Rahul Vishwakarma : मन बेहद व्यथित है. अभी खबर मिली कि आगरा में दैनिक जागरण के युवा पत्रकार मृत्युंजय ने ट्रेन के आगे कूदकर जान दे दी. दुनिया जहां का दुख-दर्द बताने वाले मृत्युंजय ने अपना दुख किसी से नहीं बताया.
आगरा में हम दो-चार बार ही मिले थे. आगरा के मित्रों से ही पता चला कि दो महीने पहले पिता के निधन से मृत्युंजय टूट गया था. तब से डिप्रेशन में था. भीतर ही भीतर वह घुटा जा रहा था. लापता होने से एक दिन पहले ही उसकी काउंसिलिंग भी की गई थी. लेकिन दुख इतना भीतर तक है कि जान जाने के साथ ही वो निकलेगा, इसका किसी को इल्म नहीं था.
अफसोस… कि कोई उसे समझ नहीं पाया. न दोस्त, न ऑफिस के साथी और ना ही मोहल्ले के लोग. अफसोस… कि इतना बड़ा फैसला लेने से पहले उसने किसी से बात नहीं की.
मृत्युंजय का इस तरह चला जाना बेहद झकझोर देने वाला है. दैनिक जागरण के इस युवा पत्रकार की मौत के दोषी थोड़ा ही सही, लेकिन हम सब भी हैं.
ईश्वर मृत्युंजय के परिवार को ये दुख सहने की शक्ति दे…
30 अगस्त को मृत्युंजय ने ये कविता लिखी थी…
ठहरा जीवन, ठहरा पानी शुद्ध कहां हो पाया है
बिना त्याग के सिद्धार्थ भी, बुद्ध कहां हो पाया है।।
शुक्रवार को पता नहीं, अबकि इतवार कैसा बीतेगा
खुद में खुद से बिना लड़े यूं युद्ध कहां हो पाया है।।
मौसम हो परिवर्तन का, बादल हो घनघोर बड़े
हर ओर उदासी छायी हो पत्ता-पत्ता मुरझाया है।।
बादलों के बीच सूरज की नई किरण सी आई है
ये देखो सूरज कैसा है, कुछ नई उम्मीदें लाया है।।
कुछ नई उम्मीदों ने हमको फिर से ये समझाया है
ख्वाब करो छोटे अब तुम, ख्वाबों ने तुम्हें रुलाया है
रोज ही सूरज ही उगता है, रोज उजाला आता है
ये सूरज भी क्या वैसा है, बस दिल बहलाने आया है।।।
मृत्युंjay….
पत्रकार रोहित विश्वकर्मा की एफबी वॉल से.
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