Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

मीडिया शिक्षण संस्थानों का सच : लाखों रुपये वसूलने के बाद आखिर में रद्दी का एक टुकड़ा थमा कर भगा देते हैं!

Sumit Srivatava-

जर्नलिज्म में करियर… कड़वा है पर सत्य है……आपका बच्चा जब इंटर पास कर लेता है तब आपके चेहरे पर उसके भविष्य की चिंता झलकने लगती है कि उसको भविष्य में क्या कराया जाये जिससे उसका करियर बन सके… उसके साथ साथ अपने बच्चे की आगे की पढाई के लिये लाखों रुपये की व्यवस्था भी करनी है… बड़े चैनलों पर पत्रकारों और एंकरो को बोलता देख कुछ छात्र मीडिया में करियर बनाने की सोचते हैं और अपना भविष्य टीवी पर बोलते एक बड़े जर्नलिस्ट की तरह देखने लगते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इसी के साथ वो अपने करियर की शुरुआत के लिए मास कम्यूनिकेशन का कोर्स करने के लिये निकल जाते है.. कोर्स करने के दौरान संस्थानों द्वारा उनको बड़े बड़े सपने दिखाये जाते हैं… जब चैनलों में ऑडियंस के तौर पर उन बच्चों को बिठाया जाता है तो छात्रों को लगता है कि उनके सपने साकार होने के करीब हैं……..लेकिन पढ़ाई पूरी होने के बाद एक रद्दी का टुकड़ा (सर्टिफिकेट जिसकी कोई वैल्यू नहीं) देकर भगा दिया जाता है। जाओ हमारा काम पढ़ाने का था, अब ढूंढों नौकरी अपने आप।

पत्रकाारिता का सर्टिफिकेट तो मिल गया लेकिन उसके बाद उसको क्या करना है, नहीं पता… कहां जाना है, नहीं पता… जिन जिन चैनलों में गये, आपका सीवी ले लिया गया और निराशा हाथ लगी। सालों तक कोई नौकरी नहीं….. जिसके बाद 80 फीसदी छात्र छात्राएं वापिस अपने घर लौट जाते हैं.. सालों की मेहनत और अभिभावकों का लाखो रुपये खर्च करने के बाद जहां से वो भविष्य के सपने देखकर अपने घर से निकले थे वहीं अपने घर आकर खत्म हो जाते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

बाकी 20 फीसदी छात्र-छात्राएं संघर्षरत रहते हैं… छोटे संस्थानों में नौकरी तो मिल जाती है लेकिन नौकरी के साथ शोषण होने लगता है या सैलरी इतनी दी जाती है कि वो 2 टाइम की जगह 1 ही टाइम खा पायें। रही काम की बात तो काम का लोड इतना कि एक मजदूर की जिंदगी अपनी जिंदगी से अच्छी लगने लगती है। एक समय ऐसा आता है कि आप संस्थान के चाटुकार कर्मचारियों की पॉलिटिक्स में फंसकर नौकरी छोड़ने को मजबूर हो जाते है़ं। केवल एक फीसदी ही स्टूडेंट जिनके रिश्तेदार किसी चैनल में कार्यरत हो अथवा आपका सोर्स अच्छा हो, वो ही लोग मीडिया में रुक पाते हैं। अन्यथा ज्यादातर छात्र अपनी लाइन चेंज कर देते हैं।

अब आप मंथन कीजिये इतने सालो में अपने क्या कमाया और क्या गवाया ……

Advertisement. Scroll to continue reading.

मैं पुरजोर खुलकर विरोध करता हूं उन पत्रकारिता संस्थानों का जो 100 फीसदी प्लेंसमेंट का झांसा देकर छात्र छात्राओं के करियर से खिलबाड़ करते हैं और लाखो रुपये लेने के बाद बच्चों को केवल निराशा ही देते हैं। फिर नये छात्र-छात्राओं को प्लेसमेंट का झांसा देकर रुपये ऐठने का काम करते हैं…. अतः पत्रकारिता के नाम पर पैसा ऐठनें वाले संस्थानो पर ताले लग जाने चाहिये क्योंकि ज्यादातर लोग बिना पत्रकारिता की पढ़ाई के ऊंचे पदों पर बैठे हैं और चौड़े होकर फील्ड में घूम रहे हैं। साथ ही साथ सरकारी दफ्तरों में जाकर दलाली का भी काम कर रहे हैं।

सुमित कुमार श्रीवास्तव
मो0….8400008322

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement