Connect with us

Hi, what are you looking for?

मध्य प्रदेश

कुलाटीबाज विधायक, मीडिया अटेंशन और खजूरिया बनाम हजूरिया!

जयराम शुक्ल

इक आग का दरिया है और डूबके जाना है…. देश के पैमाने पर खबरों में मामले में अमूमन नीरस माने जाने वाले मध्यप्रदेश में होली के दिन ब्रेकिंग खबरों की ऐसी रसवर्षा हुई कि चैनलों के प्राइम टाइम से पूरे दिन करोना वायरस, सीएए, दंगे गधे की सींग की तरह गायब रहे। होली के रंग-उमंग-हुडदंग के लिए फिल्मी और भोजपुरी कलाकारों के लिए चैनलों ने जो प्रयोजन रचे थे मध्यप्रदेश के कुलाटीबाज विधायकों ने उलटापलट कर नया रंग भर दिया। मध्य प्रदेश मुद्दतों बाद पहलीबार टीआरपी का सबब बना।

इससे पहले यहां की राजनीति में ऐसा मौका 1967 में आया था जब श्रीमती विजयाराजे सिंधिया ने द्वारिका प्रसाद मिश्र के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार का मड़वा हिला दिया था और फिर गोविंदनारायण सिंह के नेतृत्व में प्रदेश में संयुक्त विधायक दल(संविद) की सरकार बनी। तब टीवी चैनल नहीं थे, अखबार की सुर्खियां थीं..। इस घटना के समय अपनी पीढ़ी के पत्रकार क ख ग घ..पढ़ने की उमर में रहे होंगे। लेकिन वे घटनाएं राजनीति के इतिहास की किताबों में दर्ज हैं। देश के इतिहास में बागी विधायकों ने पहली दफे राजनीतिक पर्यटन का सुख भोगा था। बागियों ने ग्वालियर के जयविलास पैलेस में जमकर मुर्गमुसल्लम उड़ाए थे। विधायकों को लामबंद करके राजधानी से दूर भेजने का यह पहला राजनीतिक प्रयोग था..जो बाद में इतना फलाफूला कि अब यह सरकार धँसाने का अमोघास्त्र बन गया।

1995 में भी ऐसी ही एक घटना घटी। तब भूकंप का केंद्र था गुजरात का अहमदाबाद। अयोध्या कांड के बाद वहां केशूभाई पटेल के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनी। नरेन्द्र भाई मोदी तब गुजरात प्रदेश के संगठन मंत्री थे। हुआ यह कि भाजपा के कद्दावर शंकर सिंह वाघेला ने विद्रोह कर दिया। वह 27 सितंबर का दिन था जब वाघेला चार्टेड प्लेन में 47 विधायकों को लेकर खजुराहो पहुँच गए। मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार थी। जाहिर है वाघेला ने तब कांग्रेस की शरण गही थी। केंद्र में नरसिंहराव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी। कहते हैं कि तत्कालीन केंद्रीय उड्डयन मंत्री ने वाघेला के लिए हवाई जहाज का इंतजाम किया था। खजुराहो में बागी विधायकों की मेहमाननवाजी और सुरक्षा दिग्विजय सिंह के हाथों थी। भाजपा को उस संकट से अटलबिहारी वाजपेयी, भैरोंसिंह शेखावत और कुशाभाऊ ठाकरे ने बड़ी कुशलता से निपटाया। केशूभाई की कुर्सी पर सुरेश मेहता को बैठाया और वाघेला की जायज-नाजायज मांगें मानने के बाद वहाँ की सरकार बची और बाद में उसकी बागडोर नरेन्द्र मोदी ने सँभाला।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इस घटना के वक्त अपन ‘देशबन्धु’ में विशेष संवाददाता थे और खजुराहो जाकर जस ओबेरॉय, चंदेला जैसे होटलों में बागी विधायकों के ठाटबाट की ताकझांक की थी। यह लगभग वैसे ही था जैसे कि छात्रसंघ के चुनाव में यूआर बनाने के लिए सीआरों को पकड़ा जाता था। मैं भी छात्र राजनीति से होकर पत्रकारिता में आया था सो उन विधायकों के ठाटबाट, मौजमस्ती रस्क करने लायक थी। तब खजुराहो में दिल्ली के पत्रकारों का अच्छा खासा जमावड़ा था। खबरों के लिए फैक्स या लैंडलाइन थी। अपन यूनाइटेड न्यूज आफ इंडिया के लिए भी काम करते थे और बुंदेलखंड में उनदिनों देशबंधु का प्रभावी नेटवर्क था ही लिहाजा बड़े से बड़े अँग्रेजी-हिंदी अखबारों में यूएनआई में भेजी गई अपनी ही खबर ब्रेक होती थी यह बात अलग है कि इंट्रो के मामूली हेरफेर के साथ दिल्ली वाले अपनी बायलाइन की खबरें चपका रहे थे।

खजूरिया शब्द यहीं से निकला। केशूभाई सरकार से बगावत कर जो खजुराहो में आ टिके वे खजूरिया कहलाए और जो सरकार के साथ वफादारी से रहे आए वे हजूरिया कहलाए। जो तटस्थ थे वे बेचारे मजूरिया कहे गए। ये शब्दावली भी अखबारों की ही गढ़ी हुई थी जो आज भी ऐसे मौकों पर उद्धृत की जाती है। तो अपना मध्यप्रदेश खबरों के मामलों में भले ही अपनी नीरसता के लिए बदनाम हो लेकिन वह रहा शुरू से ही छुपा रुस्तम। 1967 में जयविलास पैलेस, 1995 में खजुराहो और 2020 में ..जो है सामने है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अब सवाल यह कि जो सिंधिया भक्त विधायक बेंगलुरू में हैं उन्हें क्या नाम दिया जा सकता है..बंग्लौरिए..नहीं नहीं.. यह पुराना पड़ चुका है..। येदुरप्पा- देवेगौडा प्रकरण में भी ऐसा ही हुआ था। तो हम बेंगलुरू के उन 20 विधायकों को ‘हजूरिए’ कह सकते हैं। क्योंकि वे सबके सब ज्योतिरादित्य को हजूर महाराज ही कहते हैं। जब मंत्री थे तब भी उनके रियाया जैसे ही सद्व्यवहार करते थे। तो हजूरिए अभी भी बेंगलुरू में विक्ट्री का चिन्ह बनाए अपने महाराज के अगले पैतरे और निर्देश का इंतजार कर रहे हैं।

इधर कमलनाथ ने भोपाल से अपने भेदिए रवाना कर दिए हैं। सज्जन सिंह वर्मा फिल्मी ‘एजेंट विनोद’ और गोविंद सिंह गोपीचंद जासूस की भूमिका में पहुँच चुके हैं। वहां उन्हें कवर फायर देने के लिए सोनिया गांधी ने कर्नाटक के चर्चित कांग्रेसी टायकून डीके शिवकुमार को तैनात कर दिया है। दृश्य किसी थ्रिलर फिल्म की भाँति पल-प्रतिपल बदल रहा है और नानाप्रकार की झूठा सच्ची खबरें मैसूर के विषधरों वाले चंदनवनों के गंध को समेटे हुए भोपाल पहुँच रही हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

राजनीति में जब ऐसे हालात पैदा होते हैं तो असलियत सिर्फ वैसे ही दिखती है जैसे समुद्र में तैरता ग्लैशियर जिसका तीन चौथाई हिस्सा डूबा रहता है और उस पर सिर्फ़ अनुमान ही लगाया जा सकता है।

अब वह जो सामने दिख रहा है उसके बारे में।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अठारह साल कांग्रेस की झंडाबरदारी करने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। उस भाजपा में जिसकी संस्थापक सदस्यों में उनकी दादी श्रीमती विजयाराजे सिंधिया थीं। उस भाजपा में जिसमें उनकी बुआ वसुंधरा राजे तीन बार मुख्यमंत्री रहीं और दूसरी बुआ यशोधरा राजे प्रदेश भाजपा में वर्षों मंत्री..। वैसे भी माधवराव सिंधिया का राजनीतिक करियर 1971 में जनसंघ के सांसद के तौर पर शुरू होता है। इस दृष्टि से ज्योतिरादित्य के इस नए कदम को घर वापसी की तरह प्रचारित किया जा रहा है। ज्योतिरादित्य को भाजपा की राज्यसभा टिकट भी मुकम्मल हो चुकी है।

इधर कांग्रेस पार्टी के विधायक जयपुर के लिए निकल लिए हैं। इनकी संख्या 84 से 100 तक बताई जा रही है। बेंगलुरू में सिंधिया खेमें के 20 हजूरिए विधायक हैं ही। भाजपा के 104 विधायक भी हवाई जहाज से दिल्ली पहुंच चुके हैं। वहां हरियाणा के एक सात सितारा होटल में फिलहाल उनका प्रबोधन चल रहा है। मंगलवार को श्यामला हिल्स के सीम बंगले में कांग्रेस विधायक दल की बैठक के बाद एक ट्विस्ट आया है। कमलनाथ का दावा है कि बहुतमत उनके साथ है और वे सरकार को पाँच साल तक खींचेंगे। ‘मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार अब नहीं बचेगी’ लोकसभा में कांग्रेस दल के नेता अधीररंजन चौधरी की इस स्वीकारोक्ति के बाद भी मध्यप्रदेश के कांग्रेस प्रबंधकों में सरकार के बने रहने को लेकर गजब का आत्मविश्वास दिख रहा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मैंने राजधानी के एक वरिष्ठ पत्रकार से इस गाढ़े समय में कमलनाथ के आत्मविश्वास का कारण पूछा तो उनका जवाब था कि यह माइंड गेम है। याद करिए जब अमेरिका बगदाद को चारों ओर से घेर लिया और चौराहों से सद्दाम हुसैन नी प्रतिमाएं क्रेन से ढ़हाई जा रहींं थी तब सद्दाम सरकारी टीवी के पर्दे पर विक्ट्री का निशान दिखाते हुए अमेरिका को सबक सिखाने की बात कर रहे थे। यह तुलना कुछ ज्यादा ही करारी है लेकिन राजनीति में माइंडगेम ही आखिरी अस्त्र है क्योंकि इससे ही विटवीन्स द लाइन वाले लोग टिके रह सकते हैं। राजनीति और क्रिकेट को शायद इसीलिए लिए एक सा खेल माना जाता है। एक बाल मैंच का रुख बदल देती है। जीतने के लिए छह रन और एक बाल वाले वाकए कई बार दोहराए गए। मध्यप्रदेश कांग्रेस सरकार के प्रबंधक इसी उम्मीद पर कायम हैं।

वैसे राजनीतिक घटनाक्रम की रिपोर्टिंग परसेप्शन के आधार पर ज्यादा होती है। ऐसे मौके के ‘विश्वस्त सूत्र’ दिमाग की पेदाइश ज्यादा होते हैं। प्रथम विश्वयुद्ध की फील्ड रिपोर्टिँग कर चुके ब्रिटेन के सबसे गूढ़ प्रधानमंत्री रहे विंस्टन चर्चिल ने कहा था- अच्छा पत्रकार वही होता है जो किसी घटना के होने से महीना भर पहले उसके होने की भविष्यवाणी कर दे और फिर अगले दो महीने तक यह बताता रहे कि जो घटना होनी थी वह क्यों नहीं हुई। आम तौरपर दुनिया की पत्रकारिता इसी फार्मूले पर चलती है। अब इसी फार्मूले को नजीर मानते हुए अपन आँकलन करते हैं कि अब आगे क्या-क्या हो सकता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

एक- ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने और राज्यसभा की टिकट घोषित होने के बाद क्या बंगलुरू के हजूरिए महाराज के साथ टिके रहेंगे..? इसकी फिफ्टी फिफ्टी पर सेंट गुंजाइश है। क्योंकि संदेश गया कि महराज का सध गया लेकिन अपना क्या..? फिर अपन तो कांग्रेस में महाराज के साथ थे हम क्यों पार्टी बदलें..। उनके समक्ष चौधरी राकेश और बालेंदु शुक्ल का उदाहरण रखा जाएगा। सो ज्योतिरादित्य को भाजपा के बड़े नेताओं के साथ अपने समर्थकों के लिए पुख्ता डील करनी होगी नहीं तो हुजूरियों को मेढ़क की तरह छिटकने में वक्त नहीं लगेगा।

दो- विधानसभा अध्यक्ष भाजपा के हैं वे उन 20 विधायकों का इस्तीफा तबतक स्वीकार नहीं करेंगे जबतक कि वे व्यक्तिगत न मिलें..। स्पीकर की भूमिका अहं होगी। सत्र 16 मार्च से है, उस दिन राज्यपाल का अभिभाषण होगा। भाजपा अभिभाषण से पहले ही फ्लोर टेस्ट की माँग कर सकती है या फिर स्पीकर के खिलाफ अविश्वास ला सकती है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

तीन- जब तक यह स्थिति साफ नहीं होती राज्यसभा चुनाव को लेकर असमंजस रहेगा। स्पीकर और राज्यपाल के बीच घनघोर टकराहट देखने को मिल सकती है और यह प्रकरण हाईकोर्ट, सुप्रीमकोर्ट जाएगा।

चार- कमलनाथ सरकार साम-दाम-दंड-भेद राजनीति के चारों नुस्खे अपनाएगी। हुजूरियों के घरवालों को साधेगी। पुराने मामले उघाड़ने या दफन करने का काम होगा। हनीटेप के कुछ और विजुअल्स मीडिया में आ सकते हैं। व्यापम, ई-टेंडरिंग व कुछ और मामले खोले जा सकते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

पाँच- प्रदेश की नौकरशाही वेट एन्ड वाच का रुख अख्तियार कर सकती है। कमलनाथ को ये नौकरशाह झटका भी दे सकते हैं हवा का रुख देखते हुए साथ देने की गुंजाइश बहुत कम दिखती है।

छह- चबल-ग्वालियर क्षेत्र से भाजपा नेताओं के बगावत के सुर सुनने को मिल सकते हैं। ताजा खबरों के अनुसार प्रभात झा ने इसकी शुरूआत कर दी है। नरेन्द्र तोमर, जयभान सिंह पवैय्या का क्या रुख रहता है यह देखना होगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सात- भाजपा अभी राज्यसभा चुनाव की बात कर रही है..लेकिन अंदर ही अंदर यह घमासान शुरू हो गया कि यदि भाजपा की सरकार बनती है तो मुख्यमंत्री कौन होगा.? शिवराजसिंह चौहान को रोकने के लिए जबरदस्त लामबंदी होगी..। चौहान की राह काफी मुश्किल भरी है।

आठ- हजूरिए विधायकों का क्या होगा? क्या उन्हें कर्नाटक की तर्ज पर फिर से लड़वाया जाएगा। यदि ऐसा होता है तो उनका क्या होगा जो पिछले चुनाव में इनसे हारे थे..और अब क्षेत्र में संघर्ष कर रहे हैं। कांग्रेस भाजपा के ऐसे लोगों को पाले में लाकर माहौल बनाएगी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

नौ- कांग्रेस पूरी कोशिश करेगी कि हजूरिए टूटकर उनसे फिर मिलें, वह भाजपा के असंतुष्ट विधायकों पर भी डोरे डालेगी..। यह उसकी आखिरी कोशिश होगी। इस कोशिश में सफल नहीं हुई तो कमलनाथ अपने सभी विधायकों से विधानसभा सदस्यी का इस्तीफा दिलाकर मध्यावधि चुनाव के लिए कोशिश करेंगे। मध्यावधि हो न हो..इसके लिए स्पीकर, गवर्नर, हाईकोर्ट, चुनाव आयोग की अपनी-अपनी भूमिका होगी।

यह सब मैंने विश्वस्त सूत्रों के हवाले से नहीं अपितु पत्रकारीय अनुमान के आधार पर लिखा है..यदि ऐसा नहीं हुआ तो विंस्टन चर्चिल के अनुसार हजार बहाने और कारण होंगे यह बताने के कि ऐसा क्यों नहीं हुआ..। और अंत में मध्यप्रदेश के समूचे घटनाक्रम पर संपादकों के संपादक रहे महेश श्रीवास्तव जी ने अब्दुल हमीद अदम का एक शेर साझा किया है-

Advertisement. Scroll to continue reading.

दिल खुश हुआ मस्जिदे वीरान देखकर
अपनी तरह खुदा का ख़ाना खराब है।

लेखक जयराम शुक्ला मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं. संपर्क: 8225812813

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement