Sanjaya Kumar Singh-
मोदी नहीं तो कौन?
अभी भी कुछ लोग पूछ रहे हैं, मोदी नहीं तो कौन। यह तय करना जनता का काम नहीं है। भारतीय जनता पार्टी, आरएसएस और उसके दूसरे संगठन को तय करना है कि बहुमत का कैसे उपयोग किया जाए। मोदी को बदलने की सलाह को यह कहकर अब दबा दिया गया है कि युद्ध के बीच सेनापति नहीं बदला जाता है। पर मोदी के जो प्रशंसक अब उनका बचाव नहीं कर पा रहे हैं वे यही सवाल करते हैं। उनके लिए यह सवाल महत्वपूर्ण और गंभीर भी है। इसलिए, तय उन्हें ही करना है। आम जनता तो चुनाव में तय करती है। कर देगी।
दूसरी ओर, संवैधानिक व्यवस्था तो यही है कि बहुमत प्राप्त पार्टी के नेता अपना नेता चुनें। इसमें दूसरों की कोई जरूरत ही नहीं है। सांसद किसी को भी प्रधानमंत्री चुन सकते हैं। छह महीने में चुनाव जीतना होगा पर छह महीने तो अच्छा काम करके चुनाव जीतने लायक लोकप्रियता भी हासिल की जा सकती है। और मैं कहूं कि मैं कर सकता हूं तो कोई मानने से रहा। इसलिए मुझसे या मेरे जैसे बेचारों से पूछने का कोई मतलब नहीं है। यह भाजपा को बताना है कि उसके पास 70 साल में ढंग का दूसरा कौन नेता है। किसके दम पर उसने इतना ताम-झाम खड़ा किया है। असल में यह भाजपा का संकट है जिसे देश की समस्या के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।
पूर्व नौकरशाह जवाहर सरकार ने हाल में लिखा ही था कि संवैधानिक व्यवस्था प्रधानमंत्री चुनने की नहीं है। हम सांसद चुनते हैं और सांसद अपना नेता चुनते हैं। पर भाजपा (या नरेन्द्र मोदी) ने खुद कह कर चौकीदारों को सांसद बनवा लिया। अब चौकीदारों का नेतृत्व करने वाला (अच्छा) चौकीदार नहीं मिल रहा है तो यह उसका सिरदर्द है। देश का नहीं। अगर वह इसका संतोषजनक इलाज नहीं ढूंढ़ पाएगी तो चुनाव में देश ढूंढ़ लेगा (या भुगतेगा)। पर फिलहाल पार्टी अपना सिरदर्द जनता के सिर न थोपे। बताए कि पार्टी के रूप में उसके पास क्या विकल्प है या सब चौकीदार ही हैं या एक ही नेता हैं। एक आदमी से घर नहीं चलता देश तो चलने से रहा। और अगर एक व्यक्ति अपने अहंकार से देश को बर्बाद कर सकता है तो पार्टी की क्या बिसात। उम्मीद है बर्बाद होने से पहले पार्टी के कर्ता-धर्ताओं को समझ में आ जाएगा।
कलयुग कृष्ण
May 23, 2021 at 9:56 am
मोदी नहीं… तो कोई भी.. नहीं होगा.. तो भी बेहतर होगा। विश्वास कीजिए.. गूँगा भी होगा.. तो क्लेश न होगा। गजब के चिंतक हो,, समाज के या सरकार के?