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सुख-दुख

मजीठिया क्रांतिकारी मनोज शर्मा की कविता- …होठों को सी कर जीने से तो मरना ही अच्छा है!

मनोज शर्मा हिंदुस्तान बरेली के वरिष्ठ पत्रकार हैं. ये मजीठिया क्लेम पाने के लिए हिन्दुस्तान प्रबंधन से जंग लड़ रहे हैं. इन्होंने आज के वर्तमान परिस्थियों में अखबारों में कार्यरत साथियों की हालत को देखते हुए एक कविता लिखी है. कविता पढ़ें और पसंद आए तो मनोज शर्मा को उनके मोबाइल नंबर 9456870221 पर अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएं….

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मनोज शर्मा हिंदुस्तान बरेली के वरिष्ठ पत्रकार हैं. ये मजीठिया क्लेम पाने के लिए हिन्दुस्तान प्रबंधन से जंग लड़ रहे हैं. इन्होंने आज के वर्तमान परिस्थियों में अखबारों में कार्यरत साथियों की हालत को देखते हुए एक कविता लिखी है. कविता पढ़ें और पसंद आए तो मनोज शर्मा को उनके मोबाइल नंबर 9456870221 पर अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएं….

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(1)

होठों को सी कर जीने से तो मरना ही अच्छा है
जुल्म सहने से तो बगावत करना ही अच्छा है।

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खामोशी आपकी शैतानों को हौसला देती है
दुश्मन बाज न आए तो तलवार उठाना ही अच्छा है।

अमन चैन की तो हम भी पुरजोर हिमायत करते हैं
पर फिजा में जो घोले जहर उससे लड़ना ही अच्छा है।

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पहले तो वार नहीं करेंगे हम अपनी बात पे कायम हैं
वो ना समझे तो फिर सबक सिखाना ही अच्छा है।

मजहब के नाम पर जो बेकसूरों का खून बहाते हैं
काफिर हैं लोग वो उनसे इंतकाम लेना ही अच्छा है।

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(2)

ये अखबार वाले भी क्या खूब होते हैं
औरों की लिखते हैं खुद खून के आंसू रोते हैं।

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इनके जैसे तो हमने जहां में लाचार नहीं देखे
इंसाफ की बात करते हैं, खुद इंसाफ को तरसते हैं।

अजीबो गरीब किरदार है इनका देखिए हुजूर
खुद अंधेरे में हैं और उजाले की बात करते हैं।

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मुझसे पूछिए क्या है इनकी खुद्दारी का आलम
चंद सिक्कों की खातिर ये जमीर बेच देते हैं।

रोज जुल्म सहते हैं मगर उफ तक नहीं करते
ये अपने लबों को इस तरह सी के रखते हैं।

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इनसे इंकलाब की उम्मीद करना बेइमानी है यारों
ये बाहर से कुछ और, अंदर से कुछ और होते हैं।

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0 Comments

  1. मंगेश विश्वासराव

    March 20, 2017 at 12:34 pm

    मनोज शर्मा को सलाम….कई कवी भी हैं पत्रकार, जो इस में फंसे हैं…क्या पेन के बदले हम कवी लोग बंदूक हाथों मे उठा लेंगे….मोदी का यही हैं अच्छे दिन का नारा

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