दरवाजा दिखा दिया था। बीजेपी के सहयोग से माल्या राज्यसभा में पहुंचे थे और बाद में बीजेपी को ही भुला दिया। लेकिन अब बीजेपी के राज में देश से भागकर बीजेपी की सरकार को एक और बदनुमा दाग भी दे गए हैं। 

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विजय माल्या अपने काम निकालने के लिए किस तरह के फंडे अपनाते रहे हैं, इसका अंदाज लगाने के लिए यह उदाहरण देश लीजिए। बात उन दिनों की है, जब उत्तराखंड में बीजेपी की सरकार हुआ करती थी। एक भूतपूर्व सांसद और प्रसिद्व पत्रकार विजय माल्या के दलाल बने और उनके साथ उत्तराखंड के नेताओं की बैठकें भी करवाई। माल्या के वहां के बंगले पर लगा 27 करोड़ रुपए टैक्स फट से माफ हुआ। और जैसा कि होना था, माल्या ने तत्काल बाद में वह बंगला बेच दिया और मोटा मुनाफा कमाया। मोटा इसलिए, क्योंकि जब 50 साल पहले विजय माल्या की मां ने यह बंगला खरीदा था, तब देहरादून में प्रॉपर्टी के दामों में आज की तरह कदर आग लगी हुई नहीं थी। मतलब यही है कि विजय माल्या को कितनी कमाई, किसके जरिए, कैसे निकालनी है, और जिन रास्तों से निकालनी है, उन रास्तों की रपटीली राहों तक के अंदाज का पता है। राज्यसभा में जाने के लिए बीजेपी का सहयोग तो एक बहाना था। बाद में तो खैर बीजेपी को भी समझ में आ गया कि माल्या ने जो सौदा किया, वह सिर्फ राज्यसभा मे आने के लिए नहीं था।

बहुत सारे हवाई जहाजों और दो बहुत भव्य किस्म के आलीशान जल के जहाजों के मालिक होने के साथ साथ अरबों रुपए के शराब का कारोबार करनेवाले विजय माल्या की हालत इन दिनों सचमुच बहुत पतली हैं। यहां तक कि उनकी किंगफिशर विमान सेवा के सारे के सारे विमान तीन साल से जमीन पर खड़े हैं। और जैसा कि अब तक कोई उनकी मदद को नहीं आया, इसलिए सारे ही विमान जो बेचारे आकाश में उड़ने के लिए बने थे, वो स्थायी रूप से जमीन पर खड़े रहने को बंधक हो गए है। क्योंकि कोई विमान जब बहुत दिनों तक उड़ान पर नहीं जाता, जमीन पर ही खड़ा रहता है, तो जैसा कि आपके और हमारे शरीर में भी पड़े पड़े अकड़न – जकड़न आ जाती है, विमानों में भी उड्डयन की क्षमता क्षीण हो जाती है। फिर से उड़ने के लिए तैयार होने का खर्चा बहुत आता है। पैसा लगता है। और कंगाल माल्या व उनकी किंगफिशर पर तो अपार उधारी है। बेचारे विमान।

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संपत्तियों के आधार पर माल्या की कुल निजी हैसियत आज भी भले ही अरबों डॉलर में आंकी जाती रही हो। और उनकी एयरलाइंस के कर्मचारियों की दुर्दशा के बाद कइयों के आत्महत्या के हालात से माल्या की असलियत को भले ही कोई कुछ भी समझे। लेकिन असल में ऐसा है नहीं। अपन पहले भी कहते रहे हैं कि उंट अगर जमीन पर बैठ भी जाए, तो भी वह कुत्ते से तो कई गुना ऊंचा ही होता है। माल्या को शराब का कारोबार और पूरा का पूरा यूबी ग्रुप अपने पिता विट्ठल माल्या से विरासत में मिला। मगर स्काटलैंड की मशहूर शराब फैक्टरी वाइट एंड मेके को एक अरब सवा करोड़ रुपए में खरीदने के बाद माल्या का यूबी ग्रुप दुनिया का दूसरे नंबर का सबसे बड़ा शराब निर्माता ग्रुप बन गया। जीवन में माल्या की हर पल कोशिश रही है कि वे अपने कारोबार का दायरा बढ़ा कर अलग अलग व्यवसायों को इसमें शामिल करें, ताकि उन्हें महज़ शराब उद्योग के दिग्गज के तौर पर ही नहीं, एक बड़े उद्योगपति के रूप में उन्हें देखा जाए। इसी कारण उन्होंने एयरलाइंस शुरू की।

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और बाद में तो राजा – महाराजाओं की शान को भी मात देने वाले माल्या ने अपने किंगफिशर ब्रांड को बढ़ावा देने के लिए नंगी – अधनंगी लड़कियों को इकट्ठा करके दुनिया के सबसे सैक्सी कैलेंडर भी बनवाए और उनमें छपनेवाली कन्याओं को मशहूर मॉडल होने के खिताब भी बांटे। कुछ को तो हीरोइन तक बनवाने में मदद की। एयरलाइन भी शुरू की। जो नखरे- लटके – झटके दिखाने थे, वे सारे ही दिखाए और उनसे बाकी एयरलाइंसों को खूब डराया भी। और माल्या के खुद को बड़ा बनाने के शौक की उस घटना ने तो कॉर्पोरेट जगत में सबको चौंका दिया था जब किंगफ़िशर एयरलाइन को अंतरराष्ट्रीय विमानन कंपनी बनाने के लिए माल्या ने समुद्र के बीच सफर कर रहे अपने यॉट से कैप्टेन गोपीनाथ को फ़ोन किया कि वो एयर डेकन ख़रीदना चाहते हैं। गोपीनाथ ने कहा,  कीमत एक हज़ार करोड़ रुपए। और माल्या ने एयर डेकन की बैलेंस शीट तक नहीं देखी और गोपीनाथ को डिमांड ड्राफ़्ट भिजवा दिया था।

कंगाल के रूप में बहुप्रचारित माल्या के बारे में ताजा तथ्य यह है कि वे अपनी अरबों रुपए की संपत्ति बचाने की कोशिश में कंगाली का नाटक करते हुए भारत में ज्यादा दिन जी नहीं सकते थे, इसी कारण भारत छोड़कर गायब हो गए हैं। लेकिन, मालामाल माल्या, दरअसल दुर्लभ किस्म के शौकीन आदमी हैं। वे जहां भी रहेंगे, अपने शौक पूरे करते रहेंगे। नंगीपुंगी बालाओं के बीच जीने के अपने सपने को स्थायी बनाने के शौक की खातिर ही, कामुक कैलेंडर निकाले। आलीशान क्रूज पर जिंदगी गुजारने और हवाई में उड़ने के शौक को स्थायी बनाने के लिए हवाई सेवा किंगफिशर भी शुरू की। बाद में तो खैर, कामुक कैलेंडरों की बालाओं की जिंदगी की असलियत नापने की कोशिश में मधुर भंडारकर ने कैलेंडर गर्ल्स शीर्षक से एक फिल्म भी बनाई और बरबाद बिजनेसमैन के क्रूज पर दुनिया की सैर करने को लेकर भी एक फिल्म बनी। लेकिन सच्चाई यह है कि शौक के लिए खड़े किए गए कारोबारों का अंत अकसर शोक पर हुआ करता है। माल्या के विभिन्न शौक के शोकगीत और उनकी किंगफिशर की शोकांतिका का कथानक भी कुछ कुछ ऐसा ही है। शौकीन माल्या ने भारत की सत्रह बैंकों से बहुत सारा माल लिया, मगर धेला भी वापस नहीं किया। नौ हजार करोड़ रुपए का आंकड़ा लिखने में कितने शून्य लगते हैं, यह देश के सामान्य आदमी को समझने मैं बी बहुत वक्त लग जाता है। लेकिन अपनी इतनी बड़ी धनराशि को डूबते हुए सारी बैंकें देखती रही और माल्या शौक पूरे करने लंदन की फ्लाइट लपक कर निकल गए। शौक कभी मरते नहीं। सो, अब साठ साल की ऊम्र में माल्या वहां अपने सारे शौक फिर से जागृत करेंगे। लेकिन कोर्ट, कचहरी और कानून का शिकंजा जिस तरह से कसता जा रहा है, ऐसे में    उनके शौक का क्या हश्र होगा, अंदाज लगाचया जा सकता है। 

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लेखक निरंजन परिहार राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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