संदीप ठाकुर-
“देश नहीं बिकने दूंगा” का नारा देने वाली मोदी सरकार ने कसम खाई है कि
साल भर के भीतर चुन चुन कर सरकारी सम्पत्ति बेची जाएगी। बिक्री के लिए
बैंक, गैस, पावर, पेट्रोलियम ,बंदरगाह, इश्योरेंस कंपनी जैसे क्षेत्रों
से छांट छांट कर कंपनियां जुटाई गई हैं। चाहे कंपनियां घाटे में चल रही
हैं या फिर मुनाफे में, इससे सरकार को कोई लेना देना नहीं है। सरकार को
महाभारत के योद्धा अर्जुन को दिखने वाली मछली की आंख की तरह सिर्फ एक
चीज नजर आ रही है और वह है हर कीमत पर सेल..सेल और सेल। इस बार कंपनियों
को बेच कर एक लाख 75 हजार करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा गया है वो भी
एक निश्चित डेडलाइन के साथ। सरकार ने इतनी सावधानी जरुर बरती है कि पिछले
साल के मुकाबले इस बार लक्ष्य कम रखा है। गत वर्ष सरकारी कंपनियों को बेच
कर 2 लाख 10 हजार करोड़ रुपए की कमाई का लक्ष्य तय किया गया था। लेकिन
कोरोना महामारी ने सब भंड कर दिया। बाद में सरकार ने लक्ष्य को संशोधित
करके 32 हजार करोड़ कर दिया था, पर अंतत: बेच बाच कर सरकार 19,499 करोड़
रुपए ही जुटा सकी।
सरकार क्या क्या बेचने जा रही है। सरकार इंडियन ऑयल कारपोरेशन (आईओसीएल)
की तेल पाइप लाइन बेचने जा रही है। वेयरहाउस बेचे जाएंगे। भारत अर्थ
मूवर्स लिमिटेड ( बीईएमएल) को बेचने की तैयारी है। एयर इंडिया की बिक्री
होनी है। दो सरकारी बैंक बेचे जाएंगे। देश की दूसरी सबसे बड़ी तेल कंपनी
भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल ) को बेचा जाएगा। नीलांचल
इस्पात निगम की बिक्री होनी है। पवन हंस बिकेगा। बिजली के ट्रांसमिशन
लाइन बिकेगी। गैस ऑथोरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (गेल) की गैस पाइप लाइन बेची
जाएगी। राजमार्गों काे बेचा जाएगा। भारतीय जीवन बीमा निगम में हिस्सेदारी
बेची जाएगी। शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया की बिक्री होगी। कंटेनर
कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया को बेचा जाएगा। आईडीबीआई बैंक में हिस्सेदारी बेची
जाएगी। सरकार के मालिकाने वाली लाखों एकड़ जमीनों को बेचने या लीज पर
देने की फाइल भी तैयार है। और भी बहुत कुछ है जिसे बेचा जाना है। बिक्री
का काम वित्त वर्ष 2021-22 में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। सरकार ने
नीति आयोग को अन्य कंपनियों की भी सूची तैयार करने काे कहा है,जिसे बेचा
जा सकता है।
मालूम हो कि पहली बार विनिवेश मंत्रालय अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में
बनाया गया था। तब यह तय किया गया था कि घाटे में चल रही कंपनियां ही बेची
जाएंगी। उस नारे के 17 साल बाद भाजपा के दूसरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
का मानना है कि अब घाटे की कंपनी कोई नहीं खरीदना चाहता इसलिए मुनाफा कमा
रही सरकारी कंपनियों को बेचने में कोई हर्ज नहीं है। बेच बाच करने के
लिए सरकार को संसद से मंजूरी लेनी होगी। वित्त मंत्री ने कहा है कि इसी
सत्र में प्रस्ताव लाया जाएगा और मंजूरी ली जाएगी। मसलन एलआईसी की
हिस्सेदारी बेचने के लिए संसद की मंजूरी जरुरी है। इसी तरह दो सरकारी
बैंकों को बेचने को लिए भी संसद की मंजूरी की जरूरत होगी। मालूम हाे कि
बैंकों और वित्तीय संस्थाओं की बिक्री से सरकार ने एक लाख करोड़ रुपए
जुटाने का लक्ष्य तय किया है। वित्त मंत्री ने अगले वित्त वर्ष यानी
2021-22 में सरकारी कंपनियों को बेच कर एक लाख 75 हजार करोड़ रुपए कमाने
का जो लक्ष्य रखा है उसमें एक लाख करोड़ रुपए सरकारी बैंकों और वित्तीय
संस्थाओं में शेयर बेच कर आएगा और 75 हजार करोड़ रुपए केंद्रीय सार्वजनिक
उपक्रमों यानी सीपीएसई की बिक्री से आएगा। कई कंपनियां औने पौने दामाें
पर भी बेची जाएंगी। मसलन, कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया। यह एक छोटी सी
सरकारी कंपनी है। इसे 1988 में शुरू किया गया था। यह देश की सबसे बड़ी
लॉजिस्टिक कंपनी है, जिसके वेयरहाउस और डिपो हर रेलवे रूट, हवाई रूट और
जलमार्गों पर हैं। हर साल मुनाफा कमा कर सरकार को देती है पर सरकार इसे
सौ फीसदी बेच कर मुक्त होना चाहती है। इतने बड़े पैमाने पर सरकारी
कंपनियों को बेचने के पीछे सरकार का तर्क है कि बेकार पड़ी संपत्ति या
घाटे में चल रही कंपनियां सरकार के ऊपर बोझ हैं। यह वित्तीय घाटा बढ़ाने
का कारण बन रही हैं। इन्हें बेचने से सरकार को कमाई भी होगी और हर साल
होने वाला वित्तीय घाटे को भी कम किया जा सकेगा ।
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