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गुजरात

मोदी को मक्खन और जनता को जूता मारता अमर उजाला अखबार : शीर्षक देखिए- ‘क्षमता से पांच गुना भीड़ के सेल्फी लेने की होड़ से टूटा पुल’!

दीपक मौर्या-

फेसबुक पर ये मेरी पहली ऐसी पोस्ट जहां मैने 99 पत्रकारों को टैग किया है। पत्रकार साथियों से माफी चाहता हूं। वैसे मैं कभी टैग नहीं करता लेकिन ये सोचा कि शायद आपके कमेंट्स पढ़ कर कुछ सीखने को मिले। उम्मीद है कि आप सभी मार्गदर्शन करेंगे।

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अमर उजाला अखबार में ये गुजरात में हुई कल की घटना की कवरेज है। वैसे तो आज खबर के साथ टाइटल भी एक रिपोर्टर ही लिख देता है लेकिन विशेष खबरों या विशेष स्थिति में टाइटल डेस्क पर संपादक या डेस्क इंचार्ज के द्वारा संशोधित कर दिया जाता है। यहां भी मुझे ऐसा ही प्रतीत हो रहा है।

आप पहले शीर्षक पढ़िए, तो आपको स्वयं ही ये एहसास होगा कि सरकार और शासन प्रशासन का कितनी सफाई से बचाव किया गया है।

झूलते पुल पर पांच गुना भीड़ —-पुल झूल रहा था, और प्रशासन ने फिर भी उस पुल को हादसे के लिए खोल रखा था

सेल्फी लेने की होड़ में टूटा पुल — वाह क्या जांच कर डाली, पुल में कोई कमी नहीं, निर्माण सामग्री में कोई कमी नहीं, डिजाइन में कोई कमी नहीं, पुल बनाने वाले इंजीनियर की कोई कमी नहीं, गुणवत्ता में कोई कमी नहीं, बस कमी सेल्फी लेने के चलते हुई…

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पुल पर 500 लोग थे —– जैसे वहां जाकर इन्होंने गिने थे या किसी प्रत्यक्षदर्शी ने गिनकर इन्हें बताए थे। ऐसी जगह हर पत्रकार लगभग 500 का इस्तेमाल करता। अगर क्षमता 100 लोगों की थी तो 500 लोगों को क्यों जाने दिया, प्रशासन की क्या व्यवस्था थी वहां।

दीवाली से 2 दिन पहले ही 2 करोड़ की लागत से हुई थी मरम्मत —- बजट मरम्मत के लिए दिया था सरकार ने या कुछ लोगों को दिवाली का गिफ्ट। 2 करोड़ लगाकर भी पुल न बचा पाए।

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बस इतना कहना है कि ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर जहां जनता की जान गई हो, कम से कम सरकार से सवाल पूछने की हिम्मत तो करिए। शासन प्रशासन के जांच परख पर सवाल तो खड़े करिए।

इस घटना के गुनहगार दोषी अधिकारियों को सामने तो लाइए।

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ये क्या बात हुई कि पुल जनता ने तोड़ दिया, जनता की ही गलती है उसने पुल पर सेल्फी क्यों ली।

मीडिया के साथियों के लिए चिंतन और मनन का समय है। कम से कम जनहित में लिखने का साहस कीजिए। ऐसे पत्रकारों को बुरा लग सकता है जो आज केवल स्वार्थ , चाटुकारिता, लालच और पक्षपात की पत्रकारिता कर रहें हैं। कमेंट्स पढ़ कर अंदाजा लगाइए कि हम किस दौर में जी रहे हैं।

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अमर उजाला जैसे अखबारों को निष्पक्ष माना जाता है, पत्रकारिता के सरोकार के लिए जाना जाता है. जब ये भी वही सब करने लगेगा तो सारे अखबार एक जैसे हो जाएंगे. अमर उजाला प्रबंधन के लिए भी चिंतन मनन का समय है.

ये वीडियो भी देखें, जिसमें बंगाल में गिरे एक पुल के बारे में मोदीजी अपने श्रीमुख से क्या कह रहे हैं-

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इस प्रकरण पर भड़ास एडिटर यशवंत की फेसबुकी टिप्पणी पढ़िए-

Yashwant Singh- अमर उजाला भी गिरा मोदी जी के गोड़ पर… जनता ने सेल्फी लेने के चक्कर में तोड़ दिया पुल… ये अखबार बता रहा है… राजुल माहेश्वरी को मेरे साथ अब हरिद्वार आ जाना चाहिए संन्यास की दीक्षा लेने… बहुत पैसा कमा लिए… संपादकीय विभाग तो वैसे भी उनके समझ के बाहर की चीज है… आने वाले दिनों में उनके लौंडे लपाड़ी अखबार को पूर्ण लुगदी बना देंगे… इस अखबार के तेजस्वी मालिक रहे स्वर्गीय अतुल माहेश्वरी जी की आत्मा को शांति पहुंचे… हरि ओम्…. हरिद्वार के पत्रकार साथी दीपक मौर्या की एफबी पोस्ट को भड़ास पर स्थान दिया हूं क्योंकि इन्होंने ढेर सारे पत्रकारों को टैग कर अपनी चिंता व्यक्त की है. दीपक ने अखबार का नाम नहीं लिखा पर भड़ास में अखबार का नाम खोल दिया गया है.

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3 Comments

3 Comments

  1. Rohit Gupta

    October 31, 2022 at 6:03 pm

    तेल लगाने की पराकाष्ठा ……. हो गई है

  2. Rohit Gupta

    October 31, 2022 at 6:05 pm

    तेल लगाने की पराकाष्ठा ……. हो गई है, अख़बार की दुनिया ,मोदी की माया ,बढ़िया है!

  3. Ravindra nath kaushik

    November 6, 2022 at 6:02 pm

    अच्छा?140 साल बाद पुल गिरा तो उसकी डिजाइन ही ग़लत हो गई? वाह ये हरद्वारी लाल पत्रकार!!!

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