Vijendra Singh “parwaz”-
साहित्यकार मनोज ‘मुंतशिर’ चोर कैसे?
मनोज ‘मुंतशिर’ पर चोरी का इल्ज़ाम बेजा और ग़ैर मुनासिब है।
If One day you feel like crying
Call me
I don’t promise that
I will make you laugh
But I can cry with you.
– Robert J Slavery
तुम कभी उदास हो,रोने का दिल करे तो मुझे कॉल करना
शायद मैं तुम्हारे आँसू न रोक पाऊँ पर तुम्हारे साथ रोऊँगा ज़रूर।
फ़ोन को symbol बनाकर ठीक ऐसी ही मिली जुली बातें न जाने कितने लोग लिख रहे हैं ये चोरी नहीं है।
सारी दुनिया Hello कहती है,OK कहती है।
ये सब तक़लीद है, अनुकरण है।
शकील आज़मी का मतला बिल्कुल अलग है और मुंतशिर की तख़्लीक़ उस मानी में तो जाती है। लेकिन चोरी नहीं है।
मनोज मुंतशिर ने शकील आज़मी के मिसरे को न चर्बा किया है,न कोई सरका है। बल्कि अगर सच कहूँ तो शकील आज़मी का मिसरा ऊला एकदम मोहमिल है। यानी अस्पष्ट है।
मरके मिट्टी में मिलूँगा खाद हो जाऊँगा मैं
फिर खिलूँगा शाख़ पर आबाद हो जाऊँगा मैं,,,,,,
शकील ‘आज़मी’
तेरी मिट्टी में मिल जावां
गुल बनकर खिल जावां
मनोज ‘मुंतशिर’
आप ख़ुद ही सोचिए खाद सिर्फ़ fertilizer है। इसका काम मिट्टी को fertile करना है यानी उसे ऐसा उपजाऊ बनाना है कि बीज को नमूदार होने में सहूलत हासिल हो जाए।
खाद उगकर कभी फूल नहीं बनती और फिर आबाद होने की तो बात ही ख़त्म हो गई सच तो ये है अरूज़-ए-शायरी (शिल्प के अनुसार) के ऐतबार से खाद को क़ाफ़िया पैमाई की हैसियत से नाजायज़ तौर पर भरती की तरह इस्तेमाल किया गया है।
जिसका अलिफ़ से ये (from A to Z) तक कोई मानी नहीं है।
मनोज ‘मुंतशिर’ के यहाँ खाद फूल नहीं बन रहा है और फूल बनकर आबाद भी नहीं हो रहा है। बल्कि सीधा मिट्टी में मिलकर Natural तरीके से नमूदार हो रहा है।
T.S Eliot के मुताबिक शायरी imitation है यानी तक़लीद है। जिससे दुनिया का कोई भी शायर नहीं बच सकता।
नया तो कोई आसमान से उतरकर ज़मीन पर आने वाला कोई फ़रिश्ता ही कह सकता है।
डॉक्टर इक़बाल को ही ले लीजिए यही ख़याल इक़बाल ने इस तरह कहा है-
मिटा दे अपनी हस्ती को अगर कुछ मर्तबा चाहे
कि दाना ख़ाक में मिलकर गुले गुलज़ार होता है।
इक़बाल
“अपने सामान को बाँधे हुए इस सोच में हूँ
जो कहीं के नहीं रहते वो कहाँ रहते हैं”।
Jawad Shaikh
“हम दीवानों का पता पूछना तो पूछना यूँ
जो कहीं के नहीं रहते वो कहाँ रहते हैं”।
मनोज मुंतशिर
जावेद शेख़ के शे’र का सानी मिसरा मनोज मुंतशिर के सानी मिसरे के अल्फ़ाज़ के साथ बेशक चल रहा है लेकिन दोनों के मिसरा ऊला दूसरी तरह से कहा गया है। ये भी तवारुद है।
पाकिस्तान के मशहूर शायर अब्दुल हमीद ‘अदम’ की ग़ज़ल के दो शेरों के ये मिसरे कई शायरों के यहाँ टकराये
“मैं फ़र्ज़ कर चुका हूँ कि साहिल नहीं रहा
शायद मैं ऐतबार के क़ाबिल नहीं रहा”
मिसरों के तवारुद से उर्दू शायरी भरी पड़ी है लेकिन पूरा शे’र टकराये तो चोरी है।
किसी रचनाकर पर बग़ैर सबूत और मालूमात के इल्ज़ाम नहीं लगाना चाहिए।
ग़ालिब का मिसरा है ‘जो नहीं जानते वफ़ा क्या है’ यही मिसरा ग़ालिब के दौर में और थोड़ा बाद तक कितने ही शायरों के यहाँ ऐसा का ऐसा ही पाया जाता है। इसे तवारुद कहते हैं और ऐसा ग़ज़ल में भरा पड़ा है।
मुंतशिर की तो बात ही क्या है लोगों ने ग़ालिब को फ़ारसी कलाम का चोर कहा और Shakespeare को तो Shakespeare मानने से इन्कार कर दिया। वो भी यह कहते हुए कि इन ड्रामों का रचनाकार कोई और Shakespeare है।
अंग्रेज़ी शायरी के Romantic Period के जवान ख़ूबसूरत शायर John Keats को तो नक़्क़ादनुमा बेवकूफ़ों ने मौत की ही नींद सुला दिया था। अपनी बदनामियों से यह शायर रिन्दे बलानोश हो गया और फिर टीबी का बीमार होकर सिर्फ़ 26 साल की उम्र में दुनिया छोड़ गया।
बाद में ईमानदार आलोचकों ने Keats को तारीफ़ के सातवें आसमान पर पहुँचाया और Second to Shakespeare कहा.
John Milton पर डॉक्टर Johnson कि तनक़ीद कितनी घटिया और बेमानी है।
हिन्दी के महान कवि जयशंकर प्रसाद को महावीर प्रसाद द्विवेदी ने कवि मानने से ही इन्कार कर दिया और डॉक्टर नामवर सिंह ने तो सुमित्रानंदन पंत जैसे महाकवि के बारे में यह तक लिखा कि इनके काव्य को dustbin में फैंक देना चाहिए।
यही प्रताड़ना सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जैसे कवि को भी झेलनी पड़ी।
बड़े शायर फ़िराक़ गोरखपुरी के अशआर को असर ‘लखनवी’ ने लंगड़े लूले कहा।
ये सिलसिला चला आ रहा है जो काम करेगा और मंज़रे आम पर आएगा उससे छेड़छाड़ होनी ही है।
कहाँ तक लिखूँ शायरी की तारीख़ भरी पड़ी है ऐसे नादानों की आलोचनाओं से, जो हसद का शिकार होते हैं।
मनोज मुंतशिर मेहनत भी कर रहे हैं और मुताल्ला भी।
कभी वो दिनकर की रचना पढ़ते हैं तो कभी किसी दूसरे कवि या शायर के कलाम अहलेज़ौक़ तक पहुँचाते हैं।
बग़ैर मालूमात किसी पर कीचड़ नहीं उछालना चाहिए।
-विजेंद्र सिंह ‘परवाज़’
शायर, कवि और शिक्षक
संपर्क- +91 94122 85618
मूल खबरें-